योगी का कट्टर हिंदुत्व दांव: धर्म की आड़ में राजनीतिक चाल?
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर अपने धर्म से जुड़े विवादित बयान के कारण चर्चा में हैं। 18 जुलाई, 2025 को वाराणसी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में कहा, ये लातों के भूत हैं, बातों से नहीं मानेंगे।

इस बयान को सीधे तौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाला माना जा रहा है। सोशल मीडिया पर यह बयान तेजी से वायरल हुआ, और कई लोगों ने इसे समाज को बांटने वाली राजनीति करार दिया।

यह पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री योगी ने इस तरह का विवादास्पद बयान दिया है। अतीत में भी उन्होंने कई बार कट्टर हिंदुत्व से जुड़े बयान दिए हैं, जिनमें राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिशें देखी गई हैं।

उदाहरण के तौर पर, उन्होंने पहले अगर वे एक मारेंगे, तो हम दस मारेंगे जैसा बयान दिया था, जिससे भाजपा समर्थकों में उत्साह पैदा हुआ। वहीं, विपक्ष ने भाजपा पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाया था।

इसके अलावा, योगी ने राम का नाम लेने वालों को डरने की जरूरत नहीं जैसा बयान भी दिया है, जिससे उन्होंने हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास किया।

सबसे चर्चित बयानों में से एक 80 बनाम 20 की लड़ाई को लेकर भी था, जिससे समाज में ध्रुवीकरण हुआ और भाजपा को चुनावों में फायदा हुआ।

मुख्यमंत्री योगी के ऐसे बयानों का सीधा असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर देखा गया है। जब भी उन्होंने हिंदुत्व से जुड़े कड़े बयान दिए, भाजपा के मुख्य मतदाता, खासकर हिंदू वोट बैंक में एकजुटता बढ़ी। हालांकि, इससे सामाजिक सौहार्द और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच डर और असुरक्षा का माहौल भी बना।

इन विवादित बयानों से आने वाले समय में कई संभावित परिणाम हो सकते हैं:

  1. राजनीतिक ध्रुवीकरण और बढ़ेगा, जिससे चुनावों में भाजपा को लाभ मिल सकता है।
  2. विपक्ष, जैसे सपा, कांग्रेस और बसपा, इस बयान को मुद्दा बनाकर भाजपा पर हमला तेज कर सकते हैं।
  3. चुनाव आयोग और न्यायालय इस तरह के बयानों पर ध्यान दे सकते हैं, जिससे कानूनी संकट खड़ा हो सकता है।
  4. जनता में जाति और धर्म के आधार पर बंटवारा और अधिक हो सकता है, जिससे विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पीछे छूट सकते हैं।

मुख्यमंत्री योगी के ऐसे बयान भारतीय राजनीति में नए नहीं हैं, लेकिन समाज पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि इस तरह के बयान जारी रहते हैं, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति और अधिक सांप्रदायिक रंग ले सकती है।

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