मुंबई, 26 नवंबर 2008। देश की आर्थिक राजधानी आतंकियों के हमलों से दहल उठी। डेढ़ सौ से ज़्यादा निर्दोष मारे गए और करीब तीन सौ घायल हुए। यह सिर्फ़ एक आतंकी हमला नहीं था, बल्कि एक ऐसा षड्यंत्र था जो सफल हो जाता तो देश के एक बड़े वर्ग पर आतंकवादी होने का ठप्पा लग जाता और भारत का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल जाता।
यह हमला भारतीयों को मारने के साथ-साथ उन्हें फंसाने की साजिश भी थी। योजना थी कि इस कत्लेआम का आरोप हिन्दुस्तानियों पर लगाया जाए, ताकि हम आपस में लड़ते रहें, और राजनैतिक दल हिन्दू आतंकवाद का नारा देकर अपनी रोटियां सकें। आतंकियों को हिन्दू नामों वाले आईडी कार्ड दिए गए थे, हाथों में कलावा भी बंधा था, ताकि मरने के बाद उनकी पहचान भारतीय हिन्दू के रूप में हो।
दस आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई आए थे। उन्हें जिहाद करते हुए मर जाने का आदेश था, ताकि वे पकड़े न जाएं और भारतीय एजेंसियां उनसे कुछ उगलवा न सकें। नौ मारे गए, लेकिन दसवें को मुंबई पुलिस के बहादुर तुकाराम ओंबले ने लाठी से भिड़कर, 23 गोलियां खाने के बाद भी पकड़े रखा।
उस आतंकी के जिंदा पकड़ाने के बाद पता चला कि 26/11 को सैकड़ों भारतीयों की हत्या करने वाला कोई मोहन, लक्ष्मण या हरिप्रसाद नहीं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा भेजा गया इस्लामी आतंकी अजमल कसाब था।
पाकिस्तान की साजिश में अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, कांग्रेस ने साथ दिया। कांग्रेस उस समय केंद्र में सरकार चला रही थी, और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के करीबी अज़ीज़ बर्नी ने पाकिस्तान के षड़यंत्र को सच साबित करने के लिए तुरंत 26/11-आरएसएस की साजिश नाम से किताब लिख डाली। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और महेश भट्ट के साथ उन्होंने इसका विमोचन किया और पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी।
बिना जांच के और बिना अजमल कसाब से पूछताछ किए, किताब लॉन्च कर दी गई। मगर, अजमल कसाब के जिंदा पकड़े जाने से पाकिस्तान का प्लान धरा का धरा रह गया।
कसाब ने खुद बताया कि सभी आतंकियों को हूरों का लालच देकर पाकिस्तान से भारत में जिहाद करने भेजा गया था।
हालांकि, सच सामने आने के बाद अजीज़ बर्नी ने अपनी किताब में मुंबई हमलों का दोष RSS पर मढ़ने के लिए माफ़ी मांग ली, लेकिन दिग्विजय सिंह और कांग्रेस ने अभी तक माफ़ी नहीं मांगी है।
अगर उस समय तुकाराम ओंबले नहीं होते, तो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता कहने वाले लोग भी 26/11 हमलों को हिन्दू आतंकवाद कह रहे होते, और देश का एक बड़ा वर्ग खुद पर शर्म कर रहा होता।
पाकिस्तान के षड्यंत्र के उजागर होने के बाद भी 26/11 हमले को RSS की साजिश बताने की कोशिश में जुटी कांग्रेस ने पाकिस्तान पर कोई एक्शन नहीं लिया। पूर्व एयरफोर्स चीफ बीएस धनोआ ने बताया था कि 2008 मुंबई आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के आतंकी कैंपों पर हमले का प्रस्ताव था। वायुसेना ने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के सामने प्लान रखा, मगर मंजूरी नहीं मिली।
धनोआ ने कहा था कि उन्हें पता था कि पाकिस्तान में आतंकी शिविर कहां हैं, वे तैयार थे। मगर यह एक राजनीतिक फैसला है कि आपको स्ट्राइक करना है या नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार पाकिस्तान के प्रति इतना नर्म रवैया क्यों अपना रही थी।
166 लोगों के बलिदान के बाद भी कांग्रेस सरकार का पाकिस्तान को मौन समर्थन भारतवासियों को सालों तक चुभेगा।
आज 26 नवम्बर है,वही काला दिन जब पाकिस्तान से आये लश्कर ए तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मुंबई की 8 जगहों को पूरी तरह तहस नहस कर दिया.. इस हमले में 166 लोग मारे गए थे,जिनमें बच्चे भी शामिल थे।
— Aakanksha🇮🇳 (@Charu_on_X_x) November 26, 2023
इन सभी 10 आतंकियों के पास हिंदू नाम के ID थे.. अजमल कसाब को समीर चौधरी नाम दिया गया था,… pic.twitter.com/Ag5bl2RKYd
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