IPL: सट्टा या बुद्धि का खेल? 35 करोड़ लोगों की उम्मीदों का DNA विश्लेषण
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क्रिकेट को धर्म मानने वाले देश में, क्रिकेट प्रेमियों की हालत हमेशा दोयम दर्जे की क्यों होती है? कभी स्टेडियम में भीड़ में दबकर मरना, तो कभी मैच देखने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहना। हर साल टीम बनाने के खेल में करोड़ों रुपये हारना, यह आम बात है।

कल रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने 18 साल बाद मैच जीता, तो उसे इनाम के तौर पर 20 करोड़ रुपये मिले। हारने वाली पंजाब किंग्स को भी साढ़े 12 करोड़ रुपये मिले। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, कल देश के करोड़ों लोग 4 हजार 400 करोड़ रुपये हार गए।

करोड़ों लोगों ने IPL के महा-मुकाबले में ऑनलाइन फैंटेसी स्पोर्ट्स में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 2-3 लोगों को छोड़कर 35 करोड़ से ज़्यादा लोगों को जीत की कोई ट्रॉफी नहीं मिली। वे निराश हैं, हताश हैं और अपने भाग्य को कोस रहे हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिसे आप खेल रहे हैं, वो भाग्य का खेल ही नहीं है? सट्टेबाजी के इस अजीबोगरीब खेल का विश्लेषण आज हम कर रहे हैं।

अहमदाबाद में 22 यार्ड वाले पिच पर रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और पंजाब किंग्स के बीच मुकाबला हुआ, लेकिन स्टेडियम के बाहर 35 करोड़ से ज़्यादा खिलाड़ियों के बीच भी मुकाबला हुआ। यह था द ग्रेट इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स मुकाबला , जो बीते 2 महीने से चल रहा था।

रातों-रात अमीर होने वाला यह मुकाबला बीते 17 वर्षों से चल रहा है। लेकिन खेल के इस रिंग में हर साल खिलाड़ियों का हारना और रिंगमास्टर का जीतना तय होता है। क्या आपको पता है क्रिकेट के इस सालाना 2 महीने के जश्न में ऑनलाइन फैंटेसी स्पोर्ट्स कराने वाली कंपनियों को कितने करोड़ रुपये की कमाई होती है?

एक रिसर्च के मुताबिक, IPL के हर मैच में एक व्यक्ति औसत 127 रुपये खर्च करता है। इस साल IPL के दौरान कुल 74 मैच हुए। यानी एक व्यक्ति ने पूरे IPL के दौरान 9 हजार 398 रुपये खर्च किए। फैंटेसी स्पोर्ट्स कराने वाली कंपनियों के रिपोर्ट्स के आधार पर 35 करोड़ से ज़्यादा लोग IPL के दौरान फैंटेसी स्पोर्ट्स के ज़रिए टीम बनाने की कोशिश करते हैं। यानी कुल मिलाकर बीते 2 महीने में फैंटेसी स्पोर्ट्स कराने वाली कंपनियों को 3 लाख 28 हजार करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई हुई।

लेकिन टीम बनाने वाले लोगों को क्या मिला? केवल चिल्लर। दरअसल, बिना मेहनत करोड़पति बनने का सपना अक्सर टूट ही जाता है। 35 करोड़ लोगों में 2-3 ही ऐसे किस्मत वाले होते हैं जो बड़ी रकम जीत पाते हैं। इसके बावजूद इस खेल को किस्मत का खेल नहीं कहा जाता है, बल्कि इसे बुद्धि का खेल बताया गया है।

