लाल आतंक पर बड़ा चाबुक: माओवादियों के लिए काल बना सिक्योरिटी फोर्सेज का सबसे बड़ा ऑपरेशन
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लाल आतंक को जड़ से मिटाने के लिए भारत सरकार लगातार काम कर रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने कई बार देश को नक्सलवाद से मुक्त कराने की बात कही है, और सुरक्षा बलों ने काफी हद तक इसमें सफलता भी हासिल की है।

छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टालु हिल (केजीएच) क्षेत्र में 21 अप्रैल से 11 मई 2025 के बीच देश के इतिहास में सबसे बड़ा नक्सल विरोधी अभियान चलाया गया। इस दौरान 16 महिलाओं सहित 31 माओवादियों को मार गिराया गया।

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष कार्य बल (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और राज्य पुलिस बलों के संयुक्त प्रयास से यह सफलता मिली है। इस सफलता के बाद नक्सलगढ़ में नए सुरक्षा शिविर भी बनाए गए हैं, और नक्सलियों के कब्जे वाली जगहों को भी मुक्त कराया गया है।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले बीजापुर में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे अभियान में 22 कुख्यात नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही, आधुनिक हथियार और विस्फोटक भी जब्त किए गए हैं।

सुकमा जिले में 33 नक्सलियों ने सरकार की आत्मसमर्पण नीति में विश्वास जताते हुए आत्मसमर्पण किया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि 11 आत्मसमर्पण बड़ेसेट्टी पंचायत में हुए, जिससे यह पहली पंचायत बन गई जिसे नक्सल-मुक्त घोषित किया गया।

सुरक्षा बलों के लगातार एक्शन से नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भी गिरावट आ रही है। अप्रैल 2018 में यह संख्या 126 से घटकर 90 हो गई, जुलाई 2021 में 70 और अप्रैल 2024 में 38 हो गई। सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या भी 12 से घटकर 6 हो गई है। इन जिलों में छत्तीसगढ़ के चार जिले (बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा), झारखंड का एक (पश्चिमी सिंहभूम) और महाराष्ट्र का एक (गढ़चिरौली) शामिल हैं।

कुल 38 प्रभावित जिलों में से सबसे जनक चिंता वाले जिलों की भी संख्या 9 से घटकर 6 हो गई। ये 6 जिले आंध्र प्रदेश (अल्लूरी सीताराम राजू), मध्य प्रदेश (बालाघाट), ओडिशा (कालाहांडी, कंधमाल और मलकानगिरी) और तेलंगाना (भद्राद्री-कोठागुडेम) हैं। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या भी 17 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ (दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी), झारखंड (लातेहार), ओडिशा (नुआपाड़ा) और तेलंगाना (मुलुगु) के जिले शामिल हैं।

पिछले 10 वर्षों में 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है, जिसके परिणामस्वरूप नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 20 से भी कम रह गई है।

वामपंथी उग्रवाद, जिसे नक्सलवाद के रूप में जाना जाता है, भारत की सबसे गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और माओवादी विचारधारा से प्रेरित इन लोगों ने काफी हद तक आदिवासी-बहुल क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इनका उद्देश्य भारतीय राज्य को कमजोर करना है। ये लोग अक्सर सुरक्षा बलों और सार्वजनिक बुनियादी ढांचों को निशाना बनाते हैं। भारत सरकार ने कहा है कि 31 मार्च 2026 तक पूरी तरह से नक्सलवाद खत्म हो जाएगा।

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