बलूचिस्तान: संयुक्त राष्ट्र में मान्यता के लिए पत्र, दिल्ली में खुलेगा दूतावास!
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पाकिस्तान के साथ बलूचिस्तान का इतिहास दर्द और तनाव से भरा रहा है। दावों के विपरीत, बलूचिस्तान 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के गठन का हिस्सा नहीं था। भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिलने से कुछ ही दिन पहले बलूचिस्तान ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था। लेकिन पाकिस्तान में जबरन विलय के घटनाक्रम में बलूचिस्तान की आज़ादी को दबा दिया गया।

1946 में, जब ब्रिटेन से आज़ादी की संभावना दिख रही थी, तो कलात के खान ने कलात की आज़ादी की वकालत करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को अपना वकील नियुक्त किया था। 1947 में दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक में लॉर्ड माउंटबेटन, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना के साथ कलात के खान शामिल थे। इस बैठक में यह तय किया गया कि कलात एक स्वतंत्र देश रहेगा। लेकिन जिन्ना ने खारन, लास-बेला और मकरान को कलात के साथ मिलाकर एकीकृत बलूचिस्तान बनाने का प्रस्ताव रखा।

11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच हुए समझौते में कहा गया कि बलूचिस्तान, भारत और पाकिस्तान के साथ आजाद होगा। कलात के खान ने तीन दिन पहले 12 अगस्त को आजादी की घोषणा कर दी। लेकिन सितंबर 1947 में, अंग्रेजों ने दावा किया, कि कलात स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकता। खान ने जिन्ना से समाधान की मांग की, लेकिन जिन्ना ने पाकिस्तान में विलय करने की सलाह दी।

बढ़ते दबाव के बावजूद बलूचिस्तान विधानमंडल ने पाकिस्तान के साथ विलय को ठुकरा दिया। मार्च 1948 में, जिन्ना ने खारन, लास-बेला और मेकरान को कलात से अलग करके पाकिस्तान में मिला दिया। मार्च 1948 के अंत तक, पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में घुस गई, और खान को विलय ना करने पर धमकियां दीं। खान को मजबूर होकर बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय कराना पड़ा।

इस बलपूर्वक विलय से बलूचों में विश्वासघात की भावना पनपने लगी। प्रिंस करीम खान ने 1948 में अपनी स्वायत्तता और संस्कृति को बचाए रखने के लिए राष्ट्रवादी विद्रोह की शुरुआत की, जिसे सेना ने कुचल दिया। दशकों तक विद्रोह जारी रहा क्योंकि पाकिस्तानी दमन के खिलाफ नए नेता उभरते चले गए।

2000 के दशक की शुरुआत में नवाब अकबर खान बुगती के नेतृत्व में फिर से आंदोलन शुरू हुआ। उन्होंने बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की मांग की। 2006 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने अकबर खान बुगती की हत्या करवा दी, जिसने पहले से उपजे असंतोष को एक हिंसक अशांति में बदल दिया।

बलूचिस्तान को लेकर पाकिस्तान के सामने मौजूदा मुद्दा सिर्फ आजादी का है और बलूच अपनी संस्कृति को पाकिस्तान से बचाना चाहते हैं। 1948 से चले आ रहे इस विद्रोह ने अब तेजी पकड़ ली है। हाल ही में बलूचिस्तान के नेता मीर यार बलोच ने बलूचिस्तान की आजादी का दावा किया है।

मीर यार बलोच ने यूनाइटेड नेशन्स से बलूचिस्तान में शांति सेना भेजते हुए उनके देश को लोकतांत्रिक गणराज्य की स्वतंत्र मान्यता देने का लिखित अनुरोध किया है। उन्होंने भारत से बलूचिस्तान के आधिकारिक कार्यालय और दिल्ली में दूतावास की इजाजत देने को भी कहा है। मीर यार जल्दी स्वतंत्रता की परेड कराने और उसमें अपने मित्र देशों को बुलाने का दावा भी कर रहे हैं।

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