छत्तीसगढ़ में पिछले तीन हफ्तों से चल रहा सबसे बड़ा नक्सल विरोधी अभियान आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया है. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम और सीआरपीएफ महानिदेशक श्री ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बीजापुर में एक प्रेस वार्ता में इसकी घोषणा की. अभियान 21 अप्रैल से 11 मई तक चला.
अभियान के दौरान पुलिस सूत्रों का दावा था कि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर सैकड़ों माओवादी, जिनमें कई शीर्ष कमांडर शामिल थे, छिपे हुए हैं और उन्हें हजारों सुरक्षा बलों ने घेर लिया है. हालांकि, पुलिस ने किसी बड़े नक्सल नेता के पकड़े जाने या मारे जाने की पुष्टि नहीं की, लेकिन कहा कि अभियान ने शीर्ष नेतृत्व को तितर-बितर कर दिया है.
बीजापुर एसपी जितेंद्र यादव के अनुसार, 21 मुठभेड़ों में 16 वर्दीधारी महिला माओवादियों समेत 31 माओवादी मारे गए और 35 हथियार बरामद किए गए हैं. 20 माओवादियों की शिनाख्त हो चुकी है. पुलिस का अनुमान है कि कई वरिष्ठ माओवादी या तो मारे गए हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं. अभियान में 214 माओवादी ठिकाने और बंकर नष्ट किए गए.
लेकिन इस अभियान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सुरक्षा बल कह रहे थे कि यह आर-पार की लड़ाई है, लेकिन अभियान खत्म होने के बाद सवाल उठता है कि नक्सली कहां गए? घेराबंदी क्यों हटाई गई? क्या वास्तव में उतने नक्सली थे ही नहीं, जितने बताए जा रहे थे? या कोई ऐसा तथ्य है जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है?
एक और मुद्दा छत्तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा बलों के बीच तालमेल की कमी का है. पुलिस लगातार अभियान से संबंधित बयान दे रही थी, जबकि 7 मई को छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने इन खबरों का खंडन किया था. उन्होंने कहा था कि संकल्प नाम का कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है और 22 नक्सलियों के मारे जाने का आंकड़ा गलत है.
कौन सच कह रहा था - पुलिस या गृह मंत्री? पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस अंतर्विरोध की ओर इशारा किया था.
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान को सफल बताया है. अमित शाह ने कहा कि सुरक्षा बलों ने 31 नक्सलियों को मार गिराया है, वहीं मोदी ने कहा कि यह नक्सलवाद को जड़ से समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
स्थानीय खबरों के अनुसार, जब शव परिजनों को सौंपे गए, तो वे कई दिन पुराने लग रहे थे. 31 में से केवल 11 शव ही परिजनों को सौंपे गए हैं. ऐसा क्यों?
अभियान से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों का लगभग 90% हथियार और गोला-बारूद खर्च हो गया और उनके कई ठिकानों को नष्ट कर दिया गया. अधिकारी ने यह भी दावा किया कि नक्सलियों ने जल्दबाजी में चार-पांच बार शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया था.
अगर नक्सली शांति वार्ता का प्रस्ताव दे रहे थे, तो सरकार ने इसे स्वीकार क्यों नहीं किया? हिंसा का एक दौर खत्म हुआ है, लेकिन बस्तर के जंगलों में शांति अभी दूर है.
*इन सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं.
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) May 14, 2025
मैं आज जवाब खोजने बस्तर जा रहा हूँ. pic.twitter.com/2RtEWEG08Q
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