लालू की लालटेन में तेल भरने को तैयार नहीं राहुल, क्या बिहार में तीसरा मोर्चा बनाने चली कांग्रेस?
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बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा जहां महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में जीत के बाद उत्साहित है, वहीं राजद जातीय राजनीति के सहारे सत्ता में वापसी की कोशिश में है। कांग्रेस भी राज्य में एक नए चेहरे को स्थापित करने में जुटी है।

सोमवार (7 अप्रैल, 2025) को राहुल गांधी ने बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ नौकरी दो, पलायन रोको पदयात्रा में हिस्सा लिया। राजद और लालू परिवार ने इस यात्रा से दूरी बनाए रखी। राहुल ने पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में भी भाग लिया। कांग्रेस में बिहार में बड़े दिनों बाद इतनी हलचल दिख रही है।

राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2024 से ही संविधान बचाओ का नारा दे रहे हैं। क्या बिहार चुनाव में ये पैंतरे रंग दिखाएंगे? यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन महागठबंधन में इसका असर दिखने लगा है। लालू यादव कभी किसी कांग्रेसी नेता को बिहार में शक्तिशाली होते हुए नहीं देखना चाहते हैं।

कन्हैया कुमार फरवरी 2026 में JNU में लगे भड़काऊ नारों से ही सोशल मीडिया में चर्चित चेहरा रहे हैं। कांग्रेस में आने के बाद से ही उन्हें पार्टी की बड़ी बैठकों का हिस्सा बनते हुए देखा गया है। तेजस्वी यादव शायद ही उन्हें भाव देंगे।

ऐसे में, अगर मोलभाव की मेज पर तेजस्वी यादव कांग्रेस को भाव नहीं दे रहे हैं, तो पार्टी के पास PK के साथ गठबंधन में जुड़ने का विकल्प हो सकता है। कांग्रेस के पास आज भी हर इलाके में कैडर है। वहीं, PK के पास सोशल मीडिया हाइप और रणनीति है।

हाल के दिनों में कांग्रेस द्वारा लिए गए कुछ फैसलों से भी लगता है जैसे पार्टी बिहार में अपना स्वतंत्र जनाधार बढ़ाने की चेष्टा कर रही है। सभी 40 सांगठनिक जिलों में नए अध्यक्ष बनाए गए। साथ ही प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को पद से हटा दिया गया।

लालू यादव कांग्रेस द्वारा राज्य में भेजे गए प्रभारियों को भाव नहीं देते। 2021 में उन्होंने भक्त चरण दास को भकचोन्हर बता दिया था।

सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राजद में डील फाइनल नहीं हो पाई है। कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को यह डर दिखा रही है कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो भले वो खुद जीते न जीते, इन्हें तो हरा ही देगी।

प्रशांत किशोर पहले भी कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश और पंजाब में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने बिहार में पदयात्रा की है, लोगों से दान भी लिया है, मुस्लिमों को भी रिझाया है, लालू और मोदी पर एक साथ हमला बोला है।

कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के चुनाव में पार्टी ने पिछड़ों को प्राथमिकता दी है, अपर कास्ट के लोगों को हटाया गया है। ऐसे में बिहार में उतरकर कांग्रेस का उसी पिच पर खेलने का अर्थ है सीधे RJD से टकराव मोल लेना।

बिहार में नीतीश कुमार दलितों का उपवर्गीकरण कर महादलित का दर्जा बहुत पहले दे चुके हैं। वहीं राज्य में मोदी सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं का फायदा अधिकतर पिछड़े समाज को ही मिला है, खासकर महिलाओं को।

11 अप्रैल को प्रशांत किशोर पटना के गाँधी मैदान से बिहार बदलाव रैली की शुरुआत करेंगे। बिहार की राजनीति अभी उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ कोई किसी का दोस्त नहीं दिख रहा।

तो क्या इस बार बिहार में एक तरफ भाजपा, जदयू, लोजपा और HAM, एक तरफ कांग्रेस और PK और एक तरफ राजद व वामदल दिखाई दे सकते हैं? इस त्रिकोणीय लड़ाई में VIP वाले मुकेश सहनी किधर जाएँगे?

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