फर्ज कीजिए, एक व्यक्ति 12,000 किताबें पढ़ चुका है। हर पन्ना, हर पंक्ति, हर शब्द उसे कंठस्थ है! वह एक साथ दो पृष्ठ पढ़ सकता है - बायां पृष्ठ बाईं आंख से और दायां पृष्ठ दाईं आंख से। आप उसे कोई भी तारीख बताएं, और वह बता देगा कि वह उस वर्ष का कौन सा दिन था। शहर का नाम लीजिए, और वह उसका जिप कोड, सड़कें और वहां की ऐतिहासिक घटनाएं तक सुना देगा।
यह व्यक्ति कोई सुपरह्यूमन वैज्ञानिक नहीं, बल्कि वह है जिसे बचपन में डॉक्टरों ने बेकार समझकर किसी संस्थान में भेजने की सलाह दी थी। और हां, यह वही व्यक्ति है जिसके दिमाग को समझने के लिए नासा ने अपने हाई-टेक स्कैनर निकाल लिए थे। यह कहानी किम पीक की है, एक मेगा सेवांट जिसने दुनिया को दिखाया कि इंसानी दिमाग की कोई सीमा नहीं होती।
किम पीक का जन्म 11 नवंबर 1951 को साल्ट लेक सिटी, यूटा में हुआ। लेकिन यह जन्म सामान्य नहीं था। किम का सिर सामान्य बच्चों से बड़ा था, जिसे डॉक्टरों ने मैक्रोसेफली का नाम दिया। नौ महीने की उम्र में, डॉक्टरों ने उनके माता-पिता, फ्रैन और जीन को बताया कि किम न तो चल पाएगा और न ही बोल पाएगा। उन्हें सलाह दी गई कि उसे किसी संस्थान में डाल दो, क्योंकि वह रिटार्डेड है।
लेकिन फ्रैन और जीन ने अपने बेटे को दुनिया की नजरों से छुपाने के बजाय उसे प्यार और हौसले से पाला। यही वह फैसला था जिसने किम को किम्प्यूटर बनाया, इतना खास कि नासा ने उसका दिमाग स्कैन करने की ठानी।
कहा जाता है, हर बच्चे में कुछ खास होता है। किम में यह खासियत 16-20 महीने की उम्र में दिखने लगी। जब बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते थे, किम किताबों में डूब जाता था। लेकिन यह कोई सामान्य पढ़ाई नहीं थी। किम किताब पढ़ता और उसे याद कर लेता, हर शब्द, हर वाक्य। किताब खत्म करने के बाद, वह उसे उल्टा रख देता ताकि पता चले कि वह फिनिश हो चुकी है। यह उसकी जिंदगी भर की आदत रही।
तीन साल की उम्र तक किम ने अपने परिवार की आठ वॉल्यूम की इनसाइक्लोपीडिया सेट पढ़ के निपटा दी थी। तीन साल का बच्चा जो अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा, वह इनसाइक्लोपीडिया पढ़ रहा है! किम को नंबर, तारीखें और फैक्ट्स याद रखने का गजब का शौक था। अगर कोई पूछता कि 14 जुलाई 1789 को क्या हुआ, तो वह तुरंत बता देता, फ्रेंच रिवॉल्यूशन शुरू हुआ और वह दिन शुक्रवार था!
लेकिन जिंदगी इतनी आसान नहीं थी। किम का दिमाग भले ही सुपर पावर से लैस था, लेकिन उसका शरीर उसका साथ नहीं देता था। उसे चलने में दिक्कत थी। चार साल की उम्र तक वह नहीं चला और जब चला तो चाल अजीब थी। बटन लगाना, कपड़े पहनना, यह छोटी-छोटी चीजें उसके लिए पहाड़ जैसी थीं।
डॉक्टरों ने उसकी हालत को पहले ऑटिज्म समझा, लेकिन बाद में पता चला कि किम को FG सिंड्रोम नाम की एक दुर्लभ जेनेटिक कंडीशन थी। और सबसे हैरानी की बात! उसके दिमाग में कॉर्पस कैलोसम (वह नर्व्स का बंडल जो दिमाग के दो हिस्सों को जोड़ता है), वह गायब था। वैज्ञानिकों का मानना है कि शायद यही वजह थी कि किम का दिमाग सामान्य से अलग तरह से वायर्ड था, जिसने उसे ऐसी सुपर पावर दी।
किम की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट तब आया जब वह 14 साल का था। उसने हाई स्कूल का पूरा करिकुलम घर पर ही पूरा कर लिया, लेकिन स्कूल सिस्टम ने उसे डिग्री देने से मना कर दिया क्योंकि वह फॉर्मल स्कूल में नहीं गया था। फिर भी किम ने हार नहीं मानी। वह साल्ट लेक सिटी की पब्लिक लाइब्रेरी में घंटों बिताने लगा। वहां वह इतिहास, भूगोल, साहित्य, खेल, संगीत, हर सब्जेक्ट में मास्टर बन गया।
वह फोन बुक और कॉल एड्रेस डायरेक्ट्री को भी कंठस्थ कर लेता था। किसी शहर का जिप कोड पूछो, वह तुरंत बता देता। कोई तारीख पूछो, वह बता देता कि वह हफ्ते का कौन सा दिन था। किम की याददाश्त का एक किस्सा सुनिए। वह एक बार में दो पेज पढ़ सकता था - बायां पेज बाईं आंख से, दायां पेज दाईं आंख से। वैज्ञानिकों ने टेस्ट किया और पाया कि वह जो पढ़ता था, उसका 98% उसे याद रहता था।
18 साल की उम्र में किम को किम्प्यूटर का निकनेम तब मिला जब उसे एक कंपनी में पेरोल का काम मिला। उसे 160 कर्मचारियों की सैलरी कैलकुलेट करनी थी, बिना कैलकुलेटर, बिना कंप्यूटर के इस्तेमाल के। किम कुछ ही घंटों में सारा हिसाब कर देता था।
