13 दिसंबर 2001, भारतीय इतिहास का वो काला दिन जिसे भुलाया नहीं जा सकता। आतंकवादियों ने भारतीय संसद भवन पर हमला कर लोकतंत्र पर सीधा प्रहार किया था।
सुबह 11:40 बजे, शीतकालीन सत्र के दौरान, पाँच आतंकवादी सरकारी कर्मचारियों के वेश में एक सफेद एंबेसडर कार से संसद परिसर में घुसे। कार पर नकली स्टिकर और लाल बत्ती लगी थी।
उनका इरादा सांसदों को निशाना बनाना और बड़े पैमाने पर तबाही मचाना था, लेकिन सतर्क सुरक्षाकर्मियों ने उनकी कार रोककर उनके मंसूबों को आंशिक रूप से नाकाम कर दिया।
लगभग 30 मिनट तक चली मुठभेड़ में पाँचों आतंकवादी मारे गए, लेकिन नौ सुरक्षाकर्मियों ने सर्वोच्च बलिदान दिया।
इस हमले की जड़ें 1999 में हुए IC-814 विमान अपहरण से जुड़ी थीं, जिसमें आतंकियों ने मसूद अजहर की रिहाई की मांग की थी।
अजहर रिपोर्टर के वेश में भारत आया था और कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा था। उसकी रिहाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद जैसे खतरनाक आतंकवादी संगठन की नींव पड़ी।
जांच एजेंसियों के लिए संसद हमले की जांच चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि सभी आतंकवादी मारे जा चुके थे। इसलिए, जांच का मुख्य आधार उन सुरागों पर था जो योजनाकारों तक पहुंचने में मदद कर सकते थे।
शुरुआत में शक लश्कर-ए-तैयबा पर गया, लेकिन बाद में जांच का फोकस जैश-ए-मोहम्मद की ओर मुड़ा और अफजल गुरु को हमले का मुख्य साजिशकर्ता माना गया। उसे 2013 में फांसी दे दी गई।
हालाँकि, कई राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने अफजल गुरु की फांसी का विरोध किया था, उनका कहना था कि उसे राजनीतिक कारणों से फंसाया जा रहा है। लेकिन, देश में जनाक्रोश को देखते हुए अफजल की फांसी की सजा बरक़रार रखी गई और 9 फ़रवरी 2013 को उसे फांसी दे दी गई।
संसद पर हुए आतंकी हमले की मुख्य बातें:
जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम मुफ़्ती मोहम्मद सईद, लेखिका अरुंधति रॉय, मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रफुल्ल किदवई, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPM) और AAP नेता आतिशी मार्लेना के माता पिता, उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने अफजल को निर्दोष बताते हुए फांसी रोकने की मांग की थी और राष्ट्रपति को भेजी गई दया याचिका पर दस्तखत किए थे। हालाँकि, दया याचिका ख़ारिज कर दी गई।
इस हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। जनता को उम्मीद थी कि सरकार पाकिस्तान को इसकी कीमत चुकाने पर मजबूर करेगी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
हालांकि, उस समय भारतीय सीमा पर सैनिकों की सबसे बड़ी तैनाती हुई, जिसने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया कि वह भारत का सामना करने में सक्षम नहीं है। लेकिन एक पूर्ण युद्ध की संभावना को अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण छोड़ दिया गया।
इस हमले के परिणामस्वरूप मसूद अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की। उसकी रिहाई के समय पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भारत को आश्वासन दिया था कि अजहर शांत रहेगा, लेकिन यह वादा जल्द ही टूट गया।
अजहर ने पाकिस्तान पहुंचते ही बड़ी रैली आयोजित की और अपने इरादों को जाहिर किया। जैश-ए-मोहम्मद ने भारत में और हमलों की योजना बनानी शुरू की, और संसद पर हमला उनकी ताकत दिखाने का एक जरिया बन गया।
यह हमला भारत की सुरक्षा व्यवस्थाओं की कमजोरियों को उजागर करता है। उस समय खुफिया एजेंसियां आतंकवाद से जुड़े मामलों में पूरी तरह सक्षम नहीं थीं। राज्य की एजेंसियों की भूमिका सीमित थी, और केंद्र सरकार पर ही पूरा भार था।
पाकिस्तान के साथ भरोसे की कमी और उसकी दोहरी नीतियां इस घटना से स्पष्ट हुईं। मसूद अजहर जैसे आतंकी नेताओं को पाकिस्तान ने हमेशा समर्थन दिया और कभी उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की।
संसद पर हमले के बाद भी अजहर पाकिस्तान में हीरो बना रहा, और उसे डीप स्टेट का संरक्षण मिला।
इस हमले ने भारत को कई अहम सबक सिखाए। सबसे महत्वपूर्ण यह कि पाकिस्तान पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसका जन्म ही भारत के खिलाफ हुआ है।
यह हमला भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीतियों में बदलाव का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। सुरक्षा उपायों को बढ़ाया गया और आतंकवाद निरोधक कानूनों को और सख्त किया गया।
संसद हमले की घटना पुलवामा हमले और उसके बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसी घटनाओं की भूमिका भी तय करती है। बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद की सबसे बड़ी प्रशिक्षण सुविधा को निशाना बनाना भारतीय सेना की नई आक्रामक रणनीति को दर्शाता है।
यह स्पष्ट करता है कि भारत अब किसी भी आतंकवादी हरकत को हल्के में नहीं लेगा।
यह घटना हमेशा भारत को याद दिलाएगी कि आतंकवाद से निपटने के लिए सतर्कता और तैयारी बेहद जरूरी है।
भारतीय संसद पर हमला केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र, सुरक्षा और संप्रभुता पर सीधा प्रहार था। इस घटना ने देश की राजनीतिक और सुरक्षा संरचनाओं को न केवल मजबूत किया, बल्कि इसे आतंकवाद से निपटने के लिए और अधिक सक्षम भी बनाया।
*आज 13 दिसंबर है , आज के दिन आतंकी अफ़ज़ल गुरु ने देश की संसद पर हमला करवाया था
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) December 13, 2024
इस वीडियो में देखिए कैसे आतिशी मार्लेना के माता पिता दोनों ने अफ़ज़ल गुरु को बचाने के लिए अभियान चलाया और आतंकवादियों का साथ दिया
ये वीडियो केजरीवाल की राजनीति का नंगा सच दिखाता है : pic.twitter.com/2DYU1YrYNA
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