हमारे कानून में सट्टेबाजी को किस्मत के खेल के तौर देखा गया है। इसीलिए सट्टेबाजी और जुए को अपराध माना गया है, लेकिन फैंटेसी स्पोर्ट्स को बुद्धि का खेल बताकर इसे कानूनी मान लिया गया है। जबकि सच ये है कि बुद्धि का यह खेल भाग्य का ही खेल है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने IPL में हो रही सट्टेबाजी को लेकर चिंता जताई थी। सुनवाई के दौरान ये आंकड़ा दिया गया था कि तेलंगाना में पिछले कुछ वर्षों में फैंटेसी स्पोर्ट्स मुकाबला और सट्टेबाजी की वजह से 1023 लोगों ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि इन सभी को काफी नुकसान हुआ था। मद्रास हाईकोर्ट ने रात 12 बजे से सुबह 5 बजे तक के लिए ऑनलाइन रियल मनी गेम्स खेलने पर रोक लगाने और खेलने वाले खिलाड़ियों को 18 वर्ष से ज़्यादा उम्र होने का प्रमाण-पत्र देने के फैसले को सही ठहराया है। तमिलनाडु में ऑनलाइन गेमिंग में पैसे हारने के बाद करीब 50 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।

सट्टेबाजी, जो भाग्य का खेल है, उसे सख्त कानून की कमियों का फायदा उठाकर बुद्धि का खेल, कुशलता का पैमाना बताकर विज्ञापनों के दम पर अरबों का वैध कारोबार बना दिया गया है। मेटा के मुताबिक, फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म को सोशल मीडिया पर प्रमोट करने के लिए 1 हजार से ज़्यादा तरीके के विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इसीलिए आसानी से कोई भी फैंटेसी खेल के इस जाल में फंस जाता है।

अगर आपके पास लाखों रुपये नहीं हैं तो आप क्या करेंगे? उधार लेंगे और उसके बाद भी हार गए तो फिर क्या करेंगे? इसीलिए हमारा सवाल यही है कि भाग्य का यह खेल बुद्धि का खेल कैसे हो गया?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आज देश में 300 से ज़्यादा ऑनलाइन फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म हैं और माना जा रहा है कि अगले 5 वर्षों में इस पर रजिस्टर्ड लोगों की संख्या 50 करोड़ से ज़्यादा हो जाएगी। अभी देश की करीब 34 फीसदी आबादी इस गेम को खेल रही है। इसमें हमने 18 साल से कम उम्र के बच्चों को शामिल नहीं किया है जिनके लिए फैंटेसी स्पोर्ट्स लीगल नहीं है। अब इसमें सट्टेबाजी को भी जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा काफी बढ़ सकता है। फैंटेसी स्पोर्ट्स मुकाबला के अलावा भारत में सट्टेबाजी का बाजार 8 लाख करोड़ से ज़्यादा का है और एक अनुमान के मुताबिक इससे हर साल सरकार को 2 लाख करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हो रहा है।

कई फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म पर नाबालिग बच्चों को भी रजिस्टर्ड करने, क्रिप्टो में चुपचाप पेमेंट करने जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इसीलिए आप भी अपने बच्चों पर नज़र रखें। देखें क्या वो पॉकेट मनी या काम के लिए दिए गए पैसों से क्रिकेट देखने के नाम पर सट्टेबाजी का बुद्धि का खेल तो नहीं खेल रहे हैं।

कहते थे क्रिकेट एक जेंटलमैन गेम है, लेकिन अब क्रिकेट फटाफट खेल बन चुका है, जिसमें क्रिकेटर्स की नीलामी भी होती है और क्रिकेटर्स फटाफट अमीर और मशहूर भी हो जाते हैं। क्रिकेट प्रेमी भी फटाफट अमीर होना चाहते हैं और इसी उम्मीद में लगातार 2 महीने बुद्धि का खेल खेलते हैं, 400-500 घंटे की मेहनत करते हैं, लेकिन अंत में निराशा हाथ लगती है।

विज्ञापन के शोर, बड़े स्टार्स की अपील, करोड़ों रुपये जीतने का लालच लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है और सख्त कानून की कमी से ऑनलाइन सट्टेबाजी को बढ़ावा देने की मजबूत पिच तैयार हो जाती है। लेकिन पैसा आपका है, इसीलिए आपको ही तय करना है।

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