अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने देश के सबसे पुराने शिक्षा संस्थानों में से एक, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के खिलाफ मनमाने फैसले लेते हुए विदेशी छात्रों के दाखिले पर प्रतिबंध लगा दिया था।
हार्वर्ड ने भी तुरंत प्रतिक्रिया दी और कोर्ट जाकर ट्रंप के फैसले पर स्टे लगवा दिया। ट्रंप को लग रहा था कि वो अमेरिका में सबसे पावरफुल हैं, लेकिन एक कोर्ट ने उनका यह भ्रम तोड़ दिया।
ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को एडमिशन देने पर रोक लगाई थी। इसके तुरंत बाद हार्वर्ड ने ट्रंप सरकार के फैसले को चुनौती दी और अर्जी दाखिल होने के कुछ घंटों के भीतर ही जज एलिसन बरोज ने ट्रंप प्रशासन के फैसले पर रोक लगा दी।
हालांकि, यह रोक अभी अस्थायी है। इसका मतलब है कि हार्वर्ड फिलहाल अंतरराष्ट्रीय छात्रों को एडमिशन दे सकता है। इस मामले पर अगली सुनवाई 29 मई को होगी, जो भारतीय छात्रों के लिए राहत की खबर है।
हार्वर्ड में साल 2024 और 25 में 788 भारतीय छात्रों ने एडमिशन लिया था। वहां हर साल औसतन 500 से 800 भारतीय छात्र दाखिला लेते हैं। हार्वर्ड में 6700 से ज्यादा विदेशी छात्र हैं, जहां 10 में से 3 छात्र विदेशी हैं। भारतीय छात्रों की संख्या दूसरी सबसे बड़ी है, जबकि पहले नंबर पर चीन है।
हार्वर्ड समेत यूएस की अन्य यूनिवर्सिटी में मौजूद भारतीय छात्रों की वजह से अर्थव्यवस्था में सालाना 76000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान होता है। कई भारतीय छात्रों ने हार्वर्ड में डॉक्टरेट और ग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिला लिया है। ट्रंप प्रशासन ने ऐसे छात्रों को ट्रांसफर कराने के लिए कहा था, लेकिन इंडियन स्टूडेंट्स के लिए शैक्षणिक सत्र के बीच में ही ट्रांसफर कराना लगभग नामुमकिन था। कोर्ट के फैसले ने छात्रों का कीमती समय बर्बाद होने से बचा लिया और भारतीय छात्रों को तत्काल राहत मिल गई।
ट्रंप के लिए चिंता की बात यह है कि यह फैसला देने वाले जज की अदालत में ही हार्वर्ड को 22 हजार करोड़ की फंडिंग रोके जाने का मामला भी आया है, जो ट्रंप के इशारे पर रोकी गई थी।
ट्रंप प्रशासन ने आरोप लगाया था कि हार्वर्ड ने अपने विश्वविद्यालय में यहूदियों के प्रति भेदभाव समाप्त नहीं किया। हालांकि, हार्वर्ड इन आरोपों से साफ इनकार कर रहा है।
इससे पहले, ट्रंप ने आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल को भारत में फोन बनाने की फैक्ट्री लगाने से मना किया। लेकिन जब एप्पल ने अपना कदम पीछे नहीं हटाया तो ट्रंप ने टैरिफ लगाने की धमकी दी। इसके बावजूद एप्पल पीछे हटने को तैयार नहीं है।
2009 से 2023 तक हार्वर्ड ने 45000 से ज्यादा पेटेंट फाइल किए, जो किसी प्रोडक्ट/अविष्कार को बनाने या बेचने का अधिकार होता है। हार्वर्ड से जुड़े रिसर्चर्स और पूर्व छात्रों को 160 से अधिक नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं।
हार्वर्ड के पूर्व छात्र बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की, जबकि मार्क जकरबर्ग ने फेसबुक की स्थापना की। दोनों की मदद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अरबों-खरबों डॉलर का योगदान हुआ और लाखों लोगों को नौकरियां भी मिलीं। हालांकि, इन दोनों ने भी हार्वर्ड की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया था।
माना जाता है कि हार्वर्ड की मदद से अमेरिका आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी AI में दुनिया में सबसे आगे है। हार्वर्ड के पूर्व छात्रों में बराक ओबामा और जॉन एफ केनेडी जैसे 8 अमेरिकी राष्ट्रपति और कुल 188 अरबपति शामिल हैं।
आईएमएफ की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ, उद्योगपति रतन टाटा और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन भी हार्वर्ड के छात्र रह चुके हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी एक तरह से ग्लोबल लेवल पर अमेरिका की सॉफ्ट पावर जैसी है, क्योंकि यहां भारत सहित दुनिया भर का टैलेंट पहुंचता है। ट्रंप मनमानी करके इस विश्वविद्यालय को टारगेट करके खुद अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने की कोशिश कर रहे हैं।
#DNAWithRahulSinha | सबसे शक्तिशाली इंसान एक जज से हार गया! अमेरिका में ट्रंप से ज्यादा पावरफुल कौन ?
— Zee News (@ZeeNews) May 24, 2025
अमेरिका में ट्रंप की बड़ी हार का DNA टेस्ट#DNA #DonaldTrump #HarvardUniversity #USA @RahulSinhaTV pic.twitter.com/IqsDgohY2X
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