जगदीप धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उनके इस अप्रत्याशित फ़ैसले के बाद सियासी गलियारों में अटकलों का बाज़ार गर्म है. उनके इस्तीफ़े के पीछे कई कारणों की चर्चा है, और साथ ही उनके राजनीतिक जीवन के विवाद भी फिर से सामने आ रहे हैं.
कभी जनता दल, फिर कांग्रेस और बाद में बीजेपी तक के उनके राजनीतिक सफ़र में कई अहम पड़ाव आए. लेकिन इस दौरान वे अपने कुछ बयानों और फैसलों को लेकर विवादों में भी घिरे रहे. उन्होंने अपने इस्तीफ़े के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला दिया है. उनका कार्यकाल अगस्त 2027 में पूरा होना था.
जुलाई 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद से ही वे लगातार राजनीतिक सुर्खियों में बने रहे. राज्य में उनका ममता बनर्जी सरकार के साथ कई मुद्दों पर टकराव रहा. उपराष्ट्रपति के तौर पर राज्यसभा के सभापति होने के नाते विपक्ष के साथ भी उनका टकराव बना रहा. पिछले साल दिसंबर में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी दिया था.
पेशे से वकील और कानून के जानकार रहे जगदीप धनखड़ हाल के दिनों में न्यायपालिका और संसद के अधिकारों पर टिप्पणी के कारण चर्चा में रहे.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, उपराष्ट्रपति का अचानक इस्तीफ़ा जितना चौंकाने वाला है, उतना ही समझ से परे भी है. मैं आज शाम लगभग 5 बजे तक अन्य सांसदों के साथ उनके साथ था. शाम 7:30 बजे मैंने उनसे फ़ोन पर भी बात की थी.
उन्होंने आगे लिखा, बेशक, धनखड़ को अपनी सेहत को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनके इस अप्रत्याशित इस्तीफ़े के पीछे और भी बहुत कुछ है, जो अभी सामने नहीं आया है. हालांकि, यह अटकलें लगाने का समय नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का मानना है कि जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से ही इस्तीफ़ा दिया होगा, क्योंकि वे बीमार रहे हैं और अस्पताल में भर्ती भी हुए थे. वे कहती हैं, इसके अलावा, संसद को चलाना भी आसान नहीं है.
चौधरी का कहना है, हालांकि यह भी सही है कि वह एक पोलाराइज़िंग फ़िगर बन गए थे और खुलकर सनातन और संविधान की बात करते थे. उपराष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल विपक्ष के साथ बहुत अच्छा नहीं रहा. संभव है कि मौजूदा हालात में सदन चलाने के उनके तरीक़े को लेकर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी उनका मतभेद हुआ हो.
जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. इससे पहले जुलाई 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. राज्यसभा के सभापति के तौर पर विपक्षी दलों से उनकी बहसें अक्सर सुर्खियों में रहीं. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट पर उनकी सख़्त टिप्पणी भी चर्चा का विषय बनी थी.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले को लेकर कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं. उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 142 एक ऐसी परमाणु मिसाइल बन गया है, जो लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद रहती है.
नीरजा चौधरी सवाल उठाती हैं कि मौजूदा समय में दुनियाभर में जितनी परेशानियाँ हैं, उसमें भारत सरकार चाह रही होगी कि सारे दलों को साथ रखा जाए. तो ऐसे समय में धनखड़ के मामले में क्या कुछ उल्टा पड़ गया? क्या अब हालात बदल गए हैं?
विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा था कि जगदीप धनखड़ पक्षपातपूर्ण तरीके से राज्यसभा का संचालन कर रहे थे. इसी वजह से इंडिया ब्लॉक की तरफ से शीतकालीन सत्र के दौरान धनखड़ के ख़िलाफ़ अविश्वास का नोटिस भी दिया गया था.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, धनखड़ साहब की तबीयत ख़राब हो सकती है और उनकी इस निजता का सम्मान भी किया जाना चाहिए. लेकिन राजनीति में ऐसे मुद्दों पर कयास लगाए जाते हैं. बीजेपी में लंबे समय से कोई नया अध्यक्ष नहीं बना है. ऐसे में क्या उनके इस्तीफ़े का इससे कोई संबंध हो सकता है?
किदवई का यह भी मानना है कि क्या यह किसी को उपराष्ट्रपति बनाकर संतुलन बनाने की कोशिश है, क्योंकि यह एक बड़ा पद होता है. हालांकि यह सब जेपी नड्डा के लिए नहीं किया गया होगा. लेकिन घटनाक्रम जिस तेज़ी से बदले हैं, कुछ बात तो ज़रूर है.
रशीद किदवई मानते हैं कि अगर सेहत की वजह से ही इस्तीफ़ा देना था तो संसद का सत्र शुरू होने से एक-दो दिन पहले ही इस्तीफ़ा हो जाता. वो अचानक हुए इस इस्तीफ़े को संघ और बीजेपी के संबंधों तथा नए अध्यक्ष को लेकर चल रहे घटनाक्रम से जोड़ते हैं.
धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू ज़िले के किठाना गाँव में हुआ था. उन्होंने गाँव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1-5 की पढ़ाई की और फिर घरधाना सरकारी मिडिल स्कूल में दाख़िला लिया. साल 1962 में स्कॉलरशिप पर चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल में दाख़िला हुआ. उन्होंने जयपुर के महाराजा कॉलेज से बीएससी (फिज़िक्स ऑनर्स) की डिग्री हासिल की. इसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी (1978-79) की पढ़ाई पूरी की.
धनखड़ ने नवंबर 1979 से राजस्थान बार काउंसिल के सदस्य के रूप में वकालत शुरू की. मार्च 1990 को उन्हें राजस्थान हाई कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया. धनखड़ 1990 से ही सुप्रीम कोर्ट में भी वकालत करते रहे.
उनका राजनीतिक करियर 1989 में जनता दल के टिकट से (भाजपा समर्थन) झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर शुरू हुआ. वे 1990-91 के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री (संसदीय कार्य मंत्रालय) भी रहे. जनता दल विभाजन के बाद धनखड़ 1991 में कांग्रेस में शामिल हुए और अजमेर से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. साल 2003 में धनखड़ बीजेपी में शामिल हो गए. 1993-98 के बीच वे किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक रहे. लोकसभा और विधानसभा के अपने कार्यकाल में वे कई प्रमुख संसदीय समितियों के सदस्य रहे.
— Vice-President of India (@VPIndia) July 21, 2025*
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