उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि सरकार एक विशेष मामले में FIR दर्ज करने में भी लाचार है, क्योंकि न्यायिक आदेश इसमें बाधक है। उन्होंने यह बात चंडीगढ़ में बार एसोसिएशन के सदस्यों के साथ राजभवन में हुई मुलाकात के दौरान कही।
धनखड़ ने कहा कि यह आदेश तीन दशक से भी पुराना है और अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर का कोई पदाधिकारी अनुमति नहीं देता, FIR दर्ज नहीं की जा सकती। उन्होंने पीड़ा और व्याकुलता में सवाल उठाया कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई, जो न्यूनतम कदम था और सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था।
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि उन्होंने यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव ही एकमात्र उत्तर है? अगर कोई ऐसा अपराध हुआ है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन की नींव को हिला देता है, तो उसे दंड क्यों नहीं मिला? तीन महीने से अधिक समय बीत चुका है और जांच की शुरुआत भी नहीं हुई है। अदालतें पूछती हैं कि FIR में देरी क्यों हुई।
धनखड़ ने न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते हुए पूछा कि क्या न्यायाधीशों की समिति को संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त है? क्या उसकी रिपोर्ट से कोई ठोस कार्यवाही हो सकती है? अगर संविधान में न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्ताव द्वारा निर्धारित है, तो यह समिति FIR का विकल्प नहीं हो सकती।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट है, किसी और को नहीं। अगर कोई ऐसा कृत्य सामने आता है जो अपराध है और उसके पीछे नकदी की बात सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाई जाती है, तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?
उन्होंने खुशी जताई कि देशभर की बार एसोसिएशन इस मुद्दे को उठा रही हैं और आशा व्यक्त की कि FIR दर्ज होगी। उन्होंने कहा कि अनुमति पहले दिन दी जा सकती थी, रिपोर्ट आने के बाद तो कम से कम दी ही जानी चाहिए थी। उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त किया जिन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया।
उपराष्ट्रपति ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए कहा कि न्याय प्रणाली एक अत्यंत पीड़ादायक घटना से जूझ रही है, जो मार्च मध्य में दिल्ली में एक कार्यरत न्यायाधीश के निवास पर हुई थी। वहां से नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध, बेहिसाब और अपवित्र थी। यह जानकारी 6-7 दिन बाद सार्वजनिक हुई। कल्पना कीजिए, यदि यह बाहर नहीं आती, तो क्या होता? उन्होंने पूछा कि यह जानना जरूरी है कि यह पैसा किसका है? इसकी मनी ट्रेल क्या है? क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य में प्रभाव डाला?
धनखड़ ने कहा कि जनता का विश्वास सभी संस्थाओं में अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह सोचकर कि यह मामला ठंडा पड़ जाएगा, गलत होगा। उन्होंने जोर दिया कि जो लोग इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए। केवल गहन, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जांच ही जनता का विश्वास बहाल कर सकती है।
उन्होंने सरवान सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1957 के एक प्रसिद्ध मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि एक ऐसा अपराध हुआ है जिसने न्यायपालिका और लोकतंत्र की नींव हिला दी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इसका संज्ञान लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में वकीलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है और जब न्याय प्रणाली खतरे में हो तो बार के सदस्यों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।
#WATCH | Chandigarh: On the row over Former Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma, Vice President Jagdeep Dhankhar says, A painful incident happened in mid-March in Delhi at the residence of a sitting judge. There was a cash obviously tainted, unaccounted, illegal and… pic.twitter.com/z3eloxfMw8
— ANI (@ANI) June 6, 2025
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