कश्मीर अटैक: आतंकियों की घुसपैठ और संचार के आधुनिक तरीके
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2 अगस्त 2000 को पहलगाम के नुनवान बेस कैंप में अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ। आतंकवादियों ने सुरक्षा घेरे तोड़कर अंधाधुंध गोलीबारी की और बम विस्फोट किए, जिसमें 21 अमरनाथ यात्रियों समेत कुल 31 लोग मारे गए।

उसी दिन, पहलगाम से 50 किलोमीटर दूर मीर-बाजार क़ाज़ीकुंड में 18 मजदूरों की हत्या कर दी गई। ईंट-भट्ठे में काम करने वाले सात मजदूरों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। ये सभी मजदूर यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश से आए थे।

इस हिंसा की आंच जम्मू तक पहुंची। डोडा ज़िले में 11 लोगों को चुन-चुन कर मारा गया। एक ही रात में 89 लोगों की मौत हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लश्कर-ए-तैयबा को जिम्मेदार ठहराया।

22 अप्रैल को पहलगाम में फिर से आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 टूरिस्ट मारे गए और 17 घायल हो गए। पीड़ितों के परिजनों को कहा गया कि जाओ मोदी से बोल दो ।

आतंकवादी या तो बाहर के होते थे या स्थानीय। वे उन लोगों को निशाना बनाते थे जिनके होने से आतंक को खतरा महसूस होता था। उनके पास बंदूकें और जंगल में रहने के लिए भोजन होता था। वे अलग-अलग संगठनों में शामिल होते रहते थे। इन सभी का सरगना पाकिस्तान था।

पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी ISI ने आतंक के इकोसिस्टम को सींचा और कत्ल-ए-आम करने के लिए आतंकियों को भेजा। ऐसे में सवाल उठता है कि ये आतंकवादी संगठन इतने सालों से एक ही तरीके से काम करने में कैसे कामयाब हो रहे हैं?

1987 के विधानसभा चुनाव में NC और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। MUF को सिर्फ चार सीटें मिलीं। MUF के युसूफ शाह ने धांधली का आरोप लगाया और बंदूक उठाने की कसम खाई। उसने सैयद सलाहउद्दीन नाम धारण किया और हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ गया।

1989 तक कश्मीर में मिलिटेंसी शुरू हो गई। बड़ी संख्या में स्थानीय लड़के भारत के खिलाफ हथियार उठाने लगे। पाकिस्तान ने इसे बढ़ावा दिया। लड़के बॉर्डर क्रॉस करते, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हथियारों की ट्रेनिंग लेते और वापस आ जाते। उनके साथ कुछ पाकिस्तानी भी घुसते थे।

अक्सर सीमा पार से आने वाले आतंकी और उग्रवादी भारत में एंट्री लेने के लिए पाकिस्तान आर्मी की फायरिंग का सहारा लेते हैं। कई बार उन इलाकों से एंट्री की कोशिश की जाती है, जहां कंटीले तार नहीं हैं।

अब कश्मीरी युवा कम संख्या में पाकिस्तान जाते हैं। घुसपैठ करने वाले अधिकतर आतंकी पाकिस्तानी हैं, जो वहां की आर्मी की स्पेशल फोर्स विंग से जुड़े हुए हैं।

आतंकवादियों के लिए सबसे जरूरी हथियार इंटेलिजेंस इनपुट यानी सूचना होती है। किस इलाके में अटैक होना है, वहां सुरक्षा एजेंसियों की कितनी तादाद है, सुरक्षा में क्या लूपहोल्स हैं।

2003 की एक रिपोर्ट के अनुसार, संचार आतंकवाद की रीढ़ था। आतंकवादी संगठनों ने LOC के दोनों तरफ एक मजबूत संचार तंत्र बना रखा था।

अब आतंकियों ने स्पेशल फोन्स का इस्तेमाल शुरू किया है, जिनमें कोई नंबर नहीं डाला जा सकता है और जिन्हें बिना इंटरनेट के एक्टिवेट किया जाता है। वे YSMS नाम की एनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन सर्विस का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें बिना सिम के फ़ोन को रेडियो वेव की मदद से कनेक्ट किया जाता है।

आतंकवादी लोगों का नेटवर्क तैयार करते हैं जो उन्हें ख़ुफ़िया जानकारी लाकर देते हैं। वे स्थानीय लोगों से पनाह, खाना, खबरें और गाइड लेते हैं। आतंकियों की मदद करने वाले इन लोगों को overground workers (OGWs) कहते हैं।

युवाओं को फंसाने के लिए झूठी कहानियों और प्रचार का सहारा लिया जाता है। उन्हें मसूद अजहर जैसे कट्टरपंथी नेताओं के भड़काऊ भाषण दिखाए जाते हैं और पैन-इस्लामिक आंदोलन का हिस्सा बनने का सपना दिखाया जाता है।

पैसा और शोहरत भी युवाओं को आतंकवाद की ओर खींचते हैं।

2019 में आर्टिकल 370 के निष्प्रभावी होने के बाद, लश्कर के कुछ स्लीपर सेल्स ने मिलकर एक नया ग्रुप बनाया - TRF। ISI समर्थित पाक ऑक्युपाइड कश्मीर में बैठे हुए हैंडलर्स ने TRF में जान डालने की कोशिश की।

TRF जैसे नए संगठन कश्मीर में अन्य राज्यों से आने वालों को निशाना बनाते हैं। इसके अलावा ये बाहरियों को निशाना बनाने की बात कहते हैं।

पहलगाम के बैसारन का मैदान, जो जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है, को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां सुरक्षा व्यवस्था थोड़ी कमजोर है।

आतंकियों के संगठन छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर हिट एंड रन की रणनीति अपनाते हैं। वे तेज़ी से हमला करते हैं, ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, और तुरंत जंगलों में वापस चले जाते हैं।

TRF की सोशल मीडिया गतिविधियां लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूहों के प्रति सहानुभूति दिखाती हैं। मार्च 2020 में पकड़े गए आतंकियों से पूछताछ में पता चला कि उन्हें टेलीग्राम पर एंड्रयू जोन्स और व्हाट्सएप पर खान बिलाल नाम के पाकिस्तानी ऑपरेटिव से निर्देश मिले थे।

TRF जैसे संगठनों की गुरिल्ला वारफेयर, इंटरनेट और प्लैटफॉर्म्स पर उनकी पकड़ और साथ ही नए नवेले वेपन्स उन्हें कई हमलों में मदद करते हैं। लेकिन हमारी फौज और सुरक्षा एजेंसियां लगी हुई हैं। पहलगाम में भी सर्च ऑपरेशन जारी है।

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