बिहार में चिराग का दांव या दुविधा? क्या पिता रामविलास से बड़े मौसम एक्सपर्ट हैं चिराग?
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बिहार में अगले 6 महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी दल अपनी-अपनी राजनीतिक घेराबंदी में जुटे हैं. आमतौर पर बिहार में चुनाव एनडीए और महागठबंधन के बीच होता है.

पिछली बार बिहार विधानसभा का चुनाव बिखरा हुआ था, जिसका फायदा आरजेडी वाले महागठबंधन को मिला था. आरजेडी ने सबसे अधिक 75 सीटें जीती थीं, लेकिन कांग्रेस अपने स्ट्राइक रेट में पिछड़ गई, वरना आज बिहार में महागठबंधन की सरकार होती.

2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान अकेले 134 सीटों पर लड़े थे और जीते केवल एक, मगर 5.7 फीसदी वोट लाकर जेडीयू का गणित बिगाड़ दिया था और जेडीयू 44 सीटों पर सिमट गई थी. उस वक्त चिराग ने बीजेपी से 30 के आसपास सीटें मांगी थीं, जो नहीं मिलीं और वे अकेले लड़े थे.

उपेन्द्र कुशवाहा भी अलग लड़े थे. वे बीएसपी और ओवैसी की पार्टी के साथ एक नया फ्रंट बनाकर लड़े थे. मुकेश सहनी जरूर एनडीए के साथ थे, मगर इस बार वे तेजस्वी यादव के साथ हैं. लोकसभा चुनाव में चिराग एनडीए के साथ थे. उन्हें पांच सीटें मिलीं और उन्होंने सभी सीटों पर सफलता पाई. चिराग को लगता है सत्ता की चाभी उनके हाथ में हो सकती है... लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी को 6.5 फीसदी वोट मिले थे.

इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जेडीयू के साथ-साथ चिराग, मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा भी हैं. इस बार लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में मंत्री पद और 5 सांसदों के साथ चिराग का कद काफी बढ़ा है और बीजेपी उनके साढ़े 6 फीसदी वोट को खोना नहीं चाहती, इसलिए सीटों के सौदेबाजी में चिराग पिछली बार की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं.

सूत्रों की मानें तो चिराग इस बार 40 से अधिक सीटें चाहते हैं और उनको लगता है कि बिहार में सत्ता की चाभी शायद उनके ही हाथों में हो.

चिराग इस बार अच्छी संख्या में सीटों पर लड़ना चाहते हैं. बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद चिराग अपने आप को भावी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करना चाहते हैं. खुद विधानसभा चुनाव लड़ने की बात नहीं कर रहे, मगर कहते हैं कि मेरा दिल तो बिहार में है और एक दिन जरूर जाऊंगा और उनकी पार्टी उनसे विधानसभा चुनाव लड़ने की अपील करती है, इसका मतलब ये निकाला जा रहा है कि चिराग इस बार अच्छी संख्या में सीटों पर लड़ना चाहते हैं.

कई जानकार मानते हैं कि जिस तरह चिराग के पिता राम विलास पासवान मौसम की तरह राजनीति का रुख भांप लेते थे, उसी तरह चिराग भी इस बार बिहार में करने वाले हैं और इसलिए उनकी पार्टी उनके विधानसभा चुनाव लड़ने का दांव खेल रही है, जैसे कि 20 साल पहले 2005 के चुनाव में रामविलास पासवान ने किया था.

2005 में राम विलास पासवान यूपीए की सरकार में मंत्री थे, मगर बिहार में अकेले लड़े और 29 सीटें जीतकर किंग मेकर के रूप में उभरे. मुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर उन्होंने पेंच फंसा दिया था, आरजेडी 75 सीट लेकर भी सरकार नहीं बना पाई थी, नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री बने थे, मगर सरकार चला नहीं पाए और बिहार में दोबारा चुनाव हुआ था.

क्या चिराग कुछ ऐसा तो नहीं करने वाले हैं, फिलहाल इसका तो कुछ पता नहीं, मगर हर बीतते दिन बिहार का चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है, क्योंकि यदि चिराग बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं तो मंत्री बनने के लिए तो नहीं लड़ेंगे, वे मुख्यमंत्री की कुर्सी देख रहे होंगे. यानी चिराग को अधिक सीटें भी देनी पड़ सकती हैं, तब जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा क्या करेंगे, यह भी देखना होगा. इसका मतलब है बिहार चुनाव में अभी बहुत मजा आने वाला है.

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