एक शरीर, दो आत्मा: भारत के खिलाफ एकजुट हुए तुर्की और अजरबैजान
News Image

भारत द्वारा पाकिस्तान में किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद विश्व समुदाय में पाकिस्तान लगभग अकेला पड़ गया है। बड़ी शक्तियां खुलकर भारत का विरोध करने से हिचकिचा रही हैं। हालांकि, तुर्की और अजरबैजान खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में उतर आए हैं।

तुर्की और अजरबैजान ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान का साथ दिया है और भारत की इस कार्रवाई की निंदा की है। मलेशिया भी इन दोनों देशों के सुर में सुर मिला रहा है।

तुर्की पहले से ही पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है, और अजरबैजान तुर्की के प्रभाव में आकर पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा है। इन दोनों देशों के रिश्ते एक शरीर, दो आत्मा जैसे हैं। तुर्की जो करता है, अजरबैजान भी उसी का अनुसरण करता है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी यही देखने को मिला। पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी ठिकानों पर हमले के बाद तुर्की और अजरबैजान के विदेश मंत्रालयों ने अलग-अलग बयान जारी किए, जिनमें पाकिस्तान के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया।

तुर्की के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक बयान पोस्ट किया, जिसमें कहा गया, हम पाकिस्तान और भारत के बीच हो रही घटनाओं पर चिंता से नजर रख रहे हैं। भारत द्वारा किया गया हमला एक व्यापक युद्ध के खतरे को बढ़ाता है। हम ऐसे भड़काऊ कदमों के साथ-साथ नागरिकों और नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना बनाकर किए गए हमलों की निंदा करते हैं।

अजरबैजान के विदेश मंत्रालय ने भी हमले के बाद एक बयान जारी करते हुए कहा, हम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य हमलों की निंदा करते हैं, जिसमें कई नागरिक मारे गए और घायल हुए। पाकिस्तान के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, हम निर्दोष पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।

दोनों देशों ने अपने बयानों में पूर्ण पैमाने पर युद्ध की संभावना पर चिंता व्यक्त की है और संयम बरतने की अपील की है।

तुर्की और अजरबैजान के रिश्ते की गहराई भारत-पाकिस्तान तनाव में एक बार फिर सामने आई है। आइए जानते हैं कि आखिर इन दोनों देशों के मजबूत रिश्तों की क्या वजह है।

अजरबैजान के 30 अगस्त 1991 को सोवियत संघ (USSR) से आजाद होने के बाद तुर्की पहला देश था जिसने 30 अगस्त 1991 को स्वतंत्र अजरबैजान को मान्यता दी थी। दोनों देशों के बीच 14 जनवरी 1992 को राजनयिक संबंध स्थापित हुए और तुर्की ने बाकू में दूतावास और नखचिवान व गंजा में कंसुलेट खोला। जबकि अजरबैजान का अंकारा में दूतावास और इस्तांबुल व कार्स में कांसुलेट है।

दोनों देशों के बीच रणनीतिक और व्यापारिक बहुआयामी संबंध हैं। इनको मजबूत करने के लिए 2010 में हाई लेवल स्ट्रैटेजिक कोऑपरेशन काउंसिल (HLSC) की स्थापना हुई और 2021 में शुषा डिक्लेरेशन के साथ संबंधों को गठबंधन स्तर तक ले जाने की प्रतिबद्धता जताई गई।

2020 में शुरू हुए दूसरे अजरबैजान-आर्मेनिया युद्ध में तुर्की का अजरबैजान को समर्थन स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। तुर्की ने हर तरह से अजरबैजान को यह युद्ध जीतने में मदद की। तुर्की की मदद से ही अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख पर अपना पूरा नियंत्रण हासिल किया। कुछ खबरों में दावा किया गया है कि इस युद्ध में अजरबैजान का पाकिस्तान और इजराइल ने भी समर्थन किया था।

कुछ अन्य वेब स्टोरीज

Story 1

बलूच विद्रोहियों का जोरदार हमला: रिमोट बम से उड़ाया पाक सैनिकों का वाहन, 14 की मौत

Story 1

ऑपरेशन सिंदूर: हाई अलर्ट के बीच 27 एयरपोर्ट बंद, 400 उड़ानें रद्द

Story 1

आतंकी मसूद अजहर की चीख-पुकार, ऑपरेशन सिंदूर पर संजय सिंह का बड़ा बयान

Story 1

शादी के दिन भयंकर तूफान! टेंट को पकड़े थे 25 लोग, फिर आसमान में ही देखते रह गए सब

Story 1

9 मई तक 27 एयरपोर्ट बंद: क्या आपकी उड़ान भी रद्द हो गई?

Story 1

पाकिस्तान में PSL मैच से पहले स्टेडियम तबाह!

Story 1

रोहित शर्मा के संन्यास के बाद कौन बनेगा ओपनर? ये नाम हैं सबसे आगे!

Story 1

लाहौर में ताबड़तोड़ धमाके, पाकिस्तानी एयरस्पेस सील!

Story 1

ऑपरेशन सिंदूर जारी: सरकार का बड़ा बयान, अब आगे क्या?

Story 1

ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार का बड़ा बयान: पिक्चर अभी बाकी है!