भारत में इन दिनों मुसलमानों का खलीफा बनने की रेस चल रही है. और I LOVE मोहम्मद (स.अ.) के नाम पर इस रेस का मजहबी ट्रैक उत्तर प्रदेश में बनाया गया है, जहां योगी आदित्यनाथ की सरकार है. I LOVE मोहम्मद का ये अभियान कैसे अब मुसलमान बनाम मुसलमान में बदल गया है.
I LOVE मोहम्मद अभियान का एक धड़ा सड़कों पर उतरकर सर तन से जुदा के नारे लगाता है. शहर-शहर होने वाली हिंसा की तस्वीरें भी सामने आई हैं. अब, मुसलमानों का एक दूसरा धड़ा भी सामने आ गया है. ये धड़ा, सड़क पर पोस्टर नहीं लहराता, I LOVE मोहम्मद का बैनर नहीं दिखाता, मस्जिद के सामने पत्थर भी नहीं फेंकता. ये धड़ा, I LOVE मोहम्मद अभियान का ही विरोध कर रहा है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ पदाधिकारी और देवबंदी विचारधारा से जुड़े मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा है- पैगंबर मोहम्मद से प्रेम को सड़कों पर दिखाने की कोई जरूरत नहीं है. यानी देवबंदी विचारधारा को मानने वाले मुस्लिम I LOVE मोहम्मद जैसी किसी मुहिम या प्रोटेस्ट के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन को भड़काने के पीछे सोची समझी रणनीति है. और जानबूझकर यूपी को इस आंदोलन की प्रयोगशाला बनाया गया. मौलाना सज्जाद नोमानी, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य हैं और देवबंदी विचारधारा से जुड़े हैं. उनका कहना है कि सड़क पर उतरकर I LOVE मोहम्मद का इजहार करना ठीक नहीं है. यानि मौलाना तौकीर रजा जिस मुद्दे पर बरेली को जलाने पर आमादा थे, उसी मुद्दे पर मौलाना सज्जाद नोमानी की राय बिल्कुल अलग है. मौलाना नोमानी साफ साफ कह रहे हैं कि पैगंबर मोहम्मद से प्रेम को सड़कों पर दिखाने की जरूरत नहीं है.
सिर्फ एक दिन पहले यूपी से चार अलग-अलग शहरों से चार संदिग्ध आतंकी गिरफ्तार किए गए. सुल्तानपुर से अकमल रजा, सोनभद्र से सफर सलमानी उर्फ अली रजवी, कानपुर से मोहम्मद तौसीफ और रामपुर से कासिम अली को गिरफ्तार किया गया. ये चारों मुजाहिदीन आर्मी नाम का संगठन बनाकर हिंसक जिहाद के जरिए सरकार को उखाड़ फेंकने और देश में शरिया कानून लागू करने की योजना रच रहे थे.
त्योहार के दौरान इस्लामी कट्टरपंथी यूपी में विवाद फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. श्रावस्ती में हिंदू श्रद्धालुओं और एक दुर्गा पूजा पंडाल पर हमला किया. उन पर पथराव किया. ये सारी घटनाएं बताती हैं यूपी में हिंसा और कट्टरपंथी साजिशें कोई संयोग नहीं है, बल्कि ये एक सोचा समझा प्रयोग है.
उत्तर प्रदेश में 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 3 करोड़ 85 लाख मुसलमान रहते थे. ऐसे में जनसंख्या वृद्धि को आधार माना जाए तो यूपी में इस वक्त मुसलमानों की आबादी लगभग साढ़े चार करोड़ के आस पास है. वहीं दुनिया में यूएन से मान्यता प्राप्त कुल 195 देश हैं और इन 195 देशों में भारत समेत सिर्फ 13 देश ऐसे हैं जहां मुसलमानों की आबादी साढ़े चार करोड़ से ज्यादा है. इसका मतलब ये हुआ दुनिया के 182 देशों में उत्तर प्रदेश से कम मुसलमान रहते हैं. दुनिया के अधिकतर मुस्लिम देशों से भी ज्यादा मुसलमान उत्तर प्रदेश में रहते हैं.
देश की सियासी दिशा और दशा भी बहुत हद तक उत्तर प्रदेश ही तय करता है, क्योंकि यहां पर जीत ही देश में सरकार बनाने का आधार बन जाती है. इन्हें पता है कि जो यूपी का खलीफा बनेगा, वही देश के मुसलमानों का खलीफा बनेगा. यही वजह है, यूपी में इस तरह के प्रयोग एक बड़ी साजिश का हिस्सा लगते हैं.
बरेली वाले मौलाना ने भी I LOVE मोहम्मद के नाम पर हिंसा की साजिश रचकर रसूख बढ़ाने की कोशिश की थी. लेकिन देश के मुसलमानों का खलीफा बनने की होड़ के बीच अब I LOVE मोहम्मद पर मुसलमान बंट गए हैं. मौलाना तौकीर रजा के इस आंदोलन को मौलाना सज्जान नोमानी और मौलाना कारी इसहाक गोरा ने गैर जरूरी बताया था.
मौलाना तौकीर रजा इस्लाम की बरेलवी विचारधारा से संबंध रखते हैं, जबकि सड़कों पर ‘I LOVE मोहम्मद’ के पोस्टर और नारों को गैर जरूरी मानने वाले मौलाना सज्जाद नोमानी और मौलाना इसहाक गोरा इस्लाम की देवबंदी विचारधारा से संबंध रखते हैं. और इसी वजह से इस विवाद पर दोनों की राय और मान्यताएं अलग हैं.
सुन्नी मुसलमानों की बरेलवी शाखा की शुरुआत उत्तर प्रदेश के बरेली में अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी (रह.) ने 19वीं सदी में की. जबकि देवबंदी शाखा की शुरुआत 1866 में उत्तर प्रदेश से देवबंद, सहारनपुर में क़ासिम नानौतवी और रशिद अहमद गंगोहि (रह.) ने की. वहीं वहाबी शाखा 18वीं सदी में सऊदी अरब से आई इसकी शुरुआत मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब ने की.
बरेलवी मानते हैं कि पैगंबर को अल्लाह से इल्म-ए-गैब यानि ज्ञान मिला है और वो हाज़िर-नाज़िर यानि हर जगह मौजूद और देखने वाले हैं. जबकि देवबंदी पैगंबर को इंसान मानते हैं लेकिन अल्लाह के बाद उन्हें सबसे उंचा स्थान देते हैं. जबकि वहाबी मोहम्मद साहब को पैगंबर मानते हैं.
बरेलवी मुसलमान औलिया यानि इस्लामिक संतों, मज़ार और पीरों के जरिए अल्लाह तक पहुंचने को जायज और पसंदीदा मानते हैं. जबकि देवबंदी मज़ार पर चढ़ावा या सजदा करने को सही नहीं मानते हैं. जबकि वहाबी मुसलमान इसे शिर्क यानि बहुदेववाद मानते हुए इसका सख्ती से विरोध करते हैं.
बरेलवी मुसलमान मिलाद-उन-नबी यानि पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन या मजारों पर होने वाले उर्स और कव्वाली को जायज मानते हैं. जबकि देवबंदी इसे बिदअत यानि धर्म में नया अविष्कार मानकर इनसे दूर रहने की सलाह देते हैं. जबकि वहाबी इसे पूरी तरह से नकारते हैं. इसका सख्ती से विरोध करते हैं.
कानपुर से जो I LOVE मोहम्मद का विवाद शुरू हुआ वो भी मिलाद-उन-नबी यानि पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन के त्यौहार पर बैनर लगाने से शुरू हुआ था.
*#DNAWithRahulSinha : I LOVE मोहम्मद पर मुस्लिमों का बंटवारा! हिंदुस्तान में मुसलमानों का खलीफा कौन? #DNA #Bareilly #BareillyViolence #AccusedTajim | @RahulSinhaTV pic.twitter.com/j31sV9iwWk
— Zee News (@ZeeNews) September 30, 2025
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