बलूचिस्तान में एक बार फिर दहशत का माहौल है. सादे कपड़ों में आने वाले लोग, बिना नंबर प्लेट की गाड़ियों में सवार होकर, लोगों को उठा ले जाते हैं. फिर कुछ दिनों बाद मिलती है क्षत-विक्षत लाश. यह पाकिस्तान की कुख्यात किल एंड डंप (हत्या करके ठिकाने लगाना) नीति का एक डरावना सच है.
पिछले कुछ महीनों में बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह की आग फिर से भड़क उठी है. बलूच महिलाएं और युवा पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ इस विद्रोह को आगे बढ़ा रहे हैं. इस विद्रोह की वजह है पाकिस्तानी एजेंसियों की क्रूर किल एंड डंप नीति.
पाकिस्तान ने पहली बार 2009 में इस नीति को अपनाया था. इसका मकसद था बलूचिस्तान के लोगों की आवाज को दबाना. इस रणनीति में लोगों को निशाना बनाकर उनकी हत्या की जाती है या उनका अपहरण कर लिया जाता है, ताकि असहमति और विरोध की आवाजों को दबाया जा सके. इस नीति के लागू होने के बाद से हजारों लोग मारे गए हैं और कई लापता हैं.
बलूच वुमन फोरम (BWF) ने हाल ही में इस किल एंड डंप नीति की कड़ी निंदा की है. संगठन ने पाकिस्तानी सरकार की अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के प्रति प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाए हैं.
BWF की प्रवक्ता ने एक बयान जारी कर कहा कि ये घटनाएं बलूच लोगों को व्यवस्था से अलग करने की मानसिकता को दर्शाती हैं. प्रवक्ता ने बताया कि पिछले तीन दिनों में अवैध रूप से हिरासत में लिए गए तीन बलूच युवाओं के शव मकुरण और नाल (खुजदार) के अलग-अलग स्थानों पर मिले हैं.
नाल के रहने वाले फारूक अहमद को 14 अप्रैल को जबरन हिरासत में लिया गया था. यह बलूचिस्तान में गुमशुदगी के मामलों के पैटर्न के अनुरूप है. 15 अप्रैल को उसका शव नाल के समद चेक पोस्ट क्षेत्र से मिला. द बलूचिस्तान पोस्ट के अनुसार, शव पर प्रताड़ना के निशान थे.
ग्वादर जिले में पासनी के निवासी निजाम बलूच को 12 अप्रैल को उसके घर से अवैध रूप से उठाकर एक अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया. उसे 4 घंटों तक प्रताड़ित किया गया. 16 अप्रैल को उसका शव पासनी में मिला. द बलूचिस्तान पोस्ट का दावा है कि उसे भयंकर शारीरिक यातना दी गई थी.
एक अन्य मामले में, पासनी निवासी शेर खान निजार को 15 अप्रैल को तुरबत के जुस्साक इलाके से हिरासत में ले लिया गया. उसे बिना किसी पूर्व सूचना या कानूनी वारंट के पकड़ा गया था. निजार पढ़ाई के साथ-साथ एक डीजल डिपो पर पार्ट टाइम काम भी करता था. 16 अप्रैल की रात को उसका शव तुरबत विश्वविद्यालय के पीछे मिला. अन्य मामलों की तरह, उसके शव पर घावों के निशान थे.
बलूच क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने के मामले सामने आए हैं. गुमशुदा लोग अलग-अलग आयु वर्ग और कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं. चश्मदीदों का आरोप है कि यह काम पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों का है. हिरासत में लिए गए कुछ लोगों को कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया, लेकिन उनमें से अधिकांश की हत्या हो गई. कई अभी भी अवैध हिरासत में कैद हैं.
सरकार को संबोधित एक बयान में BWF ने कहा, हम जबरन गायब किए गए बलूच लोगों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग करते हैं. ऐसे मामलों ने बलूच समाज की शांति और स्थिरता को गहरी चोट पहुंचाई है. हम प्राधिकारी संस्थाओं से अनुरोध करते हैं कि इन मामलों के पीछे जो लोग हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए.
किल एंड डंप नीति बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई से निपटने की पाकिस्तानी रणनीति का एक कड़वा सच है. पाकिस्तान द्वारा प्रवर्तित यह नीति लोगों को जबरन गायब करने, उत्पीड़न और गैर-कानूनी हत्याओं पर केंद्रित है. पीड़ितों के शव अक्सर क्षत-विक्षत हालत में मिलते हैं, जो बताते हैं कि मौत से पहले उन्हें कितना कष्ट पहुंचाया गया होगा. उनके शव खुले में या दूरदराज के सड़कों के आसपास फेंक दिए जाते हैं. इन शवों की पहचान भी जनता या परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है. इन शवों के साथ एक संदेश होता है: पाकिस्तान के खिलाफ आवाज न उठाएं.
पीड़ितों को अक्सर सादे लिबास वाले लोग उठाते हैं, जो बिना नंबर प्लेट की गाड़ियों में आते हैं. माना जाता है कि इन लोगों का संबंध ISI जैसी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी या फ्रंटियर कॉर्प्स जैसे अर्धसैनिक बल से होता है. लोगों को उनके घरों, सार्वजनिक स्थलों या शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों के दौरान कहीं से भी उठा लिया जाता है. कई मामलों में लोग महीनों या सालों तक गुमशुदा रहते हैं.
