चेन्नई में शनिवार को परिसीमन के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और ओडिशा के नेताओं ने भाग लिया। इस बैठक में लोकसभा सीटों के परिसीमन पर चर्चा की गई।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और अन्य प्रमुख नेता इस बैठक में शामिल हुए।
स्टालिन ने बैठक में कहा कि सच्चा संघीय ढांचा तभी बन सकता है जब राज्य स्वायत्तता से काम करें और तभी विकास संभव है।
बैठक में पारित प्रस्ताव में मांग की गई कि लोकसभा सीटों का परिसीमन अगले 25 साल के लिए स्थगित कर दिया जाए। इससे पहले, 5 मार्च को तमिलनाडु में हुई सर्वदलीय बैठक में कहा गया था कि परिसीमन से तमिलनाडु में लोकसभा सीटों की संख्या 7.18 फ़ीसदी से कम नहीं होनी चाहिए।
तमिलनाडु सरकार ने 5 मार्च को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के पुनर्गठन से तमिलनाडु जैसे जनसंख्या को सीमित रखने वाले राज्यों पर पड़ने वाले संभावित असर पर चर्चा की गई।
स्टालिन ने कहा कि यदि पुनर्गठन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो इसका दक्षिणी राज्यों पर बहुत ज़्यादा असर पड़ेगा। उन्होंने पुनर्गठन का विरोध करते हुए कहा कि जिन राज्यों ने सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी जनसंख्या को नियंत्रित किया है, उन्हें लोकसभा में प्रतिनिधित्व के लिहाज से नुक़सान होगा।
केरल, तेलंगाना और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने भी स्टालिन की राय का समर्थन किया। बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि केंद्र सरकार 25 साल तक परिसीमन को रोके और इसकी घोषणा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संसद में की जानी चाहिए। यह भी मांग की गई कि निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्गठन पारदर्शी तरीके से किया जाए और 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय सीटों की संख्या बरकरार रखी जाए।
डीएमके सांसद कनिमोझी का मानना है कि लोकसभा सीटों की संख्या 800 से अधिक करने से कुछ राज्यों को बहुत ज़्यादा सीटें मिल जाएंगी, जिससे लोकसभा का मौजूदा संतुलन बिगड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि अगले 25 साल तक लोकसभा सीटों की संख्या मौजूदा 543 पर ही बनी रहनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार आर मणि का मानना है कि इस बैठक से स्टालिन को राष्ट्रीय स्तर पर लाभ होगा। उन्होंने कहा कि जब मोदी सरकार निर्वाचन क्षेत्र पुनर्गठन पर बात करना शुरू करेगी, तो स्टालिन को इसका लाभ मिलेगा और हर कोई इसके बारे में बात करना शुरू कर देगा।
हालांकि, तृणमूल कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन वे बैठक में शामिल नहीं हुए। आर मणि का कहना है कि स्टालिन खुद को राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के ख़िलाफ़ एक राजनीतिक नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके कारण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक में भाग नहीं लिया।
वरिष्ठ पत्रकार मालन का कहना है कि स्टालिन पूरे देश को अपनी अहमियत दिखाने के लिए इस तरह का काम कर रहे हैं और इंडिया अलायंस की तरह अपनी बैठक में सबको आमंत्रित कर ख़ुद की छवि को ऊपर उठाना चाहते हैं।
आर मणि ने बीजेपी की आलोचना को बेतुका बताते हुए कहा कि लोकसभा सीटों के पुनर्गठन को कैसे अंजाम दें, इसे इंदिरा गांधी और वाजपेयी भी नहीं सुलझा सके, लेकिन इसे लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता।
डीएमके के संचार प्रमुख टीकेएस इलांगोवन ने कहा कि ममता बनर्जी अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, इसलिए वह नहीं आईं। उन्होंने कहा कि वे केवल दक्षिणी राज्यों पर ध्यान दे रहे हैं, क्योंकि वे सबसे अधिक प्रभावित हैं।
तमिलनाडु बीजेपी के राज्य महासचिव राम श्रीनिवासन ने इस बैठक को गुप्त युद्ध के रूप में देखा है और कहा कि केंद्र सरकार ने निर्वाचन क्षेत्र पुनर्गठन के संबंध में कुछ नहीं कहा है, और इस पर अभी तक कोई फ़ैसला नहीं लिया गया है।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा है कि बिना ताज़ा जनगणना के परिसीमन नहीं हो सकता है और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान का संशोधन कर कहा था कि साल 2026 के बाद पहली जनगणना तक परिसीमन को आगे बढ़ाया जाएगा।
#WATCH | Delhi: On delimitation row, Congress MP Jairam Ramesh says, Delimitation cannot be done without a fresh census. Atal Bihari Bajpai amended the Constitution to say that the delimitation will be postponed till we complete the first census after 2026, which means 2031.… pic.twitter.com/cJ5BfHC3QK
— ANI (@ANI) March 22, 2025
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