संभल में 1978 के दंगों की कहानी: हिंसा की चिंगारी से धधकी आग
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1978 संभल हिंसा

उत्तर प्रदेश का संभल दंगों के ऐसे दागों से सना है, जो आज तक नहीं मिट पाए हैं। संभल में सिलसिलेवार दंगों की संख्या चौंकाती है। पांच दशक पहले, जब संभल जिला नहीं बना था, उस समय भी मुरादाबाद संभाग में इसका अपना इतिहास रहा है।

प्राचीन संभल

पुराणों में संभल का उल्लेख शम्भल नगर के रूप में मिलता है। माना जाता है कि इस नगर में 68 तीर्थ हैं। उत्तर में भुवनेश्वर, दक्षिण में सम्भलेश्वर और पूर्व में चंद्रशेखर शिवलिंग स्थित हैं। पुराणों के अनुसार, संभल ही वह नगर है जहां भगवान विष्णु का दसवां अवतार, कल्कि, अवतरित होगा।

1978 की घटनाएँ

25 मार्च, 1978 होली का दिन था। संभल के आकाश में रंग और होली की गूंज गूंज रही थी। लेकिन, जमीन पर कुछ ऐसा चल रहा था जो चिंताजनक था। नापाक मंसूबे पालने वाले एक गिरोह ने अफवाहों के जरिए आग भड़काने का प्रयास किया।

29 मार्च, 1978 को संभल की गलियों में इतनी नफरत की आग भड़की कि उसे याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। संभल बाजार से सब्जी मंडी तक सब कुछ एक शाम में राख हो गया। 40 से ज्यादा दुकानें जला दी गईं। उस आग में दो दर्जन से ज्यादा हिंदू दुकानदारों को फेंक दिया गया, जिन्हें पहले लूटा गया, मारा-पीटा गया और अंत में मार डाला गया। 1978 के दंगों का पूरा ब्योरा पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है।

चश्मदीदों का बयान

सुरेंद्र गौर, जो एक शिक्षक थे, बताते हैं कि कैसे दंगाइयों ने उनके बेटे को भीड़ से खींचकर मार डाला। उनका कहना है कि उस दिन दंगाइयों ने 30 लोगों को जिंदा जला दिया था।

जिले के इतिहासकार नईम अंसारी कहते हैं कि 29 मार्च को संभल में हुए दंगों की शुरुआत में ही 184 लोग मारे गए थे। इनमें से कई लोगों के शव भी नहीं मिले। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 1978 का दंगा आजादी के बाद शहर में सबसे बड़ा दंगा था।

दंगों के कारण

1978 के दंगों की जड़ें 1976 में फैलाई गई एक अफवाह से जुड़ती हैं। उस समय पेतिया गांव के एक मौलवी की हत्या की झूठी खबर फैलाई गई, जिसके बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। यह तनाव 1978 में भीषण दंगों का कारण बना।

पलायन और सामाजिक समीकरण

1978 के दंगों के बाद, संभल में हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया। खग्गू सराय जैसे इलाकों से हिंदू परिवार धीरे-धीरे चले गए, जहां कभी 50 से ज्यादा हिंदू परिवार रहते थे।

1978 के दंगों में पलायन ने संभल के सामाजिक समीकरण को बदल दिया। 1947 में, संभल में 55% मुसलमान और 45% हिंदू रहते थे। आज, 85% आबादी मुसलमान है और केवल 15% हिंदू हैं।

प्रश्न जो कायम हैं

1978 के दंगों की यादें आज भी संभल के लोगों के जेहन में ताजा हैं। ये दंगे निम्नलिखित सवाल उठाते हैं:

1978 के दंगों का इतिहास हमें याद दिलाता है कि अफवाहों और सांप्रदायिक उकसावे से कितनी आसानी से हिंसा भड़क सकती है। संभल को अपने अतीत से सीखना चाहिए और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए।

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