जाने-माने तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के निधन की खबर मिलते ही अचानक एक झटका लगा है। ऐसा लगा जैसे उनके तबले की थाप के थम जाने से हिंदुस्तानी संगीत की देश-विदेश में धमक भी अचानक थम गई हो। मैं अतीत के झरोखे से उन्हें याद कर रहा हूँ। मुझे याद आया उनके साथ बिताया हर एक लम्हा।
ताजमहल की खूबसूरत शाम में, मखमली अँधेरे में चमकते ताज के साए तले, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब ने तबले से न सिर्फ खूबसूरत संगीत का एहसास कराया बल्कि भोले बाबा के डमरू से निकलने वाली आवाज़ का भी आभास कराया था। न जाने कितनी तरह की आवाज़ों का एहसास उस शाम वन विभाग के जंगल में उन्होंने कराया, जहाँ कभी कोयल की कूक तो कभी पपीहे की पुकार सुनाई देती रही थी, उस शाम यह सब आवाज़ें फिर से सुनाई दीं, लेकिन इस बार उस्ताद के तबले की आवाज़ उन पर भी हावी होते हुए महसूस हुई।
उस सुहानी शाम से पहले उस्ताद शहर के एक पंचतारा होटल में आगरा के स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया से भी मिले थे। उस मुलाक़ात में उस्ताद बेहद रोमांचित और उत्साहित थे, ताजमहल में तबला वादन के दुर्लभ अनुभव और प्रस्तुति को लेकर।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब ने साबित कर दिखाया था कि तबला सिर्फ संगतभर का वाद्य नहीं है, इसकी एकल और अन्य साजों के साथ प्रस्तुति भी काबिल-ए-तारीफ हो सकती है। आज भी संगीत के प्रतिष्ठित आगरा घराने में तबला बहुत महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है। तबला वादन सिखाने की आज भी बकायदा कई क्लास लगती हैं।
*The rhythm of India paused today…
— anand mahindra (@anandmahindra) December 15, 2024
In tribute.
🙏🏽🙏🏽🙏🏽#ZakirHussain
pic.twitter.com/eknPqw4uKM
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