जिन्हें कोई इस्लामी देश शरण नहीं दे रहा, उन्हें सुप्रीम कोर्ट दे रहा मुफ्त सुविधाएँ!
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भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या घुसपैठियों को सरकारी सुविधाएँ देने की माँग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देशभर का ध्यान खींचा है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि दिल्ली के सरकारी स्कूल रोहिंग्या बच्चों को प्रवेश देने से इनकार करते हैं, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं।

यह फैसला एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें रोहिंग्याओं के लिए शिक्षा, चिकित्सा और राशन जैसी सुविधाओं की माँग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटीश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या घुसपैठियों के बच्चों को उन सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए आवेदन करना चाहिए, जिनके लिए वे पात्र हैं। यदि किसी भी कारणवश उन्हें एडमिशन नहीं मिलता है, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना दस्तावेज़ों के भी रोहिंग्या बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिलना चाहिए।

पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि रोहिंग्या कोई शरणार्थी नहीं हैं और ना ही उन्हें सरकार ने यह दर्जा दिया है। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वे गृह मंत्रालय के पास अपनी माँग लेकर जाएँ।

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिले के अलावा, रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए मुफ्त चिकित्सा और राशन की माँग भी सुप्रीम कोर्ट में उठाई जा रही है। रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने की माँग की कि रोहिंग्या मुस्लिमों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और सार्वजनिक राशन योजनाओं का लाभ दिया जाए।

यह सुविधाएँ भारत के ही कई नागरिकों को मुफ्त में नहीं मिलतीं। एक आम भारतीय नागरिक को भी राशन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह भी माँग की गई है कि इन रोहिंग्या बच्चों को बिना आधार कार्ड या किसी अन्य पहचान-पत्र के भी कक्षा 10, 12 और स्नातक परीक्षाएँ देने की अनुमति दी जाए।

पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को भारत में कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाती। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक वर्षों से बिना नागरिकता के जीवन गुजार रहे हैं।

म्यांमार से अवैध रूप से आए रोहिंग्या मुस्लिम वर्तमान में दिल्ली, जम्मू, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। दिल्ली के शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी बड़ी आबादी है।

अमेरिका, यूरोप और मुस्लिम देश भी रोहिंग्याओं को अपने यहाँ रखने को तैयार नहीं हैं। बांग्लादेश ने इन्हें सुरक्षा के लिए खतरा बताया, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे इस्लामी देश भी इन्हें स्वीकार नहीं कर रहे, और अरब देशों ने भी इनका प्रवेश प्रतिबंधित कर रखा है।

रोहिंग्याओं के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकील और NGO भी संदेह के घेरे में हैं। इस मामले में कॉलिन गोंसाल्वेस नामक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्याओं की ओर से पैरवी की है। उनका NGO ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) पहले भी अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की फंडिंग से जुड़ा रहा है।

रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (R4R) नामक NGO को भी नीदरलैंड स्थित ग्लोबल स्टेटलेसनेस फंड से पैसा मिलता है, जिसे सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। यही संगठन CAA विरोधी आंदोलनों में भी सक्रिय था।

भारत की जनता के टैक्स का पैसा अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों पर खर्च किया जाना चाहिए? अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार को रोहिंग्या बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का आदेश देता है, तो इसका बोझ आम नागरिकों को उठाना पड़ेगा।

भारत सरकार को NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस) को फिर से लागू करना चाहिए और इन घुसपैठियों को देश से बाहर करने की ठोस नीति बनानी चाहिए।

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