पंडित नेहरू की वो 4 गलतियां जो आज भी भारत के लिए नासूर बनी हुई हैं
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठाए, जिससे सदन में हंगामा मच गया। उन्होंने भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़ी नीतियों की आलोचना करते हुए विपक्ष को ब्रूस रिडेल की किताब JFK s Forgotten Crisis पढ़ने की सलाह दी। मोदी ने कहा कि नेहरू के दौर के फैसले ही आज की कई समस्याओं की जड़ हैं। किताब में 1962 में जैकलीन केनेडी की भारत यात्रा का ज़िक्र है, जिसमें नेहरू की विदेश नीति के प्रति कम रुचि दिखाई गई।

संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की जननी कहा जाता है। बाबा साहेब अंबेडकर ने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनका मानना था कि ये देश के साथ विश्वासघात होगा। नेहरू ने नरसिंह गोपालस्वामी अयंगर से अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करवाया और अपने मित्र शेख अब्दुल्ला के दबाव में इसे संविधान में शामिल करवाया। इसके कारण लाखों दलित, जम्मू कश्मीर में वोट डालने से वंचित हो गए। 5 अगस्त 2019 को संसद ने इस अनुच्छेद को खत्म किया, तब जाकर दलितों को वोट डालने का अधिकार मिला।

1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को बुरी पराजय का सामना करना पड़ा। नेहरू जी हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा बुलंद कर रहे थे और सैन्य आवश्यकताओं पर उनका ध्यान कम था। उन्होंने भारतीय वायुसेना को भी युद्ध में शामिल होने की मंजूरी नहीं दी, जिसके कारण चीन ने कई हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। जब संसद में मुद्दा उठा तो नेहरू ने खोई हुई जमीन को बंजर और बेकार कहकर कमतर बताने का प्रयास किया। महावीर त्यागी ने अपना गंजा सिर दिखाकर कहा था कि, इस पर भी बाल नहीं उगते, क्या आप इसे भी दुश्मन को सौंप देंगे?

1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और 83000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया, जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है। सेना पाकिस्तानियों को खदेड़ने लगी, तो पंडित नेहरू ने युद्धविराम की घोषणा कर दी, जिससे PoK पाकिस्तान के पास ही रह गया। इसी मसले को नेहरू जी लार्ड मॉउंटबैटन के कहने पर संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे।

1952 में नेपाल के राजा विक्रमशाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव रखा था। नेहरू जी ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव को इसका कारण बताते हुए उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। आज वही नेपाल, भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है, और चीन के इशारे पर भारत विरोधी कार्यों का समर्थन करने लगा है।

इनके अलावा, पंचशील समझौता हो, या कोको आइलैंड म्यांमार को दे देना, इन दोनों से चीन को लाभ पहुंचा और भारत पिछड़ गया। इतिहास में अगर ये भूलें न हुईं होती, तो आज भारत का परिदृश्य कुछ और हो सकता था।

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