टेरिटोरियल आर्मी: भारतीय सेना से अलग, कब और क्यों होती है तैनाती?
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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और ऑपरेशन सिंदूर के बाद रक्षा मंत्रालय ने सेना प्रमुख को टेरिटोरियल आर्मी (प्रादेशिक सेना) की तैनाती के लिए विशेष अधिकार दिए हैं.

6 मई 2025 की अधिसूचना के अनुसार, सेना प्रमुख को टेरीटोरियल आर्मी के अधिकारियों और कर्मियों को आवश्यकतानुसार बुलाने की शक्ति प्रदान की गई है. यह स्वैच्छिक सैन्य बल, जिसे नागरिक सैनिकों की सेना भी कहा जाता है, नियमित सेना का समर्थन करती है.

टेरीटोरियल आर्मी भारत का अंशकालिक सैन्य बल है जो नियमित भारतीय सेना की सहायता करता है. यह 1948 में टेरिटोरियल आर्मी एक्ट के तहत स्थापित हुई थी और इसे सिटिजन सोल्जर्स की फोर्स भी कहा जाता है.

इसके सदस्य सामान्य नागरिक होते हैं जो अपने पेशे (नौकरी या व्यवसाय) के साथ-साथ देश की सेवा के लिए सैन्य प्रशिक्षण लेते हैं. इसका प्राथमिक उद्देश्य नियमित सेना को स्थिर कर्तव्यों से मुक्त करना, प्राकृतिक आपदाओं में सहायता करना और युद्ध या आपात स्थिति में अतिरिक्त बल प्रदान करना है.

भारतीय सेना एक पूर्णकालिक पेशेवर सैन्य बल है जिसके सैनिक और अधिकारी पूरी तरह से सैन्य सेवा के लिए समर्पित होते हैं. इसके विपरीत, टेरीटोरियल आर्मी अंशकालिक होती है जिसमें नागरिक अपने सिविल करियर के साथ सैन्य सेवा को संतुलित करते हैं.

टेरीटोरियल आर्मी के सैनिक साल में केवल कुछ महीनों (आमतौर पर दो महीने) के लिए प्रशिक्षण या सक्रिय सेवा में भाग लेते हैं. इसे पार्ट-टाइम कमिटमेंट, फुल-टाइम ऑनर का सिद्धांत कहा जाता है.

भारतीय सेना का प्रशिक्षण और सेवा पूर्णकालिक और गहन होती है जबकि टेरीटोरियल आर्मी का प्रशिक्षण सीमित अवधि का होता है.

टेरीटोरियल आर्मी की तैनाती विशेष परिस्थितियों में की जाती है, जैसे:

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