वॉइस फोर बलूच मिसिंग पर्संस जैसे स्थानीय अधिकार समूहों ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसे हजारों मामले उजागर किए हैं. 2011 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने वी कैन टॉर्चर, किल ओर कीप यू फोर ईयर्स शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर इन अपहरणों और हत्याओं का आरोप लगाया गया था.
किल एंड डंप नीति के शिकार अक्सर बलूच युवा होते हैं, जिनमें छात्र, पत्रकार, कवि और राष्ट्रवादी शामिल हैं. उनके शरीर पर यातना के निशान होते हैं, जिनमें क्षत-विक्षत अंग, उखड़े हुए नाखून, सिगरेट से जलाने के निशान, तेजाब के निशान और गोलियों के घाव शामिल हैं. पीड़ितों का शव सार्वजनिक या अर्ध-सार्वजनिक स्थलों पर फेंक दिया जाता है, ताकि लोगों को आतंकित किया जा सके.
पाकिस्तान में न्यायपालिका उत्पीड़न के लिए किसी को भी जवाबदेह ठहराने में नाकाम रही है. सैन्य एजेंसियां जांच के दायरे में नहीं आती हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय हितों के अंतर्गत काम करती हैं. देश में एड ऑफ सिविल पॉवर रेगुलेशन जैसा कानून लागू है, जो सुरक्षा बलों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के लोगों को हिरासत में रखने की अनुमति देता है.
बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत से बलूचिस्तान में 6000 से अधिक क्षत-विक्षत शव मिल चुके हैं. बड़ी संख्या में लोग अभी भी गायब बताए जा रहे हैं, जिनकी जांच की कोई उम्मीद नहीं है.
किल एंड डंप पॉलिसी असल में बलूच पहचान को मिटाने का एक हथियार है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPAC) परियोजना के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वालों को भी इसमें निशाना बनाया जाता है.
बलूच आबादी के साथ भयानक उत्पीड़न के पर्याप्त सबूतों के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले में बहुत कम आवाज उठाई है. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचारों की ओर से आंखें फेर रखी हैं.
पाकिस्तान में मीडिया संस्थानों पर सेना का नियंत्रण है. वे ऐसा विमर्श गढ़ते हैं कि बलूचिस्तान के लोग विदेश प्रायोजित गतिविधियों का हिस्सा हैं. इन मीडिया संस्थानों का मकसद गैर-कानूनी हत्याओं, सैन्य कब्जे, नस्लीय सफाये और संसाधनों के दोहन जैसी घरेलू शिकायतों से ध्यान भटकाना है.
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सख़्ती को बढ़ाने में चीन की भूमिका अहम है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) एक अरबों डॉलर की परियोजना है, जिसने बलूचिस्तान को एक उपेक्षित प्रांत से सैन्यीकृत आर्थिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया है. ग्वादर बंदरगाह सीपैक परियोजना की मुकुट-मणि है, लेकिन इसके फायदे अभी तक स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंचे हैं.
सीपैक मार्गों और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए बलूचिस्तान में हजारों की तादाद में सैन्यकर्मी तैनात हैं. यह सैन्यकरण चीनी हितों को देखते हुए किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप घरों पर छापे, गिरफ्तारियां और कर्फ्यू लगे हैं. चीन ने इस पर चुप्पी साधी हुई है, और उसका सरकारी मीडिया बलूच आंदोलन को आतंकी विद्रोह बताता है.
चीनी कंपनियों को बलूचिस्तान में खनन अधिकारों से लाभ मिला है, जिससे स्थानीय लोग बेदखल और बेरोजगार हो गए हैं. इन परियोजनाओं का विरोध करने वाले या तो जबरन अगवा कर लिए गए या ग्रामीण इलाकों में अज्ञात शव पाए गए.
वॉइस फोर बलूच पर्संस (VBMP) के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत के बाद से 20,000 से अधिक बलूच लोग जबरन गायब कर दिए गए हैं. परिवारों को गिरफ्तारी का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं मिला है और न ही संबंधित व्यक्ति के बारे में जानकारी मिली है.
बलूच मानवाधिकार परिषद के अनुसार, जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 के बीच 367 लोग गायब हो गए और 79 लोगों के शव मिले, जिनकी गैर-क़ानूनी ढंग से हत्या कर दी गई थी.
बलूच लोग गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, लेकिन दुनिया अभी तक खामोश है. पाकिस्तान की किल एंड डंप नीति तमाम लोगों का जीवन ले चुकी है. इन लोगों की बात सुनने के बजाय, सरकार उनका दमन करने में लगी है. इससे पहले कि बलूचिस्तान में और जानें जाएं, दुनिया को आगे आकर आवाज उठानी चाहिए.
Reimplementation of “Kill and Dump” policy in Balochistan is a question on the face of state’s human rights stance:
— Baloch Women Forum (@BalochWF) April 17, 2025
Central Spokesperson
Baloch Women Forum (BWF)
The reimplementation of former “Kill and Dump” policy by state authorities in Balochistan is a question on the face… pic.twitter.com/OcYZoiiRyl
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