पाकिस्तान की ओर से दागी गई चीनी पीएल-15ई मिसाइल को नष्ट कर भारत ने एक बड़ा कारनामा किया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने ये सफलता हासिल की।
सिर्फ मिसाइलों को मार गिराया ही नहीं, भारत ने मलबे को भी बरामद किया है। अब इस मिसाइल के मलबे ने वैश्विक ताकतों का ध्यान खींचा है। फाइव आईज देश (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका), फ्रांस और जापान इस मलबे को हासिल करने में रुचि दिखा रहे हैं।
पंजाब के होशियारपुर में 9 मई, 2025 को इस मिसाइल के न सिर्फ टुकड़े मिले, बल्कि मिसाइल लगभग पूरी तरह से सुरक्षित भी मिली है।
भारतीय वायु सेना के एयर मार्शल भारती ने 12 मई, 2025 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पाकिस्तान ने जे-10सी और जेएफ-17 लड़ाकू विमानों से ये मिसाइलें दागी थीं, लेकिन भारत की एस-400 और आकाश तीर एयर डिफेंस सिस्टम ने इन्हें नाकाम कर दिया।
पीएल-15ई एक अत्याधुनिक लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है, जिसे चीन ने बनाया है। यह 300 किलोमीटर तक की रेंज और मैक 5 की गति के साथ दुश्मन के विमानों को निशाना बना सकती है।
होशियारपुर में मिला मलबा प्रणोदन प्रणाली, डेटा लिंक, रडार सीकर और इनर्शियल रेफरेंस यूनिट जैसी महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है, जो चीन की सैन्य तकनीक को समझने के लिए अहम है।
वैश्विक ताकतों की भी इस मलबे में रुचि इसीलिए है, क्योंकि यह फाइव आईज, फ्रांस और जापान को चीन की मिसाइल तकनीक की गहराई से जाँच करने का मौका देगा।
भारत इस मलबे को डीआरडीओ लैब में विश्लेषण के लिए भेज रहा है और माना जा रहा है कि अमेरिका जैसे मित्र देशों को भी इस डेटा तक पहुँच मिल सकती है।
रिवर्स इंजीनियरिंग यानी किसी तकनीक को तोड़कर उसकी बनावट और कार्यप्रणाली समझना, सैन्य और तकनीकी क्षेत्र में क्रांति ला चुका है। दुनिया भर में देशों ने दुश्मन की तकनीक को रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए कॉपी किया और अपनी ताकत बढ़ाई है।
चीन ने रिवर्स इंजीनियरिंग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। सोवियत संघ के मिग-21 जेट को कॉपी कर जे-7 फाइटर जेट बनाया। रूस के सु-27 जेट की रिवर्स इंजीनियरिंग से जे-11 और जे-16 जैसे फाइटर जेट विकसित किए।
अमेरिका ने भी रिवर्स इंजीनियरिंग का सहारा लिया। 1976 में सोवियत पायलट विक्टर बेलेनको ने मिग-25 जेट को जापान में उतारकर शरण माँगी। अमेरिका और जापान ने मिलकर इस जेट के पुर्जे-पुर्जे को खोल लिया और इसकी तकनीक का गहरा अध्ययन किया।
पीएल-15ई मिसाइल की रिवर्स इंजीनियरिंग से भारत और फाइव आईज देशों को कई फायदे हो सकते हैं। सबसे पहले, इस मिसाइल के एक्टिव रडार सीकर और ड्यूल-पल्स मोटर की तकनीक को समझकर भारत अपनी मिसाइल रक्षा प्रणालियों को और मजबूत कर सकता है।
डीआरडीओ इस डेटा का इस्तेमाल आकाश, बराक-8 और नई मिसाइलों को बेहतर बनाने में कर सकता है।
पाकिस्तान के पास जे-10सी और जेएफ-17 जैसे विमान हैं, जो पीएल-15ई ले जा सकते हैं। इस तकनीक को समझकर भारत अपनी वायु सेना को इन खतरों से निपटने के लिए तैयार कर सकता है।
चीन के खिलाफ भारत को रणनीतिक लाभ मिलेगा। पीएल-15ई की कमजोरियों को जानकर भारत अपनी राफेल, सुखोई-30 और तेजस विमानों की रक्षा रणनीति को मजबूत कर सकता है।
फाइव आईज देशों के लिए यह मलबा चीन की सैन्य ताकत को समझने का सुनहरा मौका है।
पीएल-15ई मिसाइल का मलबा भारत के लिए एक तकनीकी खजाना है। रिवर्स इंजीनियरिंग से भारत न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन के खिलाफ भी अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत कर सकता है।
*VIDEO | Special Defence Briefing on India-Pakistan military action: DGMO Lt Gen Rajiv Ghai says, Our airfields are operational by all means. The air defence grid failed attack launched by Pakistani drones and weaponised UAVs. Rest of the drones were shot down by our… pic.twitter.com/2LpvlefjDM
— Press Trust of India (@PTI_News) May 12, 2025
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