अजय राय की घोषणा, इमरान मसूद के बयान... बदल रहे समीकरण, UP में सपा-कांग्रेस का साथ कब तक?
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी समय है, लेकिन कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बयानों ने सपा-कांग्रेस गठबंधन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस अब अपनी ताकत दिखाने का फैसला कर चुकी है और पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव से पहले की तैयारी मान रही है।

समाजवादी पार्टी दस सालों के बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है, वहीं कांग्रेस को भी अच्छे दिनों की उम्मीद है। अब कांग्रेस समाजवादी पार्टी से अपनी शर्तों पर गठबंधन करना चाहती है।

इमरान मसूद का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को किसी सहारे की जरूरत नहीं है। वे मुसलमानों को संदेश दे रहे हैं कि अखिलेश यादव के साथ रहने से उन्हें सिर्फ दरिया बिछाने का काम मिलेगा।

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, मेरा मतलब था कि क्या समाजवादी पार्टी के लिए दूसरों के सहारे पर निर्भर रहना अच्छा है? हम अपनी पार्टी और संगठन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ताकि हमें किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता न हो।

वहीं, यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने घोषणा की है कि पार्टी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। राय का कहना है कि इससे पार्टी अपने संगठन को मजबूत करना चाहती है। गठबंधन में न रहने से अधिक कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा। पंचायत चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर ही विधानसभा चुनाव का टिकट तय होगा।

अजय राय ने गाजीपुर दौरे के दौरान पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का बयान दिया। यह ध्यान देने योग्य है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है। पिछले महीने ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश ने विधानसभा चुनाव साथ लड़ने की घोषणा की थी।

दोनों दल गठबंधन में हैं, लेकिन गठबंधन धर्म निभाने में हिचकिचा रहे हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में अभी दो साल हैं, लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पहले ही आमने-सामने आने की तैयारी कर रही हैं। रणनीति यही है कि जो जीता वही सिकंदर ।

लोकसभा चुनाव में गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन दोनों पार्टियां इसका श्रेय अपने-अपने तरीके से ले रही हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 43 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि भाजपा को सिर्फ 36 सीटें मिली थीं।

लोकसभा में मिली जीत को लेकर कांग्रेस को लगता है कि दलितों और मुसलमानों ने उनके कारण वोट किया। समाजवादी पार्टी पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को PDA के नाम पर अपना बताती है। विधानसभा उपचुनाव में भी दोनों दलों में तालमेल नहीं बन पाया था।

कांग्रेस अब यूपी में फ्रंट फुट पर खेलने का मन बना चुकी है। उसे लगता है कि यही सही समय है। समाजवादी पार्टी का पिछलग्गू बनकर कांग्रेस का कल्याण नहीं हो सकता है। पार्टी अपने पुराने राजनीतिक समीकरणों पर काम कर रही है।

कुछ महीने पहले यूपी में दस सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हुए थे, लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में सीटों का तालमेल नहीं हो पाया। मामला महाभारत जैसा है, कोई भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि यूपी में कांग्रेस और सपा का साथ आखिर कब तक रहता है।

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