भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने गुरुवार को महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों की खरीद और डिलीवरी में हो रही देरी पर गंभीर चिंता जताई है. उन्होंने घरेलू रक्षा क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि कोई भी रक्षा परियोजना समय पर पूरी नहीं हो रही है.
एयर चीफ मार्शल सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा, समय सीमा एक बड़ा मुद्दा है. मुझे लगता है कि एक भी परियोजना तय समय पर पूरी नहीं हुई है. हमें ऐसा वादा क्यों करना चाहिए जो पूरा नहीं हो सकता?
भारतीय वायुसेना लंबे समय से सैन्य हार्डवेयर की कमी से जूझ रही है और उसके पास अत्याधुनिक स्टेल्थ विमानों की कमी है. हाल ही में, रक्षा मंत्रालय ने पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों के घरेलू उत्पादन को मंजूरी दी है, लेकिन इसके बनने और तैनात होने में काफी समय लगेगा.
पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी (रिटायर्ड) ने भी एयर चीफ मार्शल सिंह के बयान का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि जिन कंपनियों को ऑर्डर दिए जाते हैं, उनसे समय पर काम पूरा करने का ठोस आश्वासन लेना जरूरी है. अगर वे विफल रहते हैं, तो वैकल्पिक रास्ते खोजने चाहिए थे.
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि रक्षा खरीद और डिलीवरी में लंबा अंतराल और देरी निराशाजनक है, और एयर चीफ मार्शल का बयान इसी को दर्शाता है.
पिछले महीने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले और उसके बाद पाकिस्तान के अंदर भारत के हवाई हमलों के बाद, भारत की रक्षा तैयारियों को तेज करने पर चर्चा तेज हो गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि एयर चीफ मार्शल के बयान को भारत की तैयारियों में तेजी लाने की जरूरत के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
एयर चीफ मार्शल सिंह ने कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के वार्षिक बिजनेस सम्मेलन में कहा, हमें डील पर साइन करते वक्त ही पता होता है कि चीजें समय पर नहीं आएंगी. हम सिर्फ मेक इन इंडिया की बात नहीं कर सकते, अब वक्त है डिजाइन इन इंडिया का भी.
भारत सरकार स्वदेशी हथियार विकसित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन अभी भी भारत के हथियारों का बड़ा हिस्सा विदेश से आता है, जिसकी खरीद और डिलीवरी में अक्सर देरी होती है.
एयर चीफ मार्शल के इस बयान को 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए की डिलीवरी में देरी के संदर्भ में देखा जा रहा है, जिसके लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 2021 में करार हुआ था. एचएएल से ही भारतीय वायुसेना ने 70 एचटीटी-40 बेसिक ट्रेनर विमान की खरीद पर भी समझौता किया है, जिनकी तैनाती इसी साल सितंबर में तय है.
रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी का मानना है कि रक्षा मंत्रालय में चल रहे सिस्टम से सैन्य बलों में निराशा है, क्योंकि समय की कोई पाबंदी नहीं है. रक्षा समझौतों को पूरा होने में औसतन सात से दस साल लग जाते हैं.
बेदी ने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) का उदाहरण देते हुए कहा कि इसका पहला प्रोटोटाइप 2035 में आएगा और इसके उत्पादन में तीन साल और लगेंगे. यानी इसे वायुसेना में शामिल होने में लगभग 13 साल लग जाएंगे.
उन्होंने बताया कि भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के करीब 42 स्क्वाड्रन मंजूर हैं, लेकिन अभी उसके पास 30 स्क्वाड्रन हैं. इनमें से दो से तीन स्क्वाड्रन अगले एक से दो साल में रिटायर होने वाले हैं, जिससे वायुसेना के पास करीब 28 स्क्वाड्रन रह जाएंगे.
एयर चीफ मार्शल के बयान का मतलब यह भी है कि अगर घरेलू स्तर पर कोई उपकरण नहीं बन पाता है, तो उसे बाहर से खरीदा जाए ताकि आज की जरूरत को पूरा किया जा सके.
भारतीय वायुसेना के पास 513 लड़ाकू विमानों समेत कुल 2,229 विमान हैं. ग्लोबल फायर पावर के मुताबिक, 2025 सैन्य स्ट्रेंथ रैंकिंग में भारत और पाकिस्तान के बीच आठ पायदान का फासला है. 2025 में वैश्विक सैन्य ताकत के मामले में 145 देशों में भारत की रैंकिंग चौथी है, जबकि पाकिस्तान की रैंकिंग 12 है.
*#WATCH | Delhi: Indian Air Force chief Air Chief Marshal Amar Preet Singh says, Timeline is a big issue. So, once a timeline is given, not a single project that I can think of has been completed on time. So this is something we have to look at. Why should we promise something… pic.twitter.com/4aJxyuEcLx
— ANI (@ANI) May 29, 2025
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