दुनिया में चौधरी बनने चले थे ट्रंप, खुद के देश में ही लगी आग
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ट्रंप अक्सर खुद को दुनिया का सबसे ताकतवर नेता और शांति का दूत बताते हैं। वे दावा करते हैं कि वे युद्ध में उलझे देशों के बीच शांति ला सकते हैं और बातचीत से विवाद सुलझा सकते हैं।

लेकिन लॉस एंजिल्स में हो रही हिंसा ने उनके इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शहर में तनाव और आगजनी जारी है, जबकि ट्रम्प प्रशासन ने नेशनल गार्ड के सैनिक तैनात कर दिए हैं।

ट्रंप कह सकते हैं कि कैलिफोर्निया में डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार है, लेकिन सच्चाई यह है कि हालात काबू में लाने में संघीय सरकार की भी नाकामी साफ दिख रही है।

हफ्ते के अंत में लॉस एंजिल्स की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी, जब संघीय एजेंसियों ने इमिग्रेशन छापों में दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने भीड़ को कंट्रोल करने के लिए रबर की गोलियाँ और आँसू गैस का इस्तेमाल किया, लेकिन प्रदर्शन और हिंसा बढ़ती गई।

हजारों लोगों ने सड़कों को जाम कर दिया और कुछ ने गाड़ियों में आग लगा दी। ये विरोध सिर्फ लॉस एंजिल्स तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कॉम्पटन और पैरामाउंट जैसे आस-पास के इलाकों में भी फैल गया।

6 जून को दोपहर में हल्के तनाव से शुरू हुआ ये विरोध जल्दी ही हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर, बोतलें और पटाखे फेंके। आंदोलनकारी और संघीय अधिकारी इस स्थिति के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

स्थिति बिगड़ने पर राष्ट्रपति ट्रम्प ने 7 जून की शाम को 2000 नेशनल गार्ड सैनिकों को तैनात करने का आदेश दिया।

सैन फ्रांसिस्को में 8 जून को इमिग्रेशन सर्विसेज बिल्डिंग के बाहर विरोध प्रदर्शन में लगभग 60 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें कुछ की उम्र 18 साल से कम थी।

इसी दौरान रिपोर्टिंग कर रही ऑस्ट्रेलियाई चैनल नाइन न्यूज़ की अमेरिकी पत्रकार लॉरेन टोमासी को पुलिस की रबर की गोली लग गई और वह बुरी तरह घायल हो गईं।

कैलिफोर्निया नेशनल गार्ड के करीब 2000 सैनिकों ने 8 जून को लॉस एंजिल्स में एंट्री की। यह फैसला राष्ट्रपति ट्रम्प ने राज्यपाल की अनुमति के बिना लिया, जो 1965 के बाद पहली बार हुआ।

हालाँकि इतनी बड़ी कार्रवाई के बावजूद हालात में कोई तुरंत सुधार नहीं हुआ।

कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूज़ॉम और कई अन्य स्थानीय नेताओं ने इस कदम की कड़ी आलोचना की। न्यूज़ॉम ने ट्रम्प को तानाशाह कहा और कहा कि यह तैनाती कोई ज़रूरी ज़रूरत पूरी करने के लिए नहीं, बल्कि एक नया संकट खड़ा करने के लिए की गई थी। उन्होंने इसे जानबूझकर भड़काऊ बताया, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।

न्यूज़ॉम के कार्यालय ने ट्रम्प प्रशासन को एक औपचारिक पत्र भेजकर सैनिकों को वापस बुलाने की माँग भी की।

लॉस एंजिल्स की मेयर करेन बास, जो खुद डेमोक्रेट हैं, उन्होंने हिंसक प्रदर्शनकारियों की निंदा की, लेकिन साथ ही ट्रम्प प्रशासन पर भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नेशनल गार्ड को तैनात करके ट्रम्प ने डर फैलाया, जिसने हालात को और खराब कर दिया।

ट्रम्प ने कैलिफोर्निया के अधिकारियों के साथ मिलकर शांति कायम करने की कोशिश करने के बजाय कहा, अगर गवर्नर गेविन न्यूज़ॉम और मेयर करेन बास अपना काम नहीं कर सकते, तो संघीय सरकार खुद दंगों और लूटपाट को उस तरीके से संभालेगी जैसा उसे किया जाना चाहिए।

रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने बताया कि कैंप पेंडलटन में मौजूद मरीन हाई अलर्ट पर हैं। अगर लॉस एंजिल्स में हिंसा जारी रहती है, तो पेंटागन वहाँ एक्टिव-ड्यूटी सैनिक भेजने के लिए तैयार है।

दिलचस्प बात यह है कि जब लॉस एंजिल्स में हालात बिगड़ते जा रहे हैं, तो ट्रम्प अपने ही देश के लोगों से शांति और समझदारी से बात नहीं कर पा रहे हैं। वे खुद को अक्सर दुनिया भर में शांति लाने वाला नेता बताते हैं, लेकिन अपने देश में संकट से निपटने के लिए उन्होंने बड़ी ताकत का इस्तेमाल करने में कोई झिझक नहीं दिखाई।

भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के दावे को भारत ने नकारा।

ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के दावे किए, लेकिन सफल नहीं हुए।

ट्रंप गाजा में शांति लाने में भी विफल रहे।

ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान व्हाइट हाउस और खुद ट्रम्प ने यह दिखाने की कोशिश की कि अमेरिका की विदेश नीति पर मजबूत पकड़ है और वे दुश्मन देशों को भी बातचीत की मेज पर ला सकते हैं। उन्होंने खुद को वैश्विक शांति के समर्थक के रूप में पेश किया।

लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग रही। ट्रम्प कई बार अपने बड़े-बड़े वादों को पूरा करने में नाकाम रहे। सबसे अहम बात यह है कि वे दुनिया में शांति लाने की बात करते हैं, लेकिन अपने ही देश में शांति कायम नहीं कर सके।

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