पहलगाम हमले का जवाब ICC नहीं, पाकिस्तान की कुटाई : सिब्बल चाहते हैं नेहरू वाली भूल दोहराए भारत?
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पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ रही है. हमले में शामिल 2 आतंकी पाकिस्तानी थे. लेकिन, इस बीच कुछ लोग इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की मांग कर रहे हैं.

राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने पहलगाम हमले के बाद कहा, यह मामला राज्य प्रायोजित आतंकवाद का है. पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए, और इस हमले के जिम्मेदारों को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में दोषी ठहराया जाना चाहिए.

सिब्बल ने गृह मंत्री से भी मांग की कि पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित किया जाए और मामले को ICC में ले जाया जाए.

यह सच है कि पाकिस्तान की शह पर यह हमला हुआ है और वह स्वयं में एक आतंकी राष्ट्र है, लेकिन इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाना ठीक नहीं है.

भारत का हमेशा से यह रुख रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ के मसले द्विपक्षीय तरीके से ही निपटाएगा. कश्मीर और इससे जुड़ा कोई भी मामला अंतरराष्ट्रीय नहीं है. इसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं ले जाया जाएगा.

कश्मीर का सीमा विवाद हो या पाकिस्तान का कश्मीर के बड़े हिस्से पर अनाधिकृत कब्जा, भारत इसे द्विपक्षीय तरीके से हल करने की बात करता आया है.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू यह गलती एक बार कर चुके हैं. आजादी के बाद पाकिस्तान में कश्मीर पर हमले को वह संयुक्त राष्ट्र लेकर गए थे. इसके बाद कश्मीर का मामला फंस गया और भारतीय सेना आगे बढ़ने के बजाय सीजफायर करना पड़ा. इसके चलते कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान समेत तमाम इलाका पाकिस्तान के अनाधिकृत कब्जे में चला गया.

अंतर्राष्ट्रीय मंच भारत को लेकर पक्षपात करते हैं. 3 दशक से कश्मीर को आतंक की आग में झोंकने के बाद भी वे पाकिस्तान पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाए हैं. ना ही वे पाकिस्तान से यह कह पाए हैं कि वह भारत को उसका इलाका वापस करे.

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है, लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की सलाह देना मूर्खता होगी. यह तब और मूर्खता भरा काम होगा जब भारत 1972 में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौता कर चुका है. इसमें पाकिस्तान ने इस बात पर हामी भरी थी कि वह भारत के मामले को द्विपक्षीय स्तर पर हल करेगा.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी मामले को ले जाने का मतलब यह होगा कि भारत इन मामलों को अपने स्तर पर हल नहीं कर सकता. अंतरराष्ट्रीय मंच पर मदद मांगना दिखाएगा कि वह अकेले ही पाकिस्तान को उसके पापों के लिए भी नहीं दंडित कर सकता.

कपिल सिब्बल की यह राय अप्रासंगिक है और सच्चाई से कोसों दूर है. यह राय उसी कांग्रेसी मानसिकता से उपजती है जो सोचती है कि पाकिस्तान को दशकों तक शह देने वाले अंग्रेज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के साथ न्याय करेंगे.

पाकिस्तान का एक ही इलाज है जो मोदी सरकार करती आई है. एक तरफ उसे अप्रासंगिक बना देना और जब भी वह कोई ऐसी हरकत करे तो उसे ऐसी सजा देना कि वह खुद कांप जाए. 2016 में आतंक के कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट में हुआ हवाई हमला मोदी सरकार की इसी दृढ़ता का उदाहरण था. पहलगाम का जवाब इससे भी बड़ा होना चाहिए.

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