सूरज से भी दोगुना गर्म! फिर भी धरती में एंट्री करते हुए क्यों नहीं जलता स्पेसक्राफ्ट?
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जब कोई वस्तु तेजी से किसी सतह से टकराती है, तो गर्मी पैदा होती है. कल्पना कीजिए, एक स्पेसक्राफ्ट हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर रहा है. इस दौरान उस पर कितना घर्षण और तापमान बढ़ता होगा!

तापमान 14,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जो सूर्य की सतह के तापमान से भी दोगुना है. इतने अधिक तापमान पर किसी भी धातु का पिघलना निश्चित है. फिर सवाल उठता है कि स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय जलकर राख क्यों नहीं हो जाता?

अंतरिक्ष में मौजूद कोई भी वस्तु गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की ओर खिंचती है. जब कोई स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो उसकी गति लगभग 28,000 किमी/घंटा होती है. इतनी तेज गति से वायुमंडल में प्रवेश करने पर हवा के कणों से जबरदस्त टकराव होता है. यह टकराव अत्यधिक गर्मी पैदा करता है, जो किसी भी सामान्य धातु को तुरंत पिघला सकती है.

यह वही प्रक्रिया है जो उल्कापिंडों के साथ होती है. जब वे पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो जलकर भस्म हो जाते हैं. लेकिन स्पेसक्राफ्ट ऐसा नहीं करते, क्योंकि वैज्ञानिकों ने उन्हें बचाने के लिए एक विशेष प्रकार की ढाल (हीट शील्ड) बनाई है.

स्पेसक्राफ्ट का सुरक्षा कवच, हीट शील्ड, एक विशेष परत होती है जो स्पेसक्राफ्ट को घर्षण और उच्च तापमान से बचाती है. इसे बनाने के लिए वैज्ञानिक थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम (TPS) का उपयोग करते हैं. यह सिस्टम कई विशेष पदार्थों से बना होता है जो आग जैसी गर्मी को सहन कर सकते हैं.

स्पेसक्राफ्ट की सुरक्षा के लिए दो मुख्य प्रकार की हीट शील्ड का उपयोग किया जाता है:

  1. एब्लेटिव हीट शील्ड: यह एक ऐसी परत होती है जो गर्मी के संपर्क में आने के बाद धीरे-धीरे जलती और झड़ती जाती है. यह हर सेकंड सतह की ऊपरी परतों को हटा देती है, जिससे अंदर की सतह सुरक्षित रहती है. अपोलो मिशन में चंद्रमा से लौटने वाले यान इसी तकनीक से सुरक्षित रहे थे. गैलीलियो प्रोब जब बृहस्पति के वातावरण में प्रवेश कर रहा था, तब इसका भार 152 किलोग्राम से घटकर 70 किलोग्राम रह गया, क्योंकि इसका अधिकतर हिस्सा जलकर झड़ गया था. इस हीट शील्ड में कार्बन फेनोलिक नामक पदार्थ का उपयोग किया जाता है.

  2. रियूजेबल हीट शील्ड: यह एक स्थायी ढाल होती है, जो जलती नहीं बल्कि गर्मी को सहन करके वापस अंतरिक्ष में बिखेर देती है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्पेस शटल है, जो कई बार इस्तेमाल किए जाने वाले विशेष सिरेमिक टाइल्स से ढका होता था. ये टाइलें 1,650 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकती हैं.

जब कोई स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो उसे अचानक अपनी गति को कम करना होता है. यह धीमापन हीट शील्ड के माध्यम से घर्षण के कारण पैदा हुई गर्मी को सहने में मदद करता है. स्पेसक्राफ्ट को स्किपिंग स्टोन टेक्निक से भी धीमा किया जाता है, जिसमें वह वातावरण में उछलता हुआ अंदर आता है.

अगर किसी स्पेसक्राफ्ट पर हीट शील्ड नहीं होगी, तो वह वातावरण में प्रवेश करते ही जलकर राख हो जाएगा. 2003 में कोलंबिया स्पेस शटल दुर्घटना इसका एक दुखद उदाहरण है. जब कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी पर लौट रहा था, तो उसकी एक सिरेमिक टाइल टूट गई थी. इसकी वजह से अत्यधिक गर्मी अंदर प्रवेश कर गई और पूरा स्पेसक्राफ्ट जलकर नष्ट हो गया. इस हादसे में सात अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी.

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