128 साल की उम्र में योग गुरु शिवानंद बाबा का निधन, पीएम मोदी ने बताया अपूरणीय क्षति
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वाराणसी में लोकप्रिय योग गुरु शिवानंद बाबा, जिन्हें धरती पर सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति माना जाता था, का 128 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने शनिवार, 3 मई, 2025 को बीएचयू के अस्पताल में अंतिम सांस ली। डॉक्टर देवाशीष ने बताया कि रात 8:30 बजे उनका निधन हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने एक्स पर लिखा, योग साधक और काशी निवासी शिवानंद बाबा जी के निधन से अत्यंत दुःख हुआ है। योग और साधना को समर्पित उनका जीवन देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। योग के जरिए समाज की सेवा के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया था। शिवानंद बाबा का शिवलोक प्रयाण हम सब काशीवासियों और उनसे प्रेरणा लेने वाले करोड़ों लोगों के लिए अपूरणीय क्षति है। मैं इस दुःख की घड़ी में उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ।

शिवानंद बाबा अन्न ग्रहण नहीं करते थे, और वे योग साधना में निपुण थे। इस उम्र में भी वे प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में स्नान करने के लिए पहुंचे थे। उनका पार्थिव शरीर दुर्गाकुंड स्थित आश्रम पर लाया गया, जहां शिष्यों द्वारा हरिश्चंद्र घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

शिवानंद बाबा ने पूरी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया। वे लंबे समय से भेलूपुर स्थित कबीरनगर में रह रहे थे। उनका जन्म 8 अगस्त, 1896 को पश्चिम बंगाल के श्रीहट्टी में एक भिक्षुक गोस्वामी परिवार में हुआ था। विभाजन के बाद उनके परिवार को देश छोड़ना पड़ा। यह जगह अब बांग्लादेश में है।

उन्हें मार्च 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

उनके माता-पिता भीख मांगकर जीवन यापन करते थे। जब वे केवल 6 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता और बहन तीनों भूख से मर गए। उनके परिवार ने उन्हें नवद्वीप के रहने वाले बाबा ओंकारनंद गोस्वामी को सौंप दिया, जिनसे उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।

शिवानंद बाबा अपनी कहानी को संघर्ष भरी बताते थे। वे वाराणसी में अपने मताधिकार का प्रयोग करना कभी नहीं भूलते थे। वे अपने स्वास्थ्य का राज बताते हुए कहते थे कि इच्छा ही समस्त समस्याओं की जड़ है, और उन्हें न किसी चीज से लगाव है और न तनाव।

कहा जाता है कि वे स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के काफी करीब थे और दोनों के बीच अच्छा रिश्ता था। दोनों हमउम्र थे और एक ही इलाके में रहते थे। यह भी दावा किया जाता है कि उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को करीब से देखा था।

1977 में वे वृंदावन चले गए और दो साल वहां रहने के बाद 1979 में वाराणसी आ गए, जहां वे तब से रह रहे थे। आने वाले हर शख्स को बाबा खुद अपने हाथों से खाना परोस कर खिलाते थे। महामारी के दौरान कोरोना टीका लगाने के बाद उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों को आशीर्वाद भी दिया था।

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