क्या डर के मारे फर्जी वोटिंग का रास्ता खोल दें? चुनाव आयोग ने विपक्ष से पूछे तीखे सवाल
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चुनाव आयोग ने विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे आरोपों के बीच एक तीखा सवाल उठाया है। क्या विपक्ष के दबाव में आकर चुनाव आयोग को विदेशी वोटर्स, मृत लोगों या फर्जी नामों से वोटिंग की इजाजत दे देनी चाहिए? आयोग ने साफ किया कि संविधान के खिलाफ जाकर ऐसा कोई कदम उठाना न तो लोकतंत्र के हित में है और न ही आयोग की जिम्मेदारी के अनुरूप।

आयोग ने कहा, भारत का संविधान भारतीय लोकतंत्र की जननी है... तो क्या इन बातों से डरकर निर्वाचन आयोग को कुछ लोगों के बहकावे में आकर, संविधान के विरुद्ध जाकर, पहले बिहार में, फिर पूरे देश में, मृतक मतदाताओं, स्थायी रूप से पलायन कर चुके मतदाताओं, दो स्थानों पर वोट दर्ज कराने वाले मतदाताओं, फर्जी मतदाताओं या विदेशी मतदाताओं के नाम पर फर्जी वोट डालने का रास्ता बनाना चाहिए?

आयोग का यह बयान उस समय आया है जब बिहार चुनाव को लेकर विपक्ष चुनाव आयोग पर लगातार यह आरोप लगा रहा है कि वह उनकी चिंताओं की अनदेखी कर रहा है।

चुनाव आयोग ने कहा, क्या निर्वाचन आयोग द्वारा पारदर्शी प्रक्रिया से तैयार की जा रही प्रामाणिक मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला नहीं है? इन सवालों पर, कभी न कभी, हम सभी को और भारत के सभी नागरिकों को, राजनीतिक विचारधाराओं से परे जाकर, गहराई से सोचना होगा। और शायद आप सभी के लिए इस आवश्यक चिंतन का सबसे उपयुक्त समय अब भारत में आ गया है।

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने बिहार में जारी SIR के मुद्दे पर कहा, हम यह लड़ाई जारी रखेंगे। जरूरत पड़ी तो बड़े से बड़ा निर्णय लेंगे और आने वाले समय में एक बड़ी लड़ाई की तैयारी है। हम अंतिम लिस्ट का इंतजार करेंगे और उच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार करेंगे। उसके बाद यदि वोटर के बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए हैं, तो उनके लिए सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ेंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने पहले विपक्ष के आरोपों को खारिज किया था। उन्होंने कहा कि पिछले चार महीनों में आयोग ने 5000 से अधिक बैठकें की हैं, जिनमें विधानसभा स्तर से लेकर राज्य स्तर तक 28,000 से अधिक लोग-जिसमें राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हैं-भाग ले चुके हैं।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया शुरू की है। इसके तहत 1 जनवरी 2003 की मतदाता सूची में जिन लोगों के नाम दर्ज हैं, उन्हें वोटर के रूप में प्राथमिक पात्र माना जाएगा। उन्हें किसी अतिरिक्त दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी।

आयोग जल्द ही 2003 की वोटर लिस्ट वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा, ताकि लगभग 4.96 करोड़ वोटर, जिनका नाम उसमें है, उसका प्रिंट निकालकर नए नामांकन के साथ संलग्न कर सकें। बाकी करीब 3 करोड़ वोटर, जिन्हें उस सूची में दर्ज नहीं किया गया था, उन्हें जन्म या निवास प्रमाण के लिए 11 में से कोई एक दस्तावेज देना होगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि यह प्रक्रिया इस बात को सुनिश्चित करेगी कि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अपात्र व्यक्ति सूची में शामिल न हो। बिहार में वर्तमान में 7.89 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जो 243 विधानसभा सीटों पर फैले हुए हैं।

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