अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर ने देश को गर्वित किया है, लेकिन हाल ही में एक घटना ने सामाजिक समरसता के दावों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद, जो पासी समुदाय से हैं, को मंदिर में रामलला के दर्शन करने से पहले ही रोक दिया गया। यह दलित भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है।
वायरल वीडियो में साफ दिख रहा है कि सांसद अवधेश प्रसाद को मुख्य मूर्ति के पास जाने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें दूर से ही दर्शन कराए गए।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विलास खरात ने इस घटना पर आक्रोश जताते हुए कहा कि भाजपा और RSS आज भी दलितों को अछूत मानती है।
अवधेश प्रसाद उत्तर प्रदेश के अयोध्या से समाजवादी पार्टी के सांसद हैं। उन्होंने हमेशा सामाजिक न्याय और दलितों के अधिकारों की आवाज उठाई है। उनके साथ ऐसा व्यवहार दर्शाता है कि दलित भेदभाव सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के साथ भी होता है।
यह सवाल उठता है कि क्या मंदिर सिर्फ उच्च जातियों के लिए है? मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे, लेकिन उनके मंदिर में एक दलित को भीतर तक नहीं जाने दिया गया।
विपक्षी दलों ने इस घटना को धर्म के नाम पर ब्राह्मणवाद थोपने का प्रयास बताया है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि यह सुरक्षा कारणों से हुआ था।
हालांकि उन्नाव पुलिस ने कहा कि यह घटना 2022 की है और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की गई थी, लेकिन इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति दर्शाती है कि केवल FIR दर्ज करना पर्याप्त नहीं है।
मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों में जातिगत भेदभाव के खिलाफ सख्त दिशा-निर्देश और निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।
चंद्रयान चाँद पर पहुंच चुका है, लेकिन एक दलित सांसद भगवान के दर्शन तक नहीं कर सकता। यह घटना हर उस व्यक्ति की है जिसे जाति के नाम पर नीचा दिखाया जाता है।
दलित भेदभाव एक सामाजिक अभिशाप है जिसे केवल कानून नहीं, बल्कि जन-जागरूकता और आत्मचिंतन से मिटाया जा सकता है।
क्या हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं जहां दलित भेदभाव का कोई नामोनिशान न हो? शुरुआत आज और अभी से करनी होगी।
*भाजपा, RSS ke ब्राह्मण जिन्हें आज भी अछूत मान रही है।
— Dr.Vilas Kharat (@vilas1818) April 8, 2025
यह है राम मंदिर की असलियत।
ऐसे सांसद मर क्यों नहीं जाते?@narendramodi pic.twitter.com/ccCRO3zHzV
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