10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के अनुसार, दोनों देशों की सेनाओं को 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में लौटना था। इसी में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में स्थित हाजी पीर दर्रे को वापस लौटाने की बात भी शामिल थी।
बाद में, लेफ्टिनेंट जनरल दयाल ने कहा था कि हाजी पीर दर्रा भारत को रणनीतिक लाभ देता था। इसे वापस सौंपना एक गलती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे 60 साल पहले की ताशकंद समझौते की एक गलती बताया है, जो भारत को पुलवामा और पहलगाम जैसे घाव देती रहती है।
हाजी पीर दर्रा हिमालय की पीर पंजाल पर्वतों के बीच स्थित है। यह जम्मू-कश्मीर के पुंछ को PoK के रावलकोट से जोड़ता है। यह पाकिस्तान का चिकननेक है। हाजी पीर दर्रा 2,637 मीटर (8,652 फीट) की ऊंचाई पर है। यहां से PoK घाटी का नजारा दिखता है। आज यह कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकवादियों के घुसपैठ का मुख्य रास्ता है।
रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि हाजी पीर दर्रा भारत के पास होने से भारतीय सेना को कई सामरिक फायदे होते। इससे पुंछ और उरी के बीच सड़क मार्ग की दूरी 282 किलोमीटर से घटकर 56 किलोमीटर हो जाती। इससे जम्मू-कश्मीर घाटी के बीच बेहतर सड़क संपर्क हो सकता था, सेना की रसद आपूर्ति और कारोबार में भी सुधार होता।
1965 की जंग में भारत ने पाकिस्तानी क्षेत्र के 1,920 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया था, जिसमें हाजी पीर दर्रा भी शामिल था।
बंटवारे से पहले, उत्तर कश्मीर को दक्षिण कश्मीर से जोड़ने वाली मुख्य सड़क हाजी पीर से ही होकर गुजरती थी। 1948 में पाकिस्तान ने PoK पर कब्जा कर लिया, जिससे यह रास्ता भारत के हाथ से निकल गया। यह दर्रा भारत को PoK के एक बड़े हिस्से तक आसानी से पहुंचने में मदद करता।
डिफेंस एनालिस्ट के अनुसार, भारत ने 1965 में ताशकंद समझौते के दौरान पाकिस्तान को अपनी जीती हुई जमीन वापस कर दी थी। भारत की स्थिति मजबूत होने के बावजूद उसने हाजी पीर दर्रा इस्लामाबाद को लौटा दिया। इसके बाद से ही पाकिस्तान इस दर्रे का इस्तेमाल करके भारत को नुकसान पहुंचा रहा है।
1965 में, पाकिस्तान ने पूरे कश्मीर पर कब्जा करने की सोची। अगस्त में, राष्ट्रपति अयूब खान ने कश्मीर को अस्थिर करने के लिए बड़ी संख्या में छापामारों को गुप्त रूप से कश्मीर में भेजने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर को मंजूरी दी।
15 अगस्त, 1965 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन बख्शी चलाकर संघर्ष विराम रेखा (CFL) को पार किया और तीन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। हाजी पीर बुलगे पर कब्जा करने का भी निर्णय लिया गया, क्योंकि यह पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुख्य घुसपैठ मार्ग था।
1965 के युद्ध के दौरान, पश्चिमी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह ने हाजी पीर का प्लान बनाया। हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करने की कमान मेजर जनरल एसएस कलां और ब्रिगेडियर जेडसी बख्शी को दी गई थी।
26 अगस्त को, 1 पैरा बटालियन सांक की ओर बढ़ी। उन्हें भारी बारिश में खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी। सांक पर कब्जा करने के बाद भारतीय सेना ने लेडवाली गली पर दबाव डाला और अगले दिन उस पर कब्जा कर लिया।
ब्रिगेडियर बख्शी ने हाजी पीर दर्रे के लिए सीधे जाने का फैसला लिया। मेजर रंजीत सिंह दयाल को यह काम सौंपा गया। 27 अगस्त की पूरी रात भारी बारिश में पैदल चलकर, 28 अगस्त को मेजर रंजीत सिंह दयाल ने हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने 29 अगस्त को इस दर्रे पर फिर से कब्जाने की कोशिश की, मगर भारतीय सेना ने उन हमलों को विफल कर दिया।
*28 August 1965: #IndianArmy captured the Haji Pir Pass & hoisted the Tricolour #OnThisDay in #1965War. pic.twitter.com/GzULwAPYk6
— Prasar Bharati प्रसार भारती (@prasarbharati) August 27, 2016
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