स्टालिन सरकार का बड़ा फैसला: बजट में रुपये चिन्ह हटाया, भाषा विवाद गहराया
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तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने भाषा विवाद के बीच करेंसी सिंबल (₹) को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है. राज्य के बजट के लोगो से रुपये के प्रतीक को बदलकर तमिल अक्षर ரூ (Ru) कर दिया गया है.

2025-26 के बजट में ₹ के सिंबल को तमिल लिपि के अक्षर रु से बदला गया है. यह कदम DMK और केंद्र सरकार के बीच नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के माध्यम से हिंदी थोपने को लेकर चल रही खींचतान के बीच उठाया गया है.

यह पहली बार है जब किसी राज्य ने राष्ट्रीय करेंसी सिंबल को अस्वीकार किया है.

कब अपनाया गया था ₹ चिन्ह?

रुपये का चिन्ह ₹ आधिकारिक तौर पर 15 जुलाई, 2010 को अपनाया गया था. 5 मार्च, 2009 को सरकार द्वारा घोषित एक डिजाइन प्रतियोगिता के बाद इसे चुना गया था. 2010 के बजट के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने एक ऐसा प्रतीक पेश करने की घोषणा की थी जो भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित और समाहित करेगा. इस घोषणा के बाद एक सार्वजनिक प्रतियोगिता शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान डिज़ाइन का चयन किया गया.

हिंदी को लेकर राज्य-केंद्र के बीच खींचतान

राज्य के बजट से ₹ ​​चिह्न हटाने का निर्णय तमिलनाडु और केंद्र के बीच हिंदी थोपे जाने को लेकर चल रही खींचतान के बीच लिया गया है. तमिलनाडु द्वारा NEP 2020 के प्रमुख पहलुओं, विशेष रूप से त्रि-भाषा फार्मूले को लागू करने से इनकार कर दिया गया था.

राज्य में DMK के नेतृत्व वाली सरकार का तर्क है कि एनईपी के माध्यम से केंद्र सरकार तमिल भाषी आबादी को हिंदी सीखने पर मजबूर करना चाहती है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि NEP एक भगवा नीति है, जिसका मकसद हिंदी को बढ़ावा देना है.

स्टालिन ने कहा, हम एनईपी 2020 का विरोध करते हैं, क्योंकि यह शिक्षा क्षेत्र में तमिलनाडु की प्रगति को पूरी तरह से नष्ट कर देगी. उन्होंने दावा किया कि एनईपी आरक्षण को स्वीकार नहीं करती, जो सामाजिक न्याय है. DMK प्रमुख ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर जाति आधारित शिक्षा लागू करने का प्रयास कर रही है.

तमिलनाडु करता रहा है विरोध

तमिलनाडु लगातार त्रि-भाषा फॉर्मूले का विरोध करता आया है. 1937 में सी राजगोपालाचारी की अध्यक्षता वाली तत्कालीन मद्रास सरकार ने वहां के स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य कर दी थी. जस्टिस पार्टी और पेरियार जैसे द्रविड़ नेताओं ने बड़े पैमाने पर इस फैसले का विरोध किया था. 1940 में इस नीति को रद्द कर दिया गया, लेकिन हिंदी विरोधी भावनाएं बरकरार रहीं.

साल 1968 में जब त्रि-भाषा फॉर्मूला पेश किया गया था, तब तमिलनाडु ने इसे हिंदी को थोपने का प्रयास करार देते हुए इसका विरोध किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में तमिलनाडु ने दो-भाषा नीति अपनाई थी, जिसके तहत केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी.

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