पाकिस्तान को समर्थन देने वाले अजरबैजान को ईरान ने दिखाया आईना, कहा - धर्म के आधार पर...
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ईरान ने अजरबैजान को उसकी औकात याद दिलाई है, जो पाकिस्तान का समर्थन करता है। यह घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान विवाद में अजरबैजान के पाकिस्तान को समर्थन देने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

अजरबैजान के भारत-विरोधी रुख के बाद भारत को सीधे जवाब देने की आवश्यकता नहीं पड़ी। ईरान, जो भारत का सहयोगी देश है, ने एक ऐसा संदेश दिया है जिससे अजरबैजान की रणनीतिक स्थिति डगमगाने लगी है।

ईरान ने अपनी विदेश नीति में स्पष्ट किया है कि वह सीमाओं में किसी भी प्रकार का बदलाव स्वीकार नहीं करेगा। इससे अजरबैजान और तुर्किए की उन योजनाओं पर पानी फिर गया है, जिनमें वे अर्मेनिया के भौगोलिक स्वरूप को बदलने की कोशिश कर रहे थे।

ईरान और अर्मेनिया के संबंधों में मजबूती आई है। ईरान के रक्षा मंत्री की अर्मेनिया की राजधानी येरेवन की यात्रा ने वैश्विक स्तर पर एक बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने अर्मेनिया के साथ रणनीतिक स्थायित्व और सीमा सुरक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

ईरानी रक्षा मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि काकेशस क्षेत्र की स्थिरता उनकी उत्तरी सीमाओं की स्थिरता के लिए आवश्यक है। ईरान ने यह भी कहा कि मुस्लिम बहुल देश होते हुए भी वह केवल धर्म के आधार पर अपनी विदेश नीति नहीं चलाता, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों को प्राथमिकता देता है।

अजरबैजान ने 2020 में नागोर्नो-काराबाख की जंग में अर्मेनिया पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद उसका रवैया आक्रामक हो गया था। लेकिन ईरान के स्पष्ट रुख ने अजरबैजान की योजनाओं पर पानी फेर दिया है।

अजरबैजान और तुर्किए मिलकर अर्मेनिया को दक्षिण से काटने और नखिचेवान क्षेत्र को जोड़ने की रणनीति बना रहे थे। ईरान ने जियो-पॉलिटिकल रीमैपिंग के खिलाफ सख्त आपत्ति जताई है।

ईरान ने साफ किया है कि सीमा विवाद से क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा होगी। किसी देश को बुली करने या नक्शा बदलने की छूट नहीं दी जाएगी। ईरान अर्मेनिया को अकेला नहीं छोड़ेगा।

यह बयान भारत के लिए रणनीतिक रूप से अनुकूल है, क्योंकि अजरबैजान के पाकिस्तान समर्थक रवैये का जवाब उसके सहयोगी की कूटनीतिक हार से मिल गया है।

भारत ने सीधे तौर पर अजरबैजान को कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन ईरान की तरफ से यह संदेश गया कि पाकिस्तान और उसके नए दोस्त अगर दक्षिण एशिया में भारत के खिलाफ माहौल बनाएंगे तो उन्हें पश्चिम एशिया में समर्थन नहीं मिलेगा। भारत और अर्मेनिया के बीच रक्षा सहयोग पहले से मौजूद है और अब ईरान की भागीदारी से यह त्रिकोण मजबूत हुआ है।

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