यूरोप का भरोसा जीता इजरायल, हथियारों का निर्यात हुआ दोगुना
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एक समय था जब इजरायल हथियारों के लिए यूरोप पर निर्भर था, लेकिन आज यूरोप इजरायली हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। इजरायल न केवल यूरोप, बल्कि इंडो-पैसिफिक और उन अरब देशों को भी हथियार बेच रहा है जो कभी उसके दुश्मन हुआ करते थे।

2024 में, यूरोप के हथियार आयात का 54% इजरायल से आया, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 35% और 2022 में 29% था। तीन वर्षों में, यूरोप को इजरायली हथियारों का निर्यात लगभग दोगुना हो गया है।

इजरायल केवल एक प्रकार के हथियार प्रणाली का निर्यात नहीं कर रहा है, बल्कि एयर डिफेंस से लेकर ड्रोन तक यूरोपीय देश खरीद रहे हैं।

जर्मनी ने इजरायल के साथ ARROW मिसाइल की डील की है, तो स्पेन ने इजरायल से टॉरपीडो और मिसाइलें खरीदी हैं। नीदरलैंड्स और इजरायल के बीच ऑटोमैटिक मशीनगन की डील हुई है। आयरलैंड को इजरायल से कॉम्बेट और जासूसी ड्रोन मिले हैं। साइप्रस और इजरायल के बीच मर्कावा टैंकों की डील पर बातचीत चल रही है।

इजरायल के हथियार निर्यात का 54% यूरोप जाता है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देश 23% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर हैं। अब्राहम समझौते के बाद, अरब देशों और इजरायल के बीच संबंध बेहतर हुए हैं, जिसके चलते आज इजरायल अरब देशों को 12% हथियार सप्लाई करता है।

उत्तरी अमेरिका में कनाडा, हैती जैसे देशों को इजरायल के हथियार निर्यात का 9% हिस्सा जाता है। इजरायली हथियारों का 1% निर्यात लैटिन अमेरिकी देशों को होता है और इतना ही अफ्रीकी देशों को भी सप्लाई किया जाता है।

यूरोप के कुछ बड़े नेता महत्वपूर्ण मंचों से बार-बार कह रहे हैं कि गाजा में इजरायल जो युद्ध लड़ रहा है, वह सिर्फ इजरायल का युद्ध नहीं है, बल्कि यह पूरे यूरोप को बचाने की भी लड़ाई है।

गाजा युद्ध के दौरान यूरोप में हमास की विचारधारा का प्रचार-प्रसार हुआ है। हमास का समर्थन करने वाले तत्वों ने यूरोप के कई देशों में ऐसे प्रदर्शन कराए हैं, जिनका मकसद आतंक के खिलाफ इजरायल के युद्ध को अत्याचार और नरसंहार बताना है। इन प्रदर्शनों में कथित लिबरल लॉबी और बुद्धिजीवी भी शामिल हैं।

यूरोप अब समझ चुका है कि अगर सामरिक सुरक्षा के लिए इजरायल के हथियार जरूरी हैं, तो आतंकवाद से बचाव के लिए इजरायल जैसे विचार और व्यवहार भी जरूरी हैं।

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