भारत विभाजन: तीसरा विलेन कौन? NCERT के नए खुलासे से सियासी भूचाल!
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भारत के बंटवारे के लिए अब सिर्फ़ जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन ही नहीं, बल्कि कांग्रेस को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की नई किताब में ये खुलासा किया गया है, जिसके बाद देश में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है।

NCERT के नए मॉड्यूल में कहा गया है कि भारत का विभाजन रोका जा सकता था। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो विभाजन के लिए तीन तत्व जिम्मेदार थे: जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन।

जिन्ना ने बंटवारे की मांग की, कांग्रेस ने इस मांग को स्वीकार किया और माउंटबेटन ने इसे लागू किया। कांग्रेस के नेताओं का मानना था कि विभाजन असंभव है, लेकिन मुस्लिम लीग की हिंसा से परेशान होकर उन्होंने आखिरकार विभाजन को स्वीकार कर लिया। इसके बावजूद हिंसा नहीं थमी और बंटवारे के बाद तो और ज्यादा तबाही हुई।

यह जानकारी ‘विभाजन के दोषी कौन’ और ‘क्या भारत का विभाजन अनिवार्य था’ टॉपिक में जोड़ी गई है। NCERT ने विभाजन को लेकर जो जानकारी दी है, वो नियमित किताबों का हिस्सा नहीं है। ये मॉड्यूल छात्रों के लिए सप्लीमेंट्री मटेरियल है।

मॉड्यूल में विभाजन की पूरी पृष्ठभूमि बताई गई है। 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर सम्मेलन के दौरान जिन्ना ने हिंदुओं और मुसलमानों को पूरी तरह अलग बताते हुए उनके लिए अलग-अलग देश की मांग की। इसी विचार की वजह से भारत का विभाजन हुआ।

1946 में अंग्रेज़ों ने प्रस्ताव दिया कि भारत को एक रखते हुए 3 तरह के प्रांतों में बांटा जाए। कांग्रेस ने शुरुआत में इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया लेकिन बाद में वो पीछे हट गई। इसकी वजह से जिन्ना नाराज़ हो गए और 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा की।

डायरेक्ट एक्शन डे की वजह से मात्र 2 से 3 दिनों में केवल कलकत्ता में 6,000 लोग मारे गए। इसके कारण कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार परेशान हो गई।

लॉर्ड माउंटबेटन ने मार्च 1947 में कार्यभार संभाला। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना से विचार-विमर्श किया। जिन्ना पाकिस्तान की मांग पर अडिग रहे। नेहरू और पटेल मानसिक रूप से विभाजन को समस्या के समाधान के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हो चुके थे। गृहयुद्ध और अराजकता की आशंका से विभाजन स्वीकार कर लिया। उनके स्वीकार करने के बाद गांधी जी ने भी विरोध छोड़ दिया।

जुलाई 1947 में पंडित नेहरू ने कहा था, हम ऐसे मोड़ पर आ पहुंचे हैं जहां या तो हमें विभाजन स्वीकार करना होगा या निरंतर झगड़े और अराजकता का सामना करना होगा। विभाजन बुरा है। परंतु एकता की कोई भी कीमत, गृहयुद्ध की कीमत से कहीं कम होगी।

सरदार पटेल ने विभाजन को कड़वी दवा के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा, मैं विभाजन के पक्ष में नहीं हूं, मैं इसके विरुद्ध हूं। लेकिन हमें इसे एक कड़वी दवा की तरह स्वीकार करना होगा। देश युद्धभूमि बन चुका है और दोनों समुदाय शांतिपूर्वक साथ नहीं रह सकते। गृहयुद्ध के बजाय विभाजन ही बेहतर है।

लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा था, मैंने भारत का विभाजन नहीं किया। विभाजन की योजना भारतीय नेताओं द्वारा पहले ही स्वीकार की जा चुकी थी। मेरा कार्य उसे यथासंभव शांतिपूर्ण ढंग से क्रियान्वित करना था।

NCERT के मॉड्यूल में आगे ये भी लिखा गया है कि देश के विभाजन के बाद भी सांप्रदायिक राजनीति वैसी ही बनी रह गई। इसकी वजह से भारत को आज भी बाहरी दुश्मनी और भीतरी सांप्रदायिक विभाजन दोनों से जूझना पड़ता है।

मॉड्यूल के मुताबिक विभाजन के बाद कश्मीर नामक एक नई और स्थायी समस्या भी बन गई।

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