राज ठाकरे का सनसनीखेज आरोप: महाराष्ट्र में 96 लाख फर्जी वोटर!
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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया है कि महाराष्ट्र की मतदाता सूची में करीब 96 लाख फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल किए गए हैं.

मुंबई के गोरेगांव में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए ठाकरे ने कहा कि यह फर्जीवाड़ा आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में धांधली करने के लिए किया गया है. उन्होंने मांग की है कि जब तक मतदाता सूचियों का पूरी तरह से सत्यापन नहीं हो जाता और सभी राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें स्वीकार नहीं कर लिया जाता, तब तक चुनाव स्थगित कर दिए जाएं.

ठाकरे ने आरोप लगाया कि मुंबई में 8 से 10 लाख और ठाणे, पुणे और नासिक में करीब 8 से 8.5 लाख फर्जी मतदाता जोड़े गए हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि इस तरह की हेराफेरी चुनावों को पूर्व-निर्धारित बना रही है, जिससे नागरिकों को सही लोकतांत्रिक विकल्प से वंचित होना पड़ रहा है. उन्होंने धांधली वाले चुनावों को मतदाताओं का सबसे बड़ा अपमान बताया और चेतावनी दी कि इससे चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता कमजोर हो रही है.

एमएनएस चीफ ने सत्तारूढ़ बीजेपी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी की आलोचना की. उन्होंने आरोप लगाया कि ये पार्टियां मतदाता सूची में गड़बड़ी से फायदा उठा रही हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि जब उनके आरोप पूरी तरह से चुनाव आयोग पर केंद्रित थे, तो इन दलों ने बचाव वाली प्रतिक्रिया क्यों दी, जिससे यह संकेत मिलता है कि उन्हें अनियमितताओं की जानकारी थी.

ठाकरे ने यह भी कहा कि यह कथित रणनीति 2024 के विधानसभा चुनावों से पहले भी इस्तेमाल की गई थी, जहां महायुति के 232 विधायक चुने गए थे और राज्य अविश्वास में रह गया था. उन्होंने इशारा किया कि चुनाव में हेराफेरी के तरीके जनता के लिए तेजी से स्पष्ट हो गए हैं.

रैली के दौरान, ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उनके विपक्षी दिनों का एक पुराना वीडियो भी चलाया, जिसमें मोदी ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया था - जिससे बीजेपी की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं.

राज ठाकरे ने दोहराया कि वह 2016-17 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) और मतदाता सूची में विसंगतियों के बारे में चिंताएं उठाते रहे हैं. महाराष्ट्र स्थानीय चुनावों की तैयारी कर रहा है और उनके आरोपों ने राजनीतिक तनाव बढ़ा दिया है और चुनावी पारदर्शिता पर बहस फिर से शुरू हो गई है.

चुनाव आयोग ने अभी तक उनके दावों का जवाब नहीं दिया है.

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