कान खोलकर सुन लो शहबाज... एक बूंद पानी पाकिस्तान नहीं जाएगा - अमित शाह का बड़ा ऐलान!
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पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। सिंधु जल संधि को रद्द करने की तैयारी है, जिससे पाकिस्तान को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है।

गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि भारत की नदियों का एक भी बूंद पानी पाकिस्तान को नहीं जाने दिया जाएगा।

केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल ने बताया कि भारतीय नदियों के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की गई है। नदियों की सफाई और अन्य आवश्यक कदमों को प्राथमिकता दी जा रही है।

पाटिल ने कहा कि सरकार अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक उपायों पर काम कर रही है ताकि पानी को रोका जा सके और उसका रुख बदला जा सके। जल्द ही नदियों की सफाई का काम शुरू किया जाएगा।

सिंधु जल संधि के स्थगित होने से पाकिस्तान को भारी नुकसान हो सकता है।

कृषि पर प्रभाव: पाकिस्तान की 80% सिंचित भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। जल आपूर्ति बाधित होने से गेहूं, चावल और कपास जैसी मुख्य फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है। इससे खाद्य संकट बढ़ेगा, किसानों की आजीविका खतरे में पड़ेगी और ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ेगी।

अर्थव्यवस्था और ऊर्जा संकट: तरबेला और मंगला डैम जैसी जल विद्युत परियोजनाएं पाकिस्तान की कुल बिजली का लगभग 30% उत्पादन करती हैं। नदी का बहाव रोकने या उसमें कटौती करने से बिजली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा और देश को गंभीर ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ सकता है।

शहरी इलाकों पर जनसंख्या दबाव: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संकट बढ़ने से लोग शहरों की ओर पलायन कर सकते हैं। इससे लाहौर, कराची जैसे महानगरों पर जनसंख्या का भारी दबाव पड़ेगा और शहरी सेवाओं पर असर दिखेगा।

भूमि की उर्वरता में गिरावट: जल की कमी से सिंचाई घटेगी, जिससे मिट्टी में लवणता बढ़ेगी और भूमि धीरे-धीरे बंजर हो जाएगी। यह समस्या पहले ही पाकिस्तान की 43% कृषि भूमि को प्रभावित कर रही है और जल संकट से स्थिति और बिगड़ सकती है।

भारत का यह निर्णय पाकिस्तान के लिए सिर्फ जल या ऊर्जा संकट नहीं होगा, बल्कि यह उसकी खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता को भी गहरे स्तर पर प्रभावित करेगा। यह आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त संदेश भी है कि अब जवाब सिर्फ शब्दों से नहीं, ठोस कदमों से दिया जाएगा।

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