बांग्लादेश में अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग पर पिछले सप्ताह प्रतिबंध लगा दिया है. एडवाइजरी काउंसिल की बैठक में यह फैसला लिया गया. अवामी लीग की छात्र इकाई छात्र अवामी लीग पर पहले ही प्रतिबंध लग चुका है.
राजनीति के जानकार इसे राजनीतिक संकट मान रहे हैं. ढाका में लगातार हो रहे प्रदर्शनों के बाद कैबिनेट ने यह फैसला लिया.
अंतरिम सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ़ नज़रूल ने कहा कि यह प्रतिबंध तब तक रहेगा जब तक अवामी लीग का मुकदमा इंटरनेशनल क्राइम्स (ट्रिब्यूनल) एक्ट के तहत खत्म नहीं हो जाता.
जमात-ए-इस्लामी, हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम और नेशनल सिटीज़न पार्टी जैसे दल अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) इस प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थी क्योंकि अवामी लीग चुनाव आयोग में पंजीकृत दल है.
जानकारों का मानना है कि बीएनपी चाहती है कि देश में जल्द से जल्द लोकतंत्र बहाल हो और चुनाव घोषित कर दिए जाएं. कई सामाजिक संगठनों और पत्रकारों ने अंतरिम सरकार की घोषणा से डर जताया है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध बताया है.
भारत सरकार ने अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाए जाने पर चिंता जताई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि बांग्लादेश में आने वाले चुनाव में सभी दलों की भागीदारी होनी चाहिए. किसी दल को रोकने से लोकतंत्र के लिए सही नहीं होगा.
जायसवाल ने कहा, बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाना चिंता का विषय है.
अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफ़ीक़ उल इस्लाम ने कहा कि अवामी लीग के कार्यकाल में स्वतंत्र राजनीतिक सोच को सीमित कर दिया गया था और देश की संप्रभुता के साथ समझौता किया गया था.
वरिष्ठ पत्रकार रफ़त के अनुसार, अवामी लीग ने भी अपने कार्यकाल में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग किया. म्यांमार से लगी सीमा पर अराकान आर्मी के हमले बढ़ रहे हैं, जिससे आम चुनाव कराना मुश्किल लग रहा है.
कोलकाता के राजनीतिक विश्लेषक निर्माल्य मुखर्जी का कहना है कि अवामी लीग को सत्ता में आने पर 98 प्रतिशत मत मिले थे, जो लोकतंत्र में असंभव है. उन्होंने अंतरिम सरकार के सलाहकारों पर भारत विरोधी होने का आरोप लगाया.
मुखर्जी ने यह भी कहा कि फौज तीन हिस्सों में बंटी हुई है: एक धड़ा शेख़ हसीना के साथ, एक यूनुस के साथ और एक बांग्लादेश के साथ.
बांग्लादेश में स्पेशल पॉवर्स एक्ट 1974 और पॉलिटिकल पार्टीज़ ऑर्डिनेंस 1978 जैसे कानून हैं, जिनका इस्तेमाल राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए किया जा सकता है.
1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद शेख़ मुजीबुर रहमान ने धार्मिक रुझानों वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे 1979 में ज़िया उर रहमान ने हटा दिया था. 2013 में उच्च न्यायालय ने जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण रद्द कर दिया था.
अवामी लीग ने पिछले साल जमात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे नई अंतरिम सरकार ने हटा लिया और जमात के कट्टरपंथी नेताओं को रिहा कर दिया. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी पर भी 1983 में प्रतिबंध लगा दिया गया था.
*बांग्लादेश में अवामी लीग पर बैन लगना चिंता का विषय है. लोकतांत्रिक देश की प्रक्रियाओं को दरकिनार किया जा रहा है.
— SansadTV (@sansad_tv) May 13, 2025
प्रेस ब्रीफिंग में रणधीर जायसवाल, प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय. @MEAIndia pic.twitter.com/328SMQb16V
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