पम्बन ब्रिज, जिसे अंग्रेजों ने 111 साल पहले 1914 में बनवाया था, अब इतिहास बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चैत्र रामनवमी के दिन, 6 अप्रैल 2025 को, तमिलनाडु के रामेश्वरम में नए पम्बन ब्रिज का उद्घाटन किया।
पीएम मोदी ने सड़क पुल से एक ट्रेन और एक जहाज को हरी झंडी दिखाई और इसके संचालन के बारे में जानकारी ली। यह ब्रिज भारत की शानदार इंजीनियरिंग का प्रमाण है। इसका शिलान्यास 2019 में किया गया था और इसे डबल ट्रैक और हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए डिजाइन किया गया है। कोविड के कारण इसमें देरी हुई, लेकिन अब यह बनकर तैयार है।
रामायण में कहा गया है कि भगवान राम ने लंका में रावण का वध करने के लिए रामेश्वरम के पास धनुषकोडी से ही सेतु निर्माण का काम शुरू किया था।
पीएम मोदी श्रीलंका से लौटकर सीधे तमिलनाडु पहुंचे हैं, जहाँ उन्होंने राज्य में 8,300 करोड़ रुपए से अधिक की रेल और सड़क परियोजनाओं का शिलान्यास एवं उद्घाटन भी किया।
नए पम्बन ब्रिज की विशेषताएं:
पुराने पुल में जंग लगने के कारण उसे 2022 में बंद कर दिया गया था, जिससे रामेश्वरम और मंडपम के बीच रेल संपर्क खत्म हो गया था।
नए पम्बन ब्रिज का ट्रायल कई चरणों में किया गया। सबसे पहले 12 जुलाई 2024 को हल्के इंजन का ट्रायल रन किया गया, और अंतिम ट्रायल 31 जनवरी 2025 को रामेश्वरम एक्सप्रेस ट्रेन को चलाकर किया गया, जो सफल रहा।
कैसे काम करता है यह ब्रिज:
जब समुद्री जहाज को निकलना होगा तो इसका लिफ्ट स्पैन ऊपर उठ जाएगा, जिसमें 5 मिनट का समय लगेगा। यह इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम पर काम करता है और 5 मिनट में 22 मीटर तक ऊपर उठ सकता है। इसे उठाने के लिए सिर्फ एक आदमी को बटन दबाना होगा।
यह ब्रिज समुद्री हलचल या चक्रवात का भी ध्यान रखता है। अगर समुद्री हवा की गति 58 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा हो जाती है तो यह वर्टिकल सिस्टम काम नहीं करेगा और ऑटोमैटिक रेड सिग्नल हो जाएगा, जिससे ट्रेन की आवाजाही बंद रहेगी।
पुराना पम्बन ब्रिज का इतिहास:
पम्बन का पुराना रेलवे पुल अंग्रेजों ने 111 साल पहले बनवाया था और इसे 24 फरवरी 1914 को शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य भारत और श्रीलंका को जोड़ना था। इस पुल को बनाने में 20 लाख रुपए की लागत आई थी।
पुराने पुल का डिजाइन जर्मन इंजीनियर शेरजर ने तैयार किया था और इसे समुद्र के खारे पानी और तेज हवाओं से बचाने के लिए खास किस्म के लोहे से बनाया गया था।
यह ब्रिज साल 1964 के चक्रवात को भी झेल गया था। हालांकि, 23 दिसंबर 1964 को 240 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आए चक्रवात में धनुषकोडी पूरी तरह बर्बाद हो गया था और 6 डिब्बों वाली 653 पम्बन-धनुषकोडी पैसेंजर ट्रेन समुद्र में बह गई थी, जिसमें लगभग 150 लोगों की मौत हो गई थी।
मरम्मत के बाद इसे फिर से चालू कर दिया गया था और साल 1988 तक यह ब्रिज मंडप को रामेश्वरम से जोड़ने का एक मात्र संपर्क-सूत्र था।
#WATCH | PM @narendramodi inaugurates the New Pamban Rail Bridge in Rameswaram
— DD News (@DDNewslive) April 6, 2025
Connecting the sacred town of Rameswaram to the mainland, this engineering marvel is a symbol of India’s growing infrastructure power and devotion. With a cost of over ₹550 crore, the bridge… pic.twitter.com/IVdY9sgV6k
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