पीएम मोदी का साइप्रस दौरा: तुर्की को कड़ा संदेश और भारत की घेराबंदी की तैयारी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साइप्रस दौरे पर हैं। 20 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यह साइप्रस दौरा है। इससे पहले 1983 में इंदिरा गांधी और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी वहां गए थे।

साइप्रस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोरदार स्वागत हुआ। उन्होंने भारतीय मूल के लोगों से मुलाकात की। यहां पीएम मोदी की राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स से भी मुलाकात होगी।

पीएम मोदी का साइप्रस दौरा सिर्फ दो देशों के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि तुर्की को एक सख्त संदेश भी देता है। तुर्की पिछले कुछ समय से भारत के खिलाफ खुलकर बोल रहा है, खासकर कश्मीर के मुद्दे पर और पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दे रहा है।

भारत, तुर्की के विरोधी देशों – जैसे ग्रीस, आर्मेनिया, मिस्र और साइप्रस के साथ अपनी दोस्ती मजबूत करके जवाब दे रहा है। भारत इन देशों के साथ न सिर्फ व्यापारिक बल्कि सामरिक संबंध भी मजबूत कर रहा है। ये एक तरह से तुर्की को चारों तरफ से घेरने की रणनीति है।

साइप्रस के बाद मोदी जी7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जाएंगे, जिससे भारत की वैश्विक ताकत और बढ़ेगी।

भारत और साइप्रस की दोस्ती पुरानी और गहरी है। साइप्रस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के समय, 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते में और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए साइप्रस ने खुलकर समर्थन किया।

आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर साइप्रस ने कभी पाकिस्तान या तुर्की का साथ नहीं दिया। दूसरी तरफ भारत भी साइप्रस की एकता और अखंडता का समर्थन करता है। भारत चाहता है कि साइप्रस का मसला संयुक्त राष्ट्र के नियमों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हल हो।

पीएम मोदी का दौरा इस दोस्ती को और मजबूत करेगा। दोनों देशों के बीच व्यापार, संस्कृति और रक्षा सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा।

साइप्रस और तुर्की का झगड़ा 1974 से चला आ रहा है। उस साल ग्रीस के समर्थन से साइप्रस में तख्तापलट हुआ, जिसका मकसद साइप्रस को ग्रीस के साथ मिलाना था। जवाब में तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। तब से साइप्रस दो हिस्सों में बँटा हुआ है।

साइप्रस के पास समुद्र में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं, जिन्हें तुर्की अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। तुर्की का कहना है कि साइप्रस जैसे छोटे द्वीप को इतना बड़ा समुद्री क्षेत्र (EEZ) नहीं मिलना चाहिए, जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून इसके खिलाफ है।

भारत का साइप्रस के साथ खड़ा होना तुर्की के लिए साफ संदेश है कि भारत उसके खिलाफ उन देशों का समर्थन करेगा, जो तुर्की की आक्रामकता से परेशान हैं।

साइप्रस की भौगोलिक स्थिति इसे बहुत खास बनाती है। ये यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच एक अहम पड़ाव है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) में साइप्रस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।

साइप्रस के पास 12-15 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार हैं। ये भंडार भले ही वैश्विक स्तर पर बहुत बड़े न हों, लेकिन साइप्रस जैसे छोटे देश के लिए बहुत मायने रखते हैं।

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोआन ने कई बार कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत के खिलाफ बयान दिए हैं। वो खुद को इस्लामिक दुनिया का नेता दिखाने की कोशिश करते हैं और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की आलोचना करते हैं। भारत इसका जवाब तुर्की के विरोधी देशों के साथ दोस्ती बढ़ाकर दे रहा है।

साइप्रस के अलावा, भारत ग्रीस, आर्मेनिया और मिस्र के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है। ये सभी देश तुर्की के साथ किसी न किसी तरह के विवाद में हैं। मोदी का साइप्रस दौरा तुर्की को साफ बताता है कि भारत उसकी हरकतों का जवाब देना जानता है।

साइप्रस के बाद मोदी जी7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जाएँगे। ये भारत के लिए अपनी वैश्विक ताकत दिखाने का एक और मौका होगा।

साइप्रस के साथ भारत का ये रिश्ता न सिर्फ तुर्की को जवाब है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत का भी प्रतीक है।

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