राहुल गांधी: डेड इकॉनमी में दस साल में कैसे हुए दस गुना अमीर?
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राहुल गांधी का भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर दिया गया बयान विवादों में है। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के डेड इकॉनमी वाले बयान का समर्थन किया, लेकिन उनके अपने निवेश और कमाई के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।

राहुल गांधी ने मोदी सरकार के कार्यकाल में शेयर बाजार में जमकर निवेश किया और करोड़ों रुपये कमाए। पिछले 10 वर्षों में उनकी कमाई में 117 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

2014 में राहुल गांधी के शेयरों की वैल्यू 83 लाख रुपये थी, जो 2024 में बढ़कर 8.3 करोड़ रुपये हो गई। यानी दस साल में दस गुना रिटर्न मिला।

यूपीए सरकार (2004-2014) के दौरान राहुल गांधी ने शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड से 60 से 80 लाख रुपये कमाए थे। मोदी सरकार (2014-2024) में उनकी कमाई 6.6 से 8.3 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। यह अंतर इसलिए आया क्योंकि राहुल गांधी ने मोदी सरकार में जोखिम लेकर जोखिमपूर्ण निवेश किया।

यूपीए काल में राहुल का निवेश मुख्य रूप से डेट-आधारित म्यूचुअल फंड और पीपीएफ में था। उन्हें डर था कि इकॉनमी गिर सकती है, इसलिए उन्होंने शेयर बाजार में पैसा नहीं लगाया।

मोदी सरकार के दौरान उनका भरोसा देश की इकॉनमी में बढ़ा। उन्होंने 2019 में शेयर बाजार में 5.19 करोड़ और 2024 में 4.33 करोड़ रुपये निवेश किए। म्यूचुअल फंड में भी उन्होंने 2024 में 3.81 करोड़ रुपये का निवेश किया।

BSE सेंसेक्स की 13% CAGR वृद्धि के साथ, उनके शेयर और फंड ने 12-15% CAGR रिटर्न दिया, जिसके चलते 2014-2024 में 6.6-8.3 करोड़ रुपये की कमाई हुई।

राहुल गांधी के पोर्टफोलियो में एशियन पेंट्स, बजाज फाइनेंस, दीपक नाइट्रेट, हिंदुस्तान यूनिलीवर, इंफोसिस, आईटीसी और टीसीएस जैसे शेयरों के नाम शामिल हैं। उनके पोर्टफोलियो में करीब 24 शेयर हैं, जिसमें से 4 कंपनियों को छोड़कर बाकी में उन्हें मुनाफा हो रहा है।

लोकसभा चुनाव हलफनामों के आधार पर 2014 में राहुल गांधी की कुल संपत्ति 9.4 करोड़ रुपये थी, जो 2024 तक बढ़कर 20.4 करोड़ रुपये हो गई है। इस आधार पर उनकी संपत्ति में करीब 117 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जिस देश की अर्थव्यवस्था को राहुल गांधी डेड इकॉनमी बता रहे हैं, वहां से उन्हें इतना फायदा कैसे हो रहा है? क्या डेड इकॉनमी पर निवेश के लिए कोई भरोसा करता है? राहुल गांधी ने किया, जो यह दिखाता है कि शायद उन्हें देश की अर्थव्यवस्था से उतनी शिकायत नहीं है, जितना वे जताते हैं।

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