संसद भवन परिसर स्थित मस्जिद में समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव और अन्य सपा सांसदों की उपस्थिति से विवाद खड़ा हो गया है.
भारतीय राजनीति में धर्म हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है, खासकर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को लेकर.
22 जुलाई को अखिलेश यादव का संसद भवन मस्जिद में जाना विवादों में घिर गया. भाजपा इसे मुद्दा बना रही है, वहीं सोशल मीडिया पर कई मुस्लिम हैंडल से भी सपा नेताओं द्वारा मस्जिद के राजनीतिक इस्तेमाल पर आपत्ति जताई जा रही है.
भाजपा ने सपा पर धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया है, और कुछ संगठन धरना प्रदर्शन की बात भी कर रहे हैं. सपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे भाजपा की सांप्रदायिक रणनीति बताया है.
सपा जिस तरह मस्जिद प्रकरण में सफाई दे रही है, उससे लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था.
मस्जिद में बैठने का विरोध क्यों?
22 जुलाई को सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने अखिलेश यादव, डिंपल यादव और अन्य सपा सांसदों की मस्जिद में बैठे हुए तस्वीरें साझा कीं. ये तस्वीरें संसद की कार्यवाही स्थगित होने के बाद की हैं.
रामपुर सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, जो मस्जिद के इमाम भी हैं, ने बताया कि अखिलेश ने इसे देखने की इच्छा जताई थी. धर्मेंद्र यादव की आलोचना इसलिए भी हो रही है क्योंकि उन्होंने तस्वीरों को गलत जानकारी के साथ सांसद नदवी के घर की तस्वीर बताया.
संसद अधिवेशन में देश की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, सपा ने गलती से भाजपा को एक मुद्दा दे दिया. अखिलेश यादव अपने कोर वोटर्स को खुश करना चाहते थे, जो दुर्भाग्य से उल्टा पड़ गया.
अखिलेश यादव 2024 में राम मंदिर उद्घाटन में जाने से इनकार करने वाले नेता रहे हैं. ऐसे में उनका मस्जिद जाना हिन्दुओं को खलेगा.
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने मस्जिद में सपा की राजनीतिक बैठक आयोजित की और इसे सपा का कार्यालय बना दिया. उन्होंने इसे धार्मिक स्थल का दुरुपयोग और मजहबी संवेदनाओं का अपमान बताया.
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने कहा कि मस्जिद इबादत की जगह है, न कि राजनीतिक रणनीतियों की. उन्होंने अखिलेश यादव से मुस्लिम जनता से माफी की मांग की है.
सपा का पलटवार
सपा ने इस विवाद को भाजपा की सांप्रदायिक रणनीति का हिस्सा करार दिया है. अखिलेश यादव ने कहा कि आस्था जोड़ती है और जो आस्था जोड़ने का काम करती है, हम उसके साथ हैं. भाजपा चाहती है कि लोग एकजुट न हों, बल्कि दूरियां बनी रहें.
क्या मस्जिद में सपा की औपचारिक बैठक हुई?
सपा सांसद जिया उर्र रहमान ने दावा किया कि मस्जिद में कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई, बल्कि यह केवल एक सामान्य दौरा था. सपा ने यह भी तर्क दिया कि तस्वीरों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया.
धर्मेंद्र यादव ने X पर पोस्ट में स्पष्ट किया कि यह मस्जिद में कोई औपचारिक बैठक नहीं थी, बल्कि मोहिबुल्लाह नदवी के निमंत्रण पर एक दौरे का हिस्सा था.
मजहबी संवेदनाओं का सवाल
इस्लाम में मस्जिद को इबादत की पवित्र जगह माना जाता है. धार्मिक विद्वानों और समुदाय के बीच यह आम सहमति है कि मस्जिद का उपयोग गैर-धार्मिक या राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
भाजपा और उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया कि मस्जिद में सपा नेताओं की उपस्थिति, खासकर डिंपल यादव के बैठने के तरीके को, इस्लामी परंपराओं के लिए ठीक नहीं है.
अखिलेश यादव और सपा को सफाई देने की नौबत क्यों आई?
अखिलेश यादव ने हमेशा खुद को धर्मनिरपेक्ष और सभी धर्मों का सम्मान करने वाला नेता के रूप में प्रस्तुत किया है. उनकी पार्टी का आधार उत्तर प्रदेश में यादव और मुस्लिम समुदायों पर टिका है.
वह अक्सर सॉफ्ट हिंदुत्व और मुस्लिम समर्थन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं.
मस्जिद में जाना और कुछ सांसदों के साथ बैठकर अखिलेश ने कोई भूल तो नहीं ही की थी, पर मजहबी संवेदनाओं का ख्याल न रखने के आरोपों पर सफाई देकर वह जरूर फंस गए.
मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी का सपा सांसद होना इस विवाद को और तूल दे दिया. बरेलवी उलेमाओं द्वारा नदवी को इमाम पद से हटाने की मांग भी सामने आने के चलते सपा पर सफाई देने का दबाव बढ़ गया.
रामपुर सांसद मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी जी के दिल्ली आवास पर…. pic.twitter.com/7UlvPQx8Gt
— Dharmendra Yadav (@MPDharmendraYdv) July 22, 2025
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