घुसपैठियों पर कार्रवाई से क्यों परेशान है ह्यूमन राइट्स वॉच? क्या धर्म देखकर जागते हैं मानवाधिकार के ठेकेदार ?
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कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत की छवि खराब करने के लिए मौके की तलाश में रहते हैं, जिनमें अमेरिका स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच भी शामिल है। यह संगठन खुद को मानवाधिकारों से जुड़ा बताता है, लेकिन इसकी सोच भारत विरोधी लगती है।

ह्यूमन राइट्स वॉच को भारत में अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों पर हो रही कार्रवाई से परेशानी हो रही है। यह संगठन आरोप लगा रहा है कि घुसपैठियों को निकालने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा, और धर्म के आधार पर लोगों को निकाला जा रहा है। उनका कहना है कि बंगाली मुसलमानों को मनमाने ढंग से भारत से निकाला जा रहा है, और यह कार्रवाई राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए की जा रही है।

हालांकि, यह सवाल उठता है कि ये घुसपैठिए किस प्रक्रिया का पालन करके भारत में घुसे थे? रिपोर्टों के अनुसार, देश में 2 करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जो देश के संसाधनों पर दबाव बढ़ा रहे हैं और आम भारतीयों को मिलने वाली सुविधाओं को कम कर रहे हैं, साथ ही रोजगार पर भी असर डाल रहे हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच की स्थापना सोवियत संघ में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर निगरानी रखने के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य किसी विशेष देश की छवि को खराब करना था। जॉर्ज सोरोस जैसे लोग ह्यूमन राइट्स वॉच के प्रमुख दानदाताओं में शामिल हैं, जिनका नाम भारत के खिलाफ एजेंडा चलाने में शीर्ष पर आता है, जिससे पता चलता है कि इस संगठन का रुख भारत विरोधी क्यों है।

यह भी देखा गया है कि मानवाधिकार के नाम पर कारोबार चलाने वाले ये संगठन कभी भी आतंकवादी घटनाओं पर खुलकर नहीं बोलते। उन्होंने कभी भी सुरक्षा बलों या आम लोगों पर हुए आतंकवादी हमलों पर कोई रिपोर्ट नहीं बनाई है। ह्यूमन राइट्स वॉच पत्थरबाजों पर हुई कार्रवाई को लेकर रिपोर्ट जारी करता है, लेकिन आतंकवादी हमलों पर वैसी रिपोर्ट नहीं आती।

उदाहरण के लिए, ह्यूमन राइट्स वॉच ने 22 अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने वाला कोई बयान नहीं दिया। 2016 के उरी आतंकी हमले और 2019 के पुलवामा आतंकी हमले की भी ह्यूमन राइट्स वॉच ने सीधे तौर पर निंदा नहीं की।

यह दर्शाता है कि इन संगठनों की सोच चयनात्मक है। वे सिर्फ उन्हीं मुद्दों को चुनते हैं जिनसे भारत की प्रतिष्ठा पर सवाल उठाए जा सकें, और उन्हें आतंकवादियों की हिंसा नहीं दिखती, सिर्फ सुरक्षा बलों की कार्रवाई दिखती है।

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