मनाली-लेह रूट दुनिया भर के पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है। हर रोज सैकड़ों पर्यटक मनाली से लेह का सफर बाइक से तय करते हैं, कुछ टैक्सियां भी चलती हैं, पर बाइक का अपना अलग ही आनंद है। पहले विदेशी पर्यटक ही मनाली से लेह तक बाइक पर जाते थे लेकिन अब देसी पर्यटक भी इस रूट पर बाइक राइडिंग का लुत्फ उठा रहे हैं। अगर आप भी अपनी छुट्टियों को यादगार बनाना चाहते हैं तो एक बार इस खूबसूरत सफर का आनंद जरूर लीजिये , पहाड़ों की गोदी में ये सफर किसी स्वर्ग जैसा है, पेश है मनाली से लेह की यात्रा के कुछ चुनिंदा पड़ाव : (मनाली – रोहतांग जोत - ग्राम्फू - कोकसर - टाण्डी - केलांग - जिस्पा - दारचा – जिंगजिंगबार - बारालाचा ला - भरतपुर - सरचू - गाटा लूप - नकीला - लाचुलुंग ला - पांग - मोरे मैदान - तंगलंग ला - उप्शी - कारु - लेह)
मनाली से लेह जाते समय 51 किमी दूर पहला पड़ाव है रोहतांग का दर्रा बेहद ख़ूबसूरत स्थल जिसमें यहाँ देखने के लिए विशेष स्थल है-: ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि मंदिर |
रोहतांग से ग्राम्फू - कोकसर - टाण्डी होते हुए आप 67 किमी दूर स्थित केलांग में पहुंचेंगे जो भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का जिला मुख्यालय है, यहां पर्यटक चाय पानी के लिए विश्राम करते हैं | यहाँ केलांग के गोंपे, ट्राइबल म्यूजियम, लेडी ऑफ केलांग आदि घूमने लायक स्थान हैं|
ये केलांग और दारचा के बीच में पड़ता है यहां अक्सर सैलानी कारदंग बौद्ध मठ, जिस्पा राफ्टिंग पॉइंट, फिशिंग पॉइंट घूमने के लिए ठहरते हैं
केलांग से जिस्पा होते हुए 28 किमी दूर है दारचा गाँव | मनाली और लेह के बीच चलने वाली कुछ बसें दारचा में रात को रूकती हैं. पहले दिन के विश्राम में यात्री तम्बुओं में सोते हैं. तम्बुओं में खाना और बिस्तर मिलते हैं. पुलिस चेक पोस्ट पर यहाँ से गुजरने वाली हर गाड़ी को रुकना पड़ता है और वहां रखे रजिस्टर में जरुरी सूचनाएं भरनी पड़ती हैं. इसके अलावा दारचा सुप्रसिद्ध पदुम दारचा ट्रेक का समापन स्थान भी है|
दारचा से जिंगजिंगबार होते हुए आप आएंगे 44 किमी दूर स्थित बड़ालाचा ला , यह एक दर्रा है जो हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। यह मंडी और लेह को सड़क परिवाह से जोड़ता है. यह एक बेहद रमणीय स्थल है |बारालाचा ला से ही विपरीत दिशाओं में चन्द्रा और भागा नदियों का उद्गम है। यहां से भरतपुर तक आपको तेज ढलान और खराब सड़क मिलेगी ज़रा संभल कर
बारालाचा ला - भरतपुर होते हुए 40 किमी पर सरचू आता है , सरचू कैपिंग साइट इस रूट पर आकर्षण का केंद्र है। यहाँ लोग दूसरे दिन के विश्राम के लिए रुकते हैं |
सरचू से पांग 80 किमी दूर है, रास्ते में 22 हेयरपिन बैण्ड वाले गाटा लूप हैं। 4 किमी की ऊँचाई पर नकीला है और उसके बाद 5 किमी पर लाचुलुंग ला दर्रा है। लाचुलुंग ला से पांग तक का मार्ग बड़ा खतरनाक और हैरतअंगेज दृश्यों से भरा है। पांग में भी चेक पोस्ट पर नाम लिखना होता है।
पांग से 69 किमी दूर है तंगलंग ला| रास्ते में सुप्रसिद्ध मोरे मैदान पड़ता है जहां पचासों किलोमीटर तक बिलकुल सीधी और चौड़ी सड़क है। तंगलंग ला इस मार्ग का सबसे ऊँचा स्थान है। यह दर्रा दुनिया का तीसरा सबसे ऊँचा मोटर योग्य दर्रा है।
तंगलंग ला से 60 किमी की दूरी पर उप्शी है ; यहां सिंधु नदी के पहली बार दर्शन होते हैं। यहाँ सिंधु नदी पार करनी होती है। यहाँ से पुराने समय में तिब्बत के लिए रास्ता जाता था। वह रास्ता अभी भी है और भारत-तिब्बत सीमा पर चुमार तक जाता है।
उप्शी से 15 किमी के सफर के बाद कारु होते हुए लेह जाना होता है, यहाँ से लेह 35 किमी दूर है | सिन्धु नदी को पार करने के बाद रास्ता नदी के दाहिने किनारे के साथ साथ जाता है। कारु से एक रास्ता सुप्रसिद्ध पेंगोंग झील के लिए भी जाता है।
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