केरल के मंत्री पी. प्रसाद द्वारा राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम का बहिष्कार करने के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया है। मंत्री ने कार्यक्रम में भारत माता की तस्वीर होने के कारण बहिष्कार किया।
भारत माता ग्रामवासिनी, जो देश की पहचान मानी जाती है, अब कुछ लोगों को चुभने लगी है। पी. प्रसाद, जो केरल के मंत्री और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं, ने राजभवन में हुए कार्यक्रम का बहिष्कार इसलिए कर दिया क्योंकि मंच पर भारत माता की तस्वीर लगी थी।
पी. प्रसाद, जिन्होंने भारत के संविधान की शपथ लेकर मंत्री पद संभाला है, को भारत माता की तस्वीर से आपत्ति है। हालांकि उन्होंने कहा कि वे भारत माता की तस्वीर के प्रति सम्मान रखते हैं, लेकिन उनकी पार्टी के सांसद ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस तस्वीर पर आपत्ति जताई है।
यह समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर लेफ्ट की राजनीति में भारत माता का विरोध क्यों है। जिस पार्टी का भारत में राजनीतिक अस्तित्व है, उसे भारत माता की तस्वीर से क्यों परेशानी है?
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की स्थापना 17 अक्टूबर 1920 को ताशकंद में हुई थी, जो उस समय सोवियत संघ का हिस्सा था। यह सूत्र बताता है कि कम्युनिस्ट नेताओं को भारत माता की तस्वीर और भारतीय संस्कृति क्यों चुभती है।
भारत माता की अवधारणा 19वीं सदी में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरी। बंगाल में किरण चंद्र बैनर्जी के नाटक, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास और बिपिन चंद्र पाल के लेखों में भारत माता का उल्लेख है। 1905 में अबनिंद्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया था।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्त भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने की शपथ लेते थे। यह भारतीय मानस था, जो भारतीय परंपरा और संस्कारों से जुड़कर आगे बढ़ रहा था। लेकिन वामपंथी दलों की सोच अलग थी। लेफ्ट की नज़र हमेशा मास्को और बीजिंग पर रही है।
1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो लेफ्ट ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया, क्योंकि उस समय सोवियत संघ का ब्रिटेन से समझौता था। लेफ्ट का कहना था कि भारत में ब्रिटेन के खिलाफ आंदोलन हिटलर की नाजी सेनाओं को हराने के लिए बने गठबंधन को कमजोर करेगा। उस समय कम्युनिस्ट नेताओं को भारत की आजादी की नहीं, बल्कि सोवियत संघ की जीत की चिंता थी।
20 अक्टूबर 1962 को जब चीन ने भारत पर हमला किया, तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने दबे सुर में चीन का समर्थन किया था। विद्युत चक्रवर्ती अपनी पुस्तक इंडियन कम्युनिज़्म में लिखते हैं कि लेफ्ट नेता सुंदरैया ने नक्शों और पुराने कागज़ातों के आधार पर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि चीन के दावों में सच्चाई है।
1962 में कम्युनिस्ट नेताओं ने बीजिंग नजदीक, दिल्ली दूर का नारा दिया था। कहा जाता है कि जब मास्को और बीजिंग में बारिश होती है, तो भारतीय कम्युनिस्ट नेता छाता निकाल लेते हैं। भारत के लेफ्ट नेता पहले सोवियत संघ और अब चीन के मॉडल वाली सियासत करते हैं। इसी विदेश आयातित विचारधारा की वजह से उन्हें भारत माता की तस्वीर चुभती है, और यही कारण है कि आज लेफ्ट सिर्फ केरल तक सीमित रह गया है।
#DNAWithRahulSinha | भारत माता से नफरत करने वाला मंत्री कौन? भारत में रहकर.. भारत माता से नफरत क्यों?#DNA #Kerala #PPrasad @RahulSinhaTV pic.twitter.com/hJaYv8yiC1
— Zee News (@ZeeNews) June 6, 2025
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