किम की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ 1984 में आया। टेक्सास में एक कॉन्फ्रेंस में उनकी मुलाकात हुई स्क्रीनराइटर बैरी मोरो से। बैरी डेवलपमेंटल डिसएबिलिटीज पर काम कर रहे थे। जब उन्होंने किम से बात की, तो वह हैरान रह गए। किम ने बैरी की जन्म तारीख के आधार पर बता दिया कि वह कौन से दिन पैदा हुए थे और उस दिन की अखबारों की हेडलाइंस क्या थीं। बैरी ने यहीं से ठान लिया कि किम की कहानी को दुनिया तक पहुंचाना है। यहीं से शुरू हुई फिल्म रेन मैन की कहानी।
1988 में रिलीज हुई इस फिल्म में डस्टिन हॉफमैन ने रेमंड बैबिट का किरदार निभाया, एक सावंत, जिसकी प्रेरणा किम पीक थे। हालांकि, फिल्म में रेमंड को ऑटिस्टिक दिखाया गया जो किम की असल जिंदगी से थोड़ा अलग था। लेकिन इस फिल्म ने किम को रातोंरात मशहूर कर दिया।
डस्टिन हॉफमैन ने किम से मिलकर उनके हाव-भाव और बोलने का तरीका सीखा। एक बार हॉफमैन ने कहा, मैं भले ही स्टार हूं, लेकिन तुम आसमान हो। रेन मैन ने चार ऑस्कर जीते, जिसमें डस्टिन हॉफमैन को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला। बैरी मोरो ने अपना ऑस्कर स्टैच्यू किम को दे दिया, ताकि वह इसे लोगों को दिखा सके। इस ऑस्कर को इतने लोगों ने छुआ कि इसे मोस्ट लव्ड ऑस्कर का खिताब मिला।
साल 2004 में नासा ने किम पीक के दिमाग को स्कैन करने का फैसला किया। नवंबर 2004 में नासा के साइंटिस्ट्स ने किम के दिमाग को स्कैन किया, उस टेक्नोलॉजी से जो स्पेस ट्रैवल के असर को स्टडी करने के लिए इस्तेमाल होती है। उनका मकसद था यह समझना कि किम की गजब की मानसिक काबिलियत और उसकी कुछ सीमाओं का राज क्या है?
किम को मेगा सेवांट कहा जाता था क्योंकि वह 15 अलग-अलग फील्ड्स-इतिहास, साहित्य, भूगोल, नंबर, खेल, संगीत, तारीखें में जीनियस था। लेकिन दूसरी तरफ, वह छोटी-छोटी चीजें नहीं कर पाता था। जैसे, उसे नहीं पता होता था कि किचन में चम्मच-कांटा कहां रखा है। वह अपनी शर्ट का बटन नहीं बांध सकता था। लाइट स्विच ऑन करना भी उसके लिए मुश्किल था।
नासा के इस प्रोजेक्ट का मकसद सिर्फ किम को समझना नहीं था। वह यह जानना चाहते थे कि इंसानी दिमाग कैसे काम करता है, उसकी शुरुआत कहां से होती है। किम के दिमाग में एक खास बात और थी। जब वह पैदा हुआ, तो उसके दिमाग के दाहिने हिस्से पर एक पानी का छाला था, जो हाइड्रोसिफेलस जैसा था। बाद में टेस्ट्स से पता चला कि उसके दिमाग के दो हिस्से अलग नहीं थे, बल्कि एक बड़ा डेटा स्टोरेज एरिया बनाते थे। वैज्ञानिकों का मानना था कि शायद यही वजह थी कि किम 9000 से ज्यादा किताबें याद कर सकता था।
रेन मैन की सक्सेस के बाद किम की जिंदगी बदल गई। अब लोग उसे देखना चाहते थे। किम और फ्रैन ने मिलकर दुनिया घूमना शुरू किया। किम अपनी काबिलियत दिखाता। लोगों की जन्मतारीख बताकर उनके पैदा होने का दिन, उस दिन की खबरें और उस साल की बड़ी घटनाएं सुनाता। किम का मकसद सिर्फ अपनी काबिलियत दिखाना नहीं था, वह और फ्रैन डिसएबिलिटी के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते थे। किम कहता था, हर इंसान अलग है, और अलग होना कोई कमजोरी नहीं।
किम ने 6 करोड़ से ज्यादा लोगों से मुलाकात की, और कभी एक पैसे की फीस नहीं ली। नासा के स्कैन्स ने भी उसकी इस मुहिम को और बल दिया क्योंकि अब वह दुनिया को बता सकता था कि उसका दिमाग ना सिर्फ यूनिक है, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली है।
किम भले ही सुपरपावर वाला इंसान था, लेकिन वह इंसान ही था। उसे सोशल स्किल्स में दिक्कत थी। उसका IQ 87 था, जो औसत से कम है। लेकिन उसकी याददाश्त और कैलकुलेशन स्किल्स ने उसे दुनिया का सबसे खास इंसान बनाया। किम को संगीत से भी प्यार था और वह शेक्सपियर के हर नाटक की लाइन याद कर सकता था।
19 दिसंबर 2009 को 58वर्ष की उम्र में, साल्ट लेक सिटी में किम का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
*Kim Peek was an American savant born with an abnormally large head and serious developmental challenges. Doctors discovered that the bundle of nerves connecting the two hemispheres of his brain was missing. They considered him mentally retarded and advised his parents to send him… pic.twitter.com/d4AosrLYxz
— Historic Vids (@historyinmemes) August 4, 2